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ताकि सनद रहे:चेताईये महानायक को खुद भी चेतिये,नैतिकता की धरती खिसक चुकी है

खरी-खरी            Dec 12, 2017


डॉ राकेश पाठक।

नरेंद्र दामोदर दास मोदी. निःसंदेह भारतीय राजनीति के 'महानायक' हैं। सन 2012 के बाद वो जिस तरह सफलता की सीढ़ियां चढ़े और 2014 में सत्ता के शिखर पर पालथी मार कर बैठ गए वो निर्विवाद रूप से एक करिश्मा ही है। आप मानें या न मानें ये "मोदी-युग" है और इसे इतिहास उनके नाम से ही दर्ज करेगा।

लेकिन नीम की तरह कड़वा सच यह भी है कि महानायक मोदी की भीमकाय छवि को जितनी जल्दी पलीता लगा उतनी जल्दी शायद ही किसी "महानायक" का छवि भंजन हुआ हो। जिससे देश ने "भीमा नायक आएगा सब दुख दूर करेगा" जैसी उम्मीदें लगाईं थीं वो ख़ुद बहुत तेजी से सीढियां उतरता जा रहा है, ये चिंता की बात है।

2014 के चुनाव में गढ़ी गयी "लार्जन देन लाइफ " छवि में मोदी महानायक ही नहीं "महामानव" बन गए। लगातार चुनावी सफलताओं ने उन्हें सातवें आसमान पर बैठा दिया। पार्टी के नेताओं को वे भगवान गौतम बुद्ध,महात्मा गांधी से भी महान दिखने लगे और शिवराज सिंह जैसे मुख्यमंत्री उनमें "ईश्वरीय चमत्कार" देखने लगे तो आम समर्थकों ने तो भक्ति की सारी सीमाएं पार कर दीं।

ये तिलिस्म कुछ समय और बना भी रहता लेकिन उनके अपने अहंकार ने नरेंद्र मोदी नाम के जादू की पोल खोलना शुरू कर दिया। इसमें आग में घी का काम किया उनके अपने पहले बोले गए बड़े—बड़े बोलों ने। हर बीतते दिन के साथ पुराने वीडियो और वर्तमान स्टैंड पर कथनी करनी के भेद खिल्ली उड़ाने को तैरने लगे।ऐसा एक भी मुद्दा नहीं है जिस पर आज नरेंद्र मोदी ने "उल्टे बांस बरेली" न लाद दिए हों।

जिस सोशल मीडिया की सवारी गांठ कर नरेंद्र मोदी 'महामानव' बने थे आज वो पूरी तरह उल्टा पड़ गया है। सोशल मीडिया के बेलगाम घोड़े ने आंखों पर बंधी पट्टी और मुंह पर लगा "मुसीका" उतार फेंका है। अब यह सायबर संसार अपने महानायक से बेबाक सवाल भी पूछ रहा है और हर दिन अपने पैने नाखूनों से उनकी "दिव्य मूर्ति" को खरोंच देता है।

इस नवम्बर,दिसम्बर की सर्दियों में नरेंद्र मोदी की छवि और ज्यादा ठिठुरती दिखने लगी। वे देश के मुखिया, प्रधानसेवक, प्रधानमंत्री की अपनी गरिमा को खूंटी पर टांग कर सिर्फ एक स्थानीय क्षत्रप बन कर रह गए। पहले हिमाचल और अब गुजरात में उन्होंने अपने भाषणों में जो कुछ कहा उससे उनके अंध समर्थक भी हैरान रह गए।

हिमाचल से सिर्फ एक 'चावल' ही देख लीजिए।
एक आम सभा में नरेंद्र मोदी ने कहा कि --"कश्मीर के पत्थरबाज
हिमाचल के सैनिकों को चुन चुन कर निशाना बनाते हैं.."
सवाल पूछा गया कि कश्मीर के पत्थरबाज एक सी वर्दी,टोपी, हेलमेट,बुलटप्रूफ जेकेक्ट्स में हिमाचल के आदमी को कैसे पहचानते होंगे...? जवाब कौन देता..?
लेकिन एक प्रधानमंत्री दो राज्यों के लोगों के बीच परस्पर घृणा बो रहा है ये किसी को अच्छा नहीं लगा।आखिर प्रधानमंत्री पूरे देश का अभिभावक होता है।

अब गुजरात की बात।
गुजरात चुनाव का नतीजा चाहे कुछ भी हो, बीजेपी भले बड़ी से बड़ी जीत दर्ज कर ले लेकिन अकेले इस चुनाव ने नरेंद्र मोदी को बहुत "बौना" बना दिया है। नैतिकता के धरातल पर उन्हें और गहरे धंसता हुआ हर रोज देखा जा सकता है। विकास की बात को पीछे कर हिन्दू मुस्लिम,अहमद पटेल, मंदिर चाहिए या मस्ज़िद, नीच शब्द को नीच जाति तक खींच लेना और अब पाकिस्तान की साजिश का रोना। हर दिन दो चार सीढ़ी नीचे उतरते नरेंद्र मोदी अब दुखी करने लगे हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ,पूर्व उपराष्ट्रपतिडॉ हामिद अंसारी, पूर्व थलसेना अध्यक्ष दीपक कपूर जैसों पर दुश्मन देश के साथ साजिश में शामिल होने का आरोप भारतीय राजनीति के पतन की पराकाष्ठा है।

एक प्रधानमंत्री का इस स्तर पर उतर आना अनैतिक राजनीति का चरम है। और अगर नरेंद्र मोदी के आरोप सही हैं तो ये सब आज, अभी इसी वक्त तिहाड़ के सींखचों के पीछे होना चाहिये।

नरेंद्र मोदी से हज़ार असहमतियों के बावजूद देश के प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा को इस तरह धूल में मिलता देखना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। हम और हमारा समाज सदियों से "नायक पूजक" रहे हैं.. इतनी मेहनत से गढ़े गए नायक को इस तरह सीढियां उतरते देखना सबको व्यथित कर रहा होगा लेकिन बाक़ी बोल इसलिए नहीं पा रहे क्योंकि श्रद्धा और भक्ति में आंखें मींचकर मंजीरे बजाते रहे हैं।

ऐसा न हो कि जब आप आंखें खोलें तब घनघोर मोहभंग से आपको काठ मार जाए। चेताईये अपने "महानायक" को और ख़ुद भी चेतिये।

 


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pankaj-tripathi

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