छोटे अखबार या अन्य मीडिया समूह तो जैसे मार ही दिए गए हैं

खरी-खरी            Oct 21, 2021


अवधेश बजाज।
बीते कई दिन से कुछ लिखने का मन ही नहीं हो रहा था। यूं नहीं कि लेखन लायक विचार और लेखन के लायक ही अनाचार सामने नहीं था। विचार यदि प्राकृतिक प्रक्रिया है तो अनाचार की अप्राकृतिक दु:खद प्रक्रिया पर उनका बाहर आना भी अवश्यंभावी हो गया। कहां से पकड़ा जाए इस काली और अंतहीन दिखती रात का पहला छोर?

नोटबंदी किसी भी तरह से खोटबंदी का कारण साबित नहीं हो सकी। हां, एक व्यक्ति की सनक ने हमें घुट-घुट कर जीने पर विवश कर दिया। बैंकों की कतार में कातर भाव से लगे हम अपना चैतन्य खोते चले गए। अभी ये जख्म सूखा भी नहीं था कि जीएसटी आ गया।

पहले देश का विश्वास छिन्न-भिन्न हुआ और अब समाज भी पूरी तरह बांट दिया जा रहा है। जातिवादियों और धार्मिक उन्मांदियों आपकी अघोषित किन्तु आनुषंगिक हुल्लड़ ब्रिगेड ने देश की बहुत बड़ी आबादी को आशंकाओं से भर दिया है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 गया, किंतु वहां वह ब्लैक होल न बन सका, जो अपनी आगोश में आतंकवाद को लेकर उसे खत्म कर देता।

घाटी में बर्फ की चादर अब भी निर्दोषों के लहू से लाल होकर चीत्कार कर रही है। कश्मीर में बेकसूर देशवासियों की नहीं, बल्कि उस विश्वास की सामूहिक ह्त्या हो रही है, जो पीड़ितों ने आप पर किया। आप और आपके प्रचारकों ने अनुच्छेद 370 के हटने को आतंकवाद की पूर्ण समाप्ति के रूप में प्रचारित किया। जिन्होंने आपके इस दावे पर यकीन कर लिया, अब वे कश्मीर में अपनी जान की खैर मांगने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

'न खाऊंगा और न खाने दूंगा' वाला लच्छेदार नारा तो कब का धुआं-धुआं हो चुका। उसकी जगह 'खुद खाऊंगा और केवल अपनों को खाने दूंगा' की अपसंस्कृति पनप गयी है। उसे पनपा दिया गया है। भ्रष्ट अफसर और महाभ्रष्ट घराने मालामाल होते जा रहे हैं। इस अत्याचार को सहने का हमें ये सांत्वना पुरस्कार मिला कि हम किसी दैनिक वेतन भोगी श्रमिक की तरह रोज कुआं खोदकर रोज पानी पीने के लिए अभिशप्त कर दिए गए हैं।

पत्रकारिता में अब केवल वही जीवित रहने योग्य है, जो पक्षकारिता में निपुण हो। जो एक धवल दाढ़ी के भीतर छिपे ओंठों से निकलते हरेक झूठ को सत्य बताये। न्यूज़ चैनल के वातानुकूलित स्टूडियो में शासन कूलित आचरण करने वाले एंकर आम जनता के दु:ख-दर्द को बिसराकर केवल यह कर रहे हैं कि सत्ता के खिलाफ बोलने वालों को चुप कराया जाए।

कमल की सुवास सात साल से कुछ अधिक समय में मल की भयानक दुर्गन्ध में बदल गयी है। छोटे अखबार या अन्य मीडिया समूह तो जैसे मार ही दिए गए हैं।

पेट्रोल और डीजल की दाम बढ़ने के लिए आपकी कोई भी दलील गले के नीचे नहीं उतर सकती है। रसोई घर आपके अत्याचार से कराह रहे हैं। तेल और दाल सहित सब्जियों के दाम भी उस ऊंचाई को छू रहे हैं, जिसके आगे भयावह खाई ही दिखती है।

और इस सबसे आपराधिक तरीके से लापरवाह होकर आप देश को इस बहस में उलझा रहे हैं कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी या नहीं। कुछ तो नैतिकता और इंसानियत रखिये। और कुछ नहीं तो कम से कम देश की जनता से अपनी इन जघन्य गलतियों के लिए माफी ही मांग लीजिए। लेकिन आप ऐसा नहीं करेंगे।

क्योंकि आप तो हर सुबह उस आदमकद आईने में खुद को निहारते हैं, जो आपसे कहता है, 'तुमसे ही यह देश है, तुम ही इस देश का परम एवं इकलौता सत्य हो।' और जब कभी ये आइना गलती से सच बोल दे तो आप उसे तुरंत तोड़ फेंकते हैं। उससे निकले कांच के बारीक टुकड़े इस लोकतंत्र के भीतर घुसकर उसे लहूलुहान कर देते हैं।

