जयंती माता मंदिर - शांति और सुकून मिलता है यहाँ

वीथिका            Jun 13, 2018


खंडवा से संजय चौबे।

जिला मुख्यालय खण्डवा से 95 किमी दूर प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पड़ा है जयंती माता का दरबार। यहाँ माता के दर्शन के साथ साथ दर्शनार्थियों को प्रकृति से भी रूबरू होने का मौका भी मिलता है । पहुँच मार्ग का घना जंगल जिसमे वन्य प्राणियों ओर वनौषधियों को देखने का भी मौका मिलता है । इस स्थान का मुख्य आकर्षण है यहाँ बारह महीने पेड़ों की छाँव तले कल कल बहता झरना।

 

जो भीषण गर्मी मे ठण्ड का एहसास करा देता है ।समतल जगह से होकर बहता पानी जब निचे गिरता है तो हिल स्टेशन का आभास कराता है। गिरते हुए झरने के ठीक पीछे गुफा है झरने को पार कर उस गुफा मे बैठ कर गिरते झरने को अन्दर से निहारने का आनंद लिया जा सकता है ।

गुफा के ऊपर बहता पानी और वही गुफा के सामने गिरता झरना गुफा के अन्दर बैठने वाले को भीषण गर्मी मे भी एयरकंडीशन से ज्यादा ठण्ड का एहसास करा देता है ।झरने का उदगम स्थल बहुत ही छोटा सा है लेकीन यही आगे जाकर बड़ी नदी का रुप धारण कर लेता है ।


यहाँ स्तिथ माता सिद्ध और जागृत है....!

ऊपर पहाडी पर जयंती माता मन्दिर है ।मन्दिर मे विराजित माता जी की प्रतिमा पर प्रति मंगलवार सिंदूर चढ़ाया जाता है । मन्दिर के सामने यज्ञ भूमि और दर्शनार्थीयों के लिये ठहरने के लिये धर्मशाला है ।


यहाँ तक कैसे पहुँचा जा सकता है

यह स्थान देवास और खंडवा दो जिलों के मध्य स्थित है।जहाँ देवास जिले से सतवास होते हुए पामाखेडी से सीधे जयंती माता पहुँचते है ।काँटाफोड़ से रातडी सूरमन्या सिरकिया होते हुए जयंती माता पहुँचा जाता है।इन्दौर से आने वालो फिफरी सीता मन्दिर होते हुए बावडी खेडा होते हुए पहुँच सकते है ।पुनासा से नर्मदा नगर इंदिरा सागर बाँध होते हुए 3नम्बर पुलिया मुख्य मार्ग से मात्र 17 किलोमीटर जंगल का कच्चा रास्ता पार करते हुए छोटे एवं बड़े वाहनो से जयंती पहुँचा जा सकता है ।

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यहाँ वर्ष मे चार नवरात्री मनाई जाती है....!

यहाँ वर्ष के चार नवरात्रि उत्सव मनाते है चेत्र,आश्विन,और दो गुप्त नवरात्रि । नवरात्रि उत्सव मे देवास,खंडवा,खरगौन और इन्दौर जिले के श्रद्धालु पुरे 9 दिनो तक हवन एवं अनुष्ठान देविपाठ करते है।और गुप्त नवरात्री मे सिर्फ हवन और पाठ होते है जिसमे विशेष आराधना होती है । यह मन्दिर पौराणिक काल से है ।

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श्रद्धालुओ को भन्डारे के लिये नम्बर लगाने होते है ।


चेत्र की नवरात्री मे पुरे नौ दिनो तक मेला लगता है और पुरे नव दिनो तक भन्डारा भी होता है जिसमे उपवास वालो के लिये फरीयाली भोजन भी रहता है ।नवमी पर अधिक भीड़ होती है ।

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नर्मदा परिक्रमा मे भी इस स्थान का महत्व है.....!

