डॉ.प्रकाश हिंदुस्तानी।
'न खाने और न खाने देने वालों' के राज में देश को कौन-कौन खाये जा रहा है! अगर आप बैंकर्/आर्थिक पत्रकार/ अर्थशास्त्री या अर्थ चिंतक हैं तो यह सूची आपकी मदद करेगी, देखिए तो सही; कौन-कौन खुलेआम गबन कर रहा है हमारे, आपके और जनता के रुपयों का!)
महाचोरों और महाडाकुओं से भी बहुत बड़े सफ़ेदपोश धोखेबाज़ों के लिए अँग्रेज़ी में कितना अच्छा शब्द है --'willful defaulter' ! इन 'विलफुल डिफाल्टरों' की पूरी लिस्ट न तो वित्तमंत्री संसद में बता रहे हैं और न ही आरबीआई! लेकिन हाल ही में AIBEA ने इन 'विलफुल डिफाल्टरों' की 372 पेज की पूरी लिस्ट जारी की।
खास बात यह है कि इसमें सरकारी क्षेत्र के बेंकों के अलावा निजी क्षेत्र के आईसीआईसीआई, एचडीएफसी, एक्सिस, कोटक महिंद्रा, इंडसइंड, यस बैंक, यूटीआई म्यूचाल फंड, सिटी बैंक, आरबीएल, दोहा बैंक, धंलक्ष्मी बैंक, डोयचे बैंक, बैंक ऑफ बहरीन आदि भी शामिल है। इस सूची में विजय माल्या की कंपनियाँ तो हैं ही, इंदौर का विजय चौधरी भी है जिसने 26 बेंकों को 3000 करोड़ का चूना लगाया है।
विलफुल डिफाल्टर्स के बारे में भले ही आरबीआई कुछ न कहे, भले ही वित्त मंत्री कुछ न कहें, लेकिन एआईबीईए (ऑल इंडिया बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन) ने ऐसे विलफुल डिफाल्टर की सूची जारी कर दी है। सूची भी ऐसी-वैसी नहीं, सभी प्रमुख बैंकों के डिफाल्टर्स की सूची। इसमें सरकारी क्षेत्र के बैंक तो हैं ही, निजी क्षेत्र के भी प्रमुख बैंक जैसे आईसीआईसीआई, एचडीएफसी, एक्सिस, कोटक महिन्द्रा आदि शामिल हैं। सबसे ज्यादा और बड़े-बड़े डिफाल्टर सरकारी क्षेत्र की सबसे बड़ी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के हैं।

हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे चोरों के बारे में बोलते तो खूब हैं, अब देखना है कि वे क्या कर पाते हैं? असम के रंगापाड़ा में उन्होंने एक चुनावी सभा में कहा था कि वे बैंकों का पैसा लेकर भागने वालों को नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने दावा किया था कि वे बैंकों में लूट मचाने वालों से पाई-पाई वसूल कर लेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा था- ‘‘मैंने स्क्रू टाइट किया है, तो जेल के सलाखों के डर से वो लोग भागे हुए हैं, लेकिन उनमें से कोई भी बचने वाला नहीं है।’’ विजय माल्या का नाम तो प्रधानमंत्री ने नहीं लिया, लेकिन आरोप लगाया कि ऐसे लोगों को जान बूझकर कर्जा देना जारी रखा गया, जिनका इरादा गलत था। जवाब में कांग्रेस ने भी कहा कि विजय माल्या को आखिर किसने भागने दिया?