आप पूरी तरह एक्सपोज हो चुके हैं, अपने खतरनाक मंसूबों के साथ। वरना कोई वजह ही नहीं थी कि पहले बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तथा फिर पश्चिम बंगाल की जनता ने आपको सिरे से खारिज कर दिया। लेकिन जनमत से आपको कोई लेना-देना नहीं है। आप धनमत वाली मानसिकता में पगे हुए हैं। जहां मौका मिला, आपके धनकुबेर वहां पहुंचकर निर्वाचित सरकार को गिराने के काम में लग जाते हैं।

ये हृदय परिवर्तन नहीं है, बल्कि वह हृदयविदारक परिवर्तन है, जो आप जनमत से दुष्कृत्य करते हुए स्थापित कर रहे हैं। आपने वो एक भी कोशिश नहीं उठा रखी है, जो इस देश के लोकतंत्र को परलोकगमन से बचा सके।

भुखमरी का ताजा इंडेक्स तो आपको पता ही होगा। लोग भूख से मर रहे हैं और आप अपनी सत्ता की भूख पूरी करने में मगन हैं। थोकबंद तरीके से रोजगार छीन लिए गये और आप निर्लज्ज होकर पकोड़ा तंत्र का गणित दे रहे हैं।

अर्थव्यवस्था किसी अनर्थव्यवस्था की शक्ल ले चुकी है। उद्योग जगत में आपके दाहिने-बाएं वालों के अलावा बाकी सब तिल-तिल मर रहे हैं। फुटकर व्यापारियों को आपने फूट-फूटकर रोने पर मजबूर कर दिया है। मझले और बड़े व्यापारी जीएसटी की चक्की में पिस रहे हैं।

ये सारा अनाचार किसी संगठित गिरोह की तर्ज पर किया जा रहा है। मध्यप्रदेश में आपके लाड़ले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आपके नक़्शे-कदम पर ही कदमताल कर रहे हैं।

शिवराजजी, राज्य के कुल बजट से अधिक की घोषणाएं करके आप ने अपनी जीभ की खुजली मिटा ली, किंतु इससे प्रदेश के विश्वास और विकास को अनिश्चय तथा अविश्वास की जो कोढ़-खाज सहन करना पड़ रही है, उसका इलाज कौन करेगा? आप और आपका भोंपूतंत्र 'लाड़ली लक्ष्मी' चिल्लाते हैं और दूसरी तरह वही लाड़ली रेप सहित अन्य अत्याचारों से चीत्कार कर रही है।

यहां हर टेंडर फिक्स्ड है और आपकी ऑनलाइन व्यवस्था ऑफलाइन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दी जा चुकी है। और वो कुछ विदूषक, जिन्हें दुर्भाग्य से मंत्री कहना पड़ता है, उनमें से कोई भैंस घुमा रहा है। कोई रैम्प वॉक कर रहा है। मंत्रियों के जन्मदिन सरकार के खर्चे पर मनाये जा रहे हैं। आप रोज पुलकित भाव में एक पौधा रोप रहे हैं और दूसरी तरफ आपके अफसर तथा मंत्री प्रदेश एक सुख-चैन की जड़ उखाड़ने के काम में लगे हुए हैं।

शिवराज जी! इस सब में निश्चित ही सहभागिता के स्तर पर आपका बड़ा दोष नहीं है, किंतु अनियंत्रित व्यवस्था पर नियंत्रण न कर पाने का दोष तो आपकी तरफ ही जाता है। अब केवल और केवल 'मिशन कमीशन' की निर्वस्त्र दौड़ चल रही है। लेकिन आपको इससे कोई सरोकार नहीं है। आप जुटे पड़े हैं चार सीटों के उपचुनाव की जीत के लिए।

वहां आप थोकबंद थोथी घोषणाएं कर एक बार फिर मतदाता को बहलाने-फुसलाने के काम में जुटे हुए हैं।

आखिर और कितना लिखा जाए इस सब पर? कलम की भोथरी कर दी गयी धार अब मोटी खाल वालों को चुभन नहीं बल्कि गुदगुदी वाले सुख का अहसास देने लगी है। लेकिन लिखना तो पड़ेगा, अपने होने के भाव को कायम रखने के लिए।

इसलिए हम रांगेय राघव के 'कब तक पुकारूं' की तरह का भाव नहीं अपना सकते।
हम निरंतर सत्य को पुकारेंगे, झूठ के सामने सीना तानकर। अनाचार के विरुद्ध सिर पे कफन बांधकर। आहत देश के लिए हमारे इन स्वरों को भविष्य की वह आहट मानिये, जो अंततः आप और आप जैसे सभी के सियासी आखेट की वजह साबित होगी।

 



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