खतो-किताबत का अब वो मजा नहीं रहा, कबूतरों से खत को बचाकर रखो

खरी-खरी, राजनीति            Jul 05, 2019


प्रकाश भटनागर।
चहकती चिढ़िया पर इस्तीफे की चिट्ठी पढ़ कर गुजरे दौर के कबूतर याद आ गए। गजब करामाती थे। उड़ते-बैठते चिट्ठियां इधर से उधर कर गुजरते। एक कोने पर माशूक तो दूसरे पर माशूका। दिल की बात इधर से उधर करने की जुगाड़ में व्यस्त।

बीच में रहता था जालिम जमाना। यहीं कबूतर काम आते। छोरा-छोरी के महतारी-बाप की सारी चौकीदारी को नाकाम कर देते। बदले में कोई फीस नहीं। बस कुछ दाने डालकर उनकी सेवाएं ले ली जाती थीं। जमाना बदला तो कमबख्त कबूतर भी कुछ चंट हो गये।

'मसक्कली' में मौका मिलते ही पहले सोनम कपूर के कंधे और फिर लगे हाथ सिर तक चढ़ गये। उस पर हरामखोरी ये कि खत पहुंचाने का काम किया नहीं। सच में कुछ ग्रहण-सा लग गया है, चिट्ठियों के आदान-प्रदान की इस पुरातन पद्धति पर।

भाग्यश्री ने गाया था, 'कबूतर जा-जा, पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ।' मजबूरी में परिंदा ऐसा कर गुजरा, लेकिन उसकी हाय लगी। तो हुआ यह कि भाग्यश्री के पतिदेव हिमालय दासानी के तोते उड़ गये। वह जुआं खेलते-खिलाते पकड़ लिये गये।

तो इस कबूतर रामायण का कुल जमा मामला यह कि खतो-किताबत का अब वो मजा नहीं रहा। बल्कि इसमें खतरा ज्यादा है। इसलिए समझदार वही है, जो कबूतरों से खत को बचा कर रखे।

इस लिहाज से तो राहुल गांधी भी समझदार हैं। चार पेज का चिट्ठीनुमा इस्तीफा पालतू कबूतर तो कबूतर, बल्कि उन गिद्धों की नजर से भी 39 दिन तक छिपा रहा, जो इस खत पर अपनी नजर गड़ाये बैठे थे।

अब एक गूंगी, नीली चिड़िया ने इस खत की सार्वजनिक नुमाइश कर दी है। गजब की पाती है। नाना स्वरूप वाली। अदालत में पेश कर दो तो उसे भाजपा तथा संघ के खिलाफ आरोप पत्र की संज्ञा दी जा सकती है।

बस केवल दिग्विजय सिंह को थोड़ा बुरा लगा होगा। खत में सारे कांग्रेसियों को उलाहना देते हुए लिख दिया कि भाजपा और संघ के खिलाफ मैं अकेला लड़ रहा था। जबकि कापीराइट तो दिग्विजय सिंह जी के पास भी है।

वैसे इन चार पन्नों को पंजे वालों के बीच लहरा दो तो उसे 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है' फिल्म की रील के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। उसे सयानों को दिखाओ तो वे उसका इस्तेमाल स्वर्गीय जसपाल भट्टी के कॉमेडी शो 'उल्टा-पुल्टा' का और भी जबरदस्त हास्य वाला री-मेक तैयार करने में कर लेंगे।

यह चिट्ठी स्कूली बच्चों को दिखा दी जाए तो वे इस बरसात में उसका इस्तेमाल नाव बनाकर चलाने का आनंद उठाने के लिए खुशी-खुशी कर सकते हैं। लेकिन इस करामाती चिट्ठी का आखिर क्या इस्तेमाल होगा?

