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प्रेम की यह पावनता बिरलों को नसीब होती है

वीथिका            Aug 19, 2022


 

संजय स्वतंत्र।

आप मुझे जानते हैं। यहीं मिले थे हम। मैं अभि की माया हूं। अभि यानी मेरे हृदय में विराजमान कान्हा। हर जनम में मिलती हूं उससे। ये तो कान्हा का ही योग है जो बिछड़े प्रेमी युगलों को मिलाते हैं।

सच बताऊं तो अभिमन्यु किसी जनम का मेरा बिछड़ा प्रेमी ही है। मैं उसकी राधा।

वह जब जेएनयू में कविता पढ़ता था तो अपना दिल वार देती थी जाने कितनी बार।

वह मंच पर कविता पढ़ते हुए खुद को दुनिया की सबसे दिलफरेब लड़की का माशूक महसूस करता था। लेकिन वह था तो मेरा ही,  कहां जाता आखिर।

...उन दिनों अभि की कोई प्रेमिका नहीं थी,  मगर मुझसे मुलाकात के बाद उसकी रोमानियत इस कदर तारी हुई जिसे आस-पड़ोस से लेकर कॉलेज तक के सब लोग जान गए। वैसे भी इश्क-मुश्क और खांसी-खुशी छुपती कहां है।

बता दूं कि हमारी लंबी मुलाकात के बाद अभिमन्यु की अदरख वाली चाय का खाता तभी खुला था। चाय से लेकर महंगी शराब उसकी कमजोरी है।

उसे शवाब भी चाहिए, तो मैं हाजिर थी। मैने उससे दिल से प्यार किया। आप पूछेंगे, कितना? तो मैं कहूंगी, धरती से आसमान जितना।

आज जब अभि को याद कर रही हूं तो सोचती हूं उसका व्यक्तित्व किन परिस्थितियों ने गढ़ा होगा। वैसे वह खुद भी गजब का नक्काश है। वह परिस्थितियों को गढ़ता है। उसमें घुसता है फिर निकल जाता है।

मैं जानती हूं कि सुंदर स्त्रियां उसे लपक लेना चाहती हैं। वह जरा दिलफेंक है। मगर है दिल का साफ। वह सबको दोस्त बना लेता है।  मगर मैं तो उसकी ‘राधा’ ठहरी। घूम-फिर कर वो मेरे पास ही आता है। मेरी बांहों में होता है।

वह किशोर दा के गीत गुनगुनाता है। मैं उसके सीने पर सिर रख कर उसे सुनती हूं। ठीक वैसे ही, जैसे राधा बांसुरी की धुन सुनती थी आंखें मूंदे हुए।

अभि तुम जानते हो? अदरख वाली चाय की तरह कभी-कभी रात में किसी मुलायम सी इंसान की भी क्रेविंग होती है। और, वो ऐसा ही इंसान होता जिससे आपका राब्ता रहा हो। उसकी खुशबू याद आती है।

मैं उसके सिंथॉल साबुन की खुशबू आज तक वहीं भूली। ... वो मुझसे मिलने आ रहा है तो मुझे दूर से उसकी खुशबू आ रही है। यह महसूस करना ही प्रेम है न अभिमन्यु?

जैसे तुम मुझे कभी महसूस करते होगे। अपने होठों पर। अपनी धमनियों में। मैं तुम्हारे सभी प्रिय गीत एकांत में सुनती हूं।

मगर तुम जब आओगे तो क्या अपने प्रेम की वो सुगंध बचा कर लाओगे अभि? तुम बदल न जाना। कोई तुम को रिझा न ले। यही डर लगता है। तुम्हें जिन चीजों की तलब होती है वो सब मेरे पास है।

अभि, मैं राधा की तरह उदास हूं। कृष्ण जो एक बार गए, तो फिर लौट कर न आए। कहते हैं कि जब वे मथुरा से जा रहे थे तो राधा ने कहा था- आप भले ही मुझसे दूर जा रहे हैं। मगर आप मेरे मन में हमेशा रहेंगे ...और कृष्ण चले गए। हमेशा के लिए चले गए। मगर मन से तो कभी नहीं गए।

वे अपना दिल राधा के पास ही छोड़ गए। उनके बीच अटूट प्रेम बचा रहा। जैसे तुम बचे रहे मुझमें।

जानते हो अभि। ... कृष्ण, धरती पर उतरे अकेले ऐसे देवता हैं, जिन्होंने मनुष्यों को प्रेम करना ही नहीं, जीवन के महाभारत से लड़ना-भिड़ना भी सिखाया।

    ...एक सवाल प्राय: मन में उठता है कि अगर राधा से इतना ही प्रेम था तो कृष्ण उन्हें छोड़ कर क्यों चले गए ? फिर कभी लौटे क्यों नहीं ?  क्यों टूट गई उनकी मित्रता ? क्यों उन्हें और गोपियों को समझाने के लिए उद्धव जी को भेजना पड़ा ?

वैसे वे रो-धोकर वे मान भी जाती हैं। विरह का घूंट पी लेती हैं। मगर यहीं से वे और गोपियां भक्ति का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

राधा अपने एकनिष्ठ प्रेम का उदाहरण तो हैं ही भक्ति का ऐसा सहज माध्यम भी हैं कि उनका स्मरण करने भर से हम शोक-अवसाद से बाहर निकलने लगते हैं। मन निर्मल होने लगता है।

मेरा तुम से ऐसा ही नाता है अभि, यूं ही कोई दिल में नहीं बस जाता। हम मिलते हैं तो संजोग होता है, मगर जब तुम चले जाते हो, तो वियोग होता है।

कालरात्रि भी आंसू बहाती है मुझे देख कर। तब मैं कृषकाय राधा सी हो जाती हूं,  चेहरा पीला पड़ जाता और वह सौंदर्य भी जिसे देख कर तुम मुग्ध होते हो और मैं आत्ममुग्ध।

मुझे नहीं पता था कि तुम जासूस बनोगे या पलिस की नौकरी में चले जाओगे और फिर तुम्हारे पास मेरे लिए कभी वक्त होगा नहीं।

तुम्हारा चरित्र नक्काश की तरह है, जाने खुद को कब तक गढ़ते रहोगे। मगर मैंने तो खुद को राधा की तरह गढ़ लिया है,  खुद को तुम में विलीन कर लिया है।

 यही तो प्रेम है न अभि। अपने प्रिय के मन में विलीन हो जाना ही सच्चा प्रेम है। प्रेम की यह पावनता जो बिरलों को नसीब होती है।

प्रेम भोग में नहीं, वियोग में है। इंतजार में ही प्रेम का सच्चा सुख है।

कृष्ण ने सत्यभामा और रुक्मणी को ऐश्वर्य का सुख जरूर दिया मगर अलौकिक प्रेम का सुख सिर्फ राधा को मिला। वही अलौकिक प्रेम तुमने मुझे दिया अभि। ऐसे प्रेम को साधा है मैंने।

 मैंने जीवन भर के लिए स्नेह की डोर से तुमहें बांधा है। आखिर कब आओगे अभिमन्यु? कब तक करूं इंतजार? मेरे कान्हा। बोलो न?

19 अप्रैल, 2022

तस्वीर -प्रतीकात्मक

 (लेखक-संपादक मुकेश भारद्वाज के चर्चित उपन्यास ‘मेरे बाद’ के बाद उनके अगले उपन्यास के नायक को याद करती नायिका। )

 



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