इरोम की हार भारतीय राज्य तन्त्र महंगी पड़ेगी

खरी-खरी, वामा            Jul 26, 2016


आशुतोष कुमार। सोलह साल इरोम भूख हडताल पर रहीं। दुनिया की सबसे बड़ी भूख हड़ताल। सबसे अहिंसक सबसे नैतिक सत्याग्रह, लेकिन भारतीय राज्यतन्त्र के कानों पर पर जूं न रेंगी। लेकिन यह तंत्र की बेशर्मी और बेगैरती नहीं है। क्या हमारे कानों पर जूं रेंगी ? हम जो मुख्य धारा के भारतीय हैं। क्या हमें पता चला मणिपुर कहाँ है? अफ्स्पा का फुल फॉर्म क्या है ? मनोरमा के साथ क्या हुआ था ? सौ से ज़्यादा कथित आतंकवादियों को खड़े पैर खलास करने के बाद कांस्टेबल थानाओजाम हीरोजित ने क्या रहस्योद्घाटन किया है ? क्या हमने कभी सुबह का नाश्ता छोड़ा, धरने पर बैठे, जुलूस निकला, प्रोटेस्ट मार्च किया ? क्या इरोम भारत माता की बेटी नहीं थी? क्या मणिपुर भारत का "अटूट अंग" नहीं था ? जब सोलह वर्षों में हमें बाल भर फर्क नहीं पड़ा तो क्या अगले सोलह सालों में पड़ जाता ? अगर आप सोचते हैं कि आपने इरोम को हरा दिया तो याद रखिए नैतिक और अहिंसक प्रतिरोधों के विफल होने की कोई शांतिपूर्ण परिणति नहीं होती। यही वक्त है, इरोम को विफल न होने देने के लिए उठ खड़े होने का। इरोम ने एक अलग ढंग की लड़ाई लड़ी। वह न भगतसिंह का ढंग था,न गांधी का। एक निराला प्रयोग था। हो सकता है आखिरकार वो हार गई हो। लेकिन यह 'हार' हुई तो भारतीय राज्य तन्त्र को और मंहगी पड़ेगी। फेसबुक वॉल से।


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