ऑक्सीजन-वाक्सीजन फालतू की चीज है, जीने के लिए सिर्फ दो ही चीजें जरूरी हैं चुनाव और राजनीति

खरी-खरी            Dec 19, 2021



आशीष पाठक।

इस खबर का आशय तो यह समझ आता है कि ऑक्सीजन-वाक्सीजन फालतू की चीज है। पांच तत्वों वाली अवधारणा भी गलत है। इनके अनुपात में कमी-बढ़ोतरी के कारण कोई मरता-जीता नहीं है। जीने के लिए सिर्फ दो ही चीजें जरूरी हैं चुनाव और राजनीति, इनके अलावा अन्य सभी बातें बेमानी हैं।

 



जब ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई मौत हुई ही नहीं तो जितने भी ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटर खरीदे, या अस्पतालों में उपलब्ध कराए गए, जितने ऑक्सीजन प्लांट बनाए और स्थापित किए गए और इस पर जो अनाप-शनाप खर्च हुआ वह व्यर्थ में हुआ।

अतः सारे कन्सन्ट्रेटर नस्ट कर देने चाहिए और ऑक्सीजन प्लांट भी उखाड़ कर कबाड़े में तौल देने चाहिए।

वैसे भी अन्य बीमारियों के इलाज के हिसाब से तो अस्पतालों में पहले से ऑक्सीजन की व्यवस्था अस्पतालों में थी ही और उतने भर से काम चल जाएगा क्योंकि जिसे भी कोरोना जकड़ता है या भविष्य में जकड़ेगा उसे ऑक्सीजन की कमी से कभी कोई खतरा नहीं था और आगे भी नहीं रहेगा।

क्योंकि कोरोना तो खुद ही फेफड़ों में पहुंचने के बाद ऑक्सीजन का अपार उत्पादन करेगा, उत्पादन भी इतना होगा कि आप कोरोना पीड़ित से ऑक्सीजन का खाली सिलेंडर भर भी सकेंगे।

आखिर में एक सलाह देश की सभी सरकारों को दी जानी चाहिए कि- ऑक्सीजन सिलेंडर, कन्स्न्ट्रेटर, पीएसए प्लांट आदि खरीदने और लगाने पर जो व्यय हुआ वह लगवाने और खरीदने वालों से वसूला जाना चाहिए। यह राशि उन लोगों में बांट देनी चाहिए जिन्होंने अपने परिजनों के लिए ऑक्सीजन खरीदी। क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन खरीदने के लिए कहा गया था।

जबकि इसकी तो कोई जरूरत थी ही नहीं। लोगों को भ्रम था कि ऑक्सीजन की कमी से उनका सगा-संबंधी मर जाएगा।

अगर अब किसी का कोई रिश्तेदार-नातेदार किसी अस्पताल में भर्ती हो और डॉक्टर या कोई भी कहे कि इन्हें ऑक्सीजन की जरूरत है तो वह परेशान न हो। सीधे ऑक्सीजन की व्यवस्था करने की मांग करने वाले की ऐसी योग्य सरकारों के मुखिया से बात कराए और कहे कि ऑक्सीजन की कमी से पहले भी कोई मौत नहीं हुई और आगे भी नहीं होगी। इसलिए बेवजह हमारा खर्च न बढ़ाएं ।
बेचारी ऑक्सीजन!

 



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