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बचपन वाला रविवार सिर्फ संडे बन गया, मगर दिल तो बच्चा है जी

वीथिका            Feb 19, 2022


सुमित बेगरा।

ऐसा कोई नहीं होगा जिसे अपने बचपन की याद ना आती हो ये सभी को बड़ा याद आता है। उस समय की कुछ ऐसी यादें भी होती हैं तो जो खूब याद आती हैं। कहते हैं कि बचपन हर ग़म से बेगाना होता है।

आज की इस भागमभाग और तेज रफ़्तार जिंदगी को देखते हुए अपने पुराने बीते हुए दिन बहुत याद आते हैं। इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में आप कितना भी तेजी से भागे लेकिन थक जाते हैं।
 
हम लोग इंसान हैं कोई मशीन नहीं । बस आराम करने के लिए एक संडे मिलता है ! लेकिन क्या आज हमलोग इस संडे को भी एन्जॉय कर पाते है। हम तो कहेंगे की इस संडे से लाख गुना अच्छा हमारा बचपन वाला रविवार होता था।

रविवार को सिर्फ मस्ती ही करते रहते थे। रविवार को सुबह सुबह पिताजी आटोमैटिक ज्ञान देने वाले मोड में बैठे रहते हैं कि कब हम देर से उठें और कब हमें वो चार बात सुनाएं। रविवार की सुबह की शुरुवात होती थी दूरदर्शन पर आने वाले रंगोली को देखकर।

गांव में जिन बच्चों के घर में टीवी नहीं था उनका घर पर आना। सबसे ज्यादा लोकप्रिय सीरियल उस समय का "चंद्रकांता" था जिसको हमलोग कास्टिंग से लेकर अंत तक बड़े गौर से देखते थे।
 
हर बार सस्पेंस बना कर छोड़ देता था चंद्रकांता में और फिर हमलोग अगले हफ्ते तक सोचते रहते थे की आगे क्या होगा। कभी—कभी जब मौसम खराब हो जाता था या तेज बहती थी तो ऐन्टेना घूम जाता था तब छत पर जाके एंटीना सही करना पड़ता।

कभी किसी नेता के मरने पर सीरियल ना आता तो बड़े दुखी मन से बैट -बॉल लेके खेलने निकल जाते थे। सच कहे तो अब बचपन वाला रविवार नहीं "संडे" आता है और इस संडे में रविवार वाला मजा नही आता।

अब तो मनोरंजन के साधन भी पहले से ज्यादा बढ़ गए हैं फिर भी आज हम लोग खुस नहीं है। पहले सिर्फ दूरदर्शन था अब तो केवल लगा है हर घर में।

आज भी टीवी पर कई रोचक, मजेदार, फैमिली सीरियल आते हैं लेकिन इन्हे देखने के लिए हमारे पास वक़्त नही होता।

वो ‘बचपन वाला रविवार’ किसी और ने नहीं, बल्कि हमने खुद ने खोया है। हम अपने आप को बहुत बड़ा समझने लगे हैं।

हम दुनिया से डरने लगे हैं, यह सोचकर कि अगर हम जोर से हंस लेंगे, तो लोग क्या कहेंगे। अगर हम मस्ती कर लेंगे, तो लोग क्या कहेंगे?

आज भी टीवी पर कई रोचक, मजेदार, फैमिली सीरियल आते हैं, जैसे तारक मेहता का उल्टा चश्मा, चिड़ियाघर।

लेकिन हमारे पास इन्हें देखने का वक्त ही नहीं है। क्योंकि हम बड़े हो गये हैं। हमारे पास फैमिली के साथ इन्जॉय करने का वक्त नहीं है। इसमें किसी का दोष नही है बस समय के साथ सब कुछ बदल जाता है, लेकिन क्या करे दिल तो अभी भी बच्चा है जी।

80—90 के दशक की मीठी यादें फेसबुक ग्रुप से।

 


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