नर्मदा परिक्रमा वासियों का परिक्रमा के दौरान यही रात्रि विश्राम होता है ।पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने भी नर्मदा यात्रा के दौरान यही पर रात्रि विश्राम किया था उन्होने भास्कर को इस स्थान का महत्व और अनुभव बताते हुए कहाँ था की इस स्थान पर मुझे बहुत शांति मिली प्राकृतिक झरने मे नहाने से सारी थकान दुर हो गई । यह स्थान अध्यात्म का आभास कराता है ।

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दर्शनार्थीयों की संख्या को बड़ते देख वासुदेव सोलंकी सहित अन्य लोगो ने मिलकर ट्रस्ट बनाया जिसमे नौ पदाधिकारी और सदस्य बनाये गये । जिसमे ट्रस्ट और जनप्रतिनिधियों के सहयोग से परिक्रमा वासियों और दर्शनार्थीयों के लिये धर्मशाला का निर्माण हुआ है।नंदू भैया ने 5लाख रुपये की आर्थिक मदद की लोकेँद्रसिंह तोमर ने भी आर्थिक मदद की और N H D C द्वारा 7.5किलो वाट का सोलर पेनल लगाया । 11/12/13 को तत्कालीन कलेक्टर नीरज दुबे द्वारा इस स्थान का 0.883 हेक्टेयर का पट्टा दिया गया ।

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15वर्षों से लगातार हवन चल रहा है.....!

15वर्षों से यहाँ सतत हवन जारी है। चाँदगढ़ के राजा तकत सिंह के दो बेटे थे गुलाब सिंह और अर्जुन सिंह । अर्जुन सिंह ने वासुदेव को दत्तक पुत्र लिया था जो वर्तमान मे इस क्षेत्र मे वासुदेव सोलंकी के रुप मे जाने जाते है और जयंती माता मन्दिर की देखरेख मे मुख्य भूमिका वासुदेव सोलंकी की रहती है क्योंकि जयंती माता इस राज़ परिवार की कुलदेवी भी है ।

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ब्रिज बनने के बाद होगी दूरी कम मन्दिर पहुँचने वालो की संख्या बडेगी...!

खारी नदी पर एक करोड़ की लागत से ब्रिज का निर्माण शुरू हो गया है ।इस ब्रिज के बन जाने के बाद परिक्रमा वासियों को और देवास जिले के लोगो को खंडवा जिले के गाँवों मे आने जाने मे सुविधा होगी।
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गरीब बच्चो के लिये दिल्ली के मुखर्जी नगर मे IAS अकेडमी चलाने वाली राधिका पटेल जो की 18 जनवरी 2018 से नर्मदा परिक्रमा से नर्मदा परिक्रमा पर है उन्होने यात्रा के दौरान जयंती माता पहचाने पर उन्होने भी यहाँ रात्रि विश्राम किया था। भास्कर ने उनके मोबाईल नम्बर पर कॉन्टेक्ट कर उनसे जयंती माता स्थान का अनुभव पूछा तो उन्होने बताया की जयंती माता का यह स्थान सिद्ध और जागृत है, माता जी के मन्दिर के नीचे बहता हुआ झरना अध्यात्म स्थली के होने का आभास कराता है ।मैने झरने के उस पार गुफा मे अन्दर जाकर देखा तो मुझे ऐसा आभास हुआ की जैसे कोई संत या महात्मा अन्दर बैठा तप कर रहा है। घने जंगल मे वन्य जीव भी दिखाई देते है, हमारे परिक्रमा मार्ग मे हमने बाघ के पेरौ के निशान भी देखे है।
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जंगल का कच्चा रास्ता जंगल की सैर का आनंद देता है इसलिये रास्ता ऐसा ही होना चाहिये..!

SDO फोरेस्ट पी.के. पारासर से पूछा गया की क्या जयंती माता तक जाने वाले मार्ग पर पक्की डामर या सीमेन्ट क्रान्क्रिट की सड़क बनाई जा सकती है क्या ? उनका कहना था की सड़क बनाने के बाद वन विचरण का अनुभव नही हो पायेगा जयंती माता का स्थान प्राकृतिक और पौराणिक है क्योंकि उसके आस -पास के क्षेत्र मे कई ऐसे स्थान है जो धार्मिक मान्यताओं पर मुहर लगाते है , जैसे सीता माता का पृथ्वी मे समाया जाने वाला स्थान यहाँ से मात्र 7 किलोमीटर है, और इतनी ही दूरी पर एक प्राकृतिक कुआँ भी है जिसके बारे मे कहाँ जाता है,की इस कुएँ की गहराई का अभी तक पता नही लग पाया है, इस कुएँ का नाम खातर कुआँ रखा गया है।खतरनाक होने के कारण बोल चाल की भाषा मे इस कुएँ का नाम खातर कुआँ रखा गया है।

 

 



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