इस्तीफा तो हो गया। मंजूर भी अब हो ही जाएगा। भैया भी विलायत जाने के लिए होलडाल बंद करने में मसरूफ हो गये हैं। खत की उन्हें भी अब उतनी फिक्र नहीं रही।

ऐसे में इन चार पन्नों का हीरा-पन्ना की तरह इस्तेमाल हो सकता है। वह भी खालिस कांग्रेसमयी परिपाटी में। जवाहर लाल नेहरू की टेबल पर एक कागज कांच के नीचे रहता था। उसमें 'रॉबर्ट फ्रॉस्ट' कैद थे। उन्होंने लिखा था, 'गहन सघन मनमोहन वन तक मुझको आज बुलाते हैं।

किंतु किए जो वादे मैंने याद मुझे आ जाते हैं। अभी कहां आराम बदा, यह नेह निमंत्रण छलना है। अरे! अभी सोने से पहले मुझको मीलों चलना है।' तो अपना मत यह कि इस त्यागपत्र को कांग्रेस के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष की टेबल पर कांच के नीचे लगा दिया जाए। वह उसे पढ़-पढ़कर संघ तथा भाजपा के लिए अपने भीतर गुस्सा बढ़ाता रहे।

याद रखे कि किस तरह इन दो ने अपार जनसमर्थन हासिल करते हुए राहुल बाबा को मिलते दिख रहे तमाम समर्थन की वाट लगा दी थी। उसे स्मरण रहे कि कहां तो गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण के कागज को पढ़ने की तैयारी कर रहे थे और कहां उन्हें यूं त्यागपत्र लिखने पर मजबूर होना पड़ गया।

अपना तो यह तक मानना है कि इस पत्र को कांग्रेस का राष्ट्रीय संविधान घोषित कर दिया जाए। आखिर गांधी-नेहरू परिवार के चश्मो-चिराग के गुस्से का मामला है। क्या उसे यूं ही जाया हो जाने दिया जाएगा!

नहीं, ऐसा करना अहसान फरामोशी होगा। इस पाती को किताब की शक्ल दी जाएगी। प्रथम चार पृष्ठ राहुल के खत को समर्पित होंगे। शेष अनगिनत पन्ने उन हालिया इस्तीफों के नाम पर रहेंगे, जिन्हें कतिपय दुष्ट लोग चाटुकारिता की पराकाष्ठा साबित करने का षडय़ंत्र रच रहे हैं।

किताब का शीर्षक रखा जा सकता है, 'इस्तीफे के साथ मेरे प्रयोग।' अब ये भी तो गांधी ही हैं ना। भगवान ने राहुल का गुस्सा यूं ही कायम रखा तो आने वाले समय में इस किताब का अगला संस्करण 'चम्मचों के साथ मेरे प्रयोग' के तौर पर भी प्रकाशित हो जाएगा।

हेराल्ड हाउस वाला एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड है ना! अखबार नहीं तो कम से कम किताब छापने का काम तो कर ही देगा। सरकार बनी तो यह किताब स्कूली कोर्स में शामिल कर दी जाएगी। पहले की किताबों के अंतिम पृष्ठ पर राष्ट्रगान लिखा रहता था।

अब की किताबों पर आधुनिक फ्रॉस्ट यानी गांधी द्वारा रचित गान रहेगा। वह लिखेंगे, 'गहन सघन चाटुकारजन तक मुझको आज बुलाते हैं। किंतु किए जो ब्लंडर मैंने, याद मुझे आ जाते हैं। अभी कहां आराम बदा, ये इस्तीफा तो छलना है। अरे! और अभी खोने से पहले हमें विलायत चलना है।'

सुना है कि बेटे के साथ सोनिया गांधी भी विलायत जा रही हैं। राहुल के तारे गर्दिश में चल रहे हैं। मामला तारे जमीन पर वाला हो गया दिखता है। इसका एक गीत 'मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधेरे से डरता हूं मैं मां,' बहुत उम्दा है।

क्या विलायत की ओर उड़ते एक विमान में हम यह सुन पाएंगे, 'मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधों से डरता हूं मैं मां!'

 



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