विजय माल्या पर बैंकों के 9091 करोड़ रुपए डकार कर ब्रिटेन भाग जाने का आरोप है। विजय माल्या तो केवल एक ही मछली है, बैंकों का धन लूटने वाले इस समुद्र में हजारों मछलियां मौजूद हैं और उनमें से कई तो बड़ी-बड़ी शार्क हो गई हैं। जैसे सूरत की हीरा कारोबार करने वाली प्रमुख कंपनी विन्सम डायमंड्स और उसकी तीन सहयोगी कंपनियों ने सरकारी बैंकों का 6800 करोड़ रुपया नहीं चुकाया। इन कंपनियों का प्रमोटर जतिन मेहता है। अरबों रुपए का कर्ज लेने वाली इन कंपनियों के सूरत के दफ्तर पर ताला लटका हुआ है। इस कंपनी ने पंजाब नेशनल बैंक के 900 करोड़, सेंट्रल बैंक के 549 करोड़, बैंक ऑफ महाराष्ट्र के 277 करोड़ और स्टैण्डर्ड चार्टड बैंक से भी बड़ी धनराशि कर्ज के तौर पर ली और अब चुका नहीं रहे है। स्टेण्डर्ड चार्टड बैंक ने अभी इस कंपनी को विलफुल डिफाल्टर घोषित नहीं किया है।
इंदौर का विजय चौधरी भी बैंकों के अरबों रुपए डकारने वाला प्राणी है। इसने 26 बैंकों से करीब 3000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया और चुका नहीं रहा है। सीबीआई और ईडी विजय चौधरी को तलाश कर रही है। विजय चौधरी ने पीएनबी के 410 करोड़, इंडियन बैंक 340 करोड़, यूनियन बैंक 242 करोड़, विजया बैंक के 180 करोड़, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के 128 करोड़ और अन्य बैंकों से भी इसी तरह मोटी-मोटी राशि कर्ज में ले रखी है।
यश बिड़ला की जिनिथ बिड़ला कंपनी स्टील पाइप बनाती है। महाराष्ट्र में खोपोली के पास इसका प्लांट है। इसकी स्थापना 1960 में हुई थी। पचास साल तक यह कंपनी स्टील के पाइप बनाती रही और उनका एक्सपोर्ट भी करती रही। 2011 में अमेरिका ने स्टील पाइप कंपनियों पर डंपिंग ड्यूटी लगा दी, जिससे यह कंपनी घाटे में आ गई। प्लांट बंद कर दिया गया और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का 140 करोड़ रुपया नहीं चुकाया गया, जिस कारण बैंक ऑफ इंडिया ने इसे विलफुल डिफाल्टर घोषित कर रखा है।
राज्यसभा में वित्त राज्य मंत्री ने जानकारी दी थी कि दिसंबर 2015 तक पब्लिक सेक्टर बैंकों में पचास बड़े डिफाल्टरों का 1 लाख 21 हजार 832 करोड़ रुपए बकाया है। इनमें 500 करोड़ या उससे ज्यादा लेने वाले अकाउंट की संख्या 1365 है। लोन डिफाल्ट करने वाले सेक्टर्स में इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्टील और टेक्सटाइल जैसे सेक्टर विशेष है। एसबीआई के 11 हजार 700 करोड़ और उसके सहयोगी बैंकों के 18700 करोड़, पीएनबी के 10900 करोड़, यूको बैंक के 4250 करोड़, कैनरा बैंक के 3200 करोड़, यूनियन बैंक के 3070 करोड़, बैंक ऑफ इंडिया के 2700 करोड़, आंध्रा बैंक के 2960 करोड़ और बैंक ऑफ बड़ोदा के 1190 करोड़ रुपए लोगों ने जीम रखे हैं। निजी सेक्टर के बैंकों में आईसीआईसीआई सबसे ऊपर है।
सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में पहल की और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से पूछा कि इन बड़े-बड़े चोरों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जाती और किसानों पर ही दबाव क्यों डाला जाता है? आरबीआई इन बड़े डिफाल्टरों के नाम उजागर क्यों नहीं करती, तो आरबीआई की तरफ से कहा गया कि अगर इन डिफाल्टरों के नाम घोषित किए गए, तो अर्थव्यवस्था संकट में पड़ जाएगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरबीआई इन सभी बड़े डिफाल्टरों के बारे में जानकारी सुप्रीम कोर्ट को बंद लिफाफे में दे। मजबूरी में आरबीआई को यह काम करना पड़ा।
बड़े-बड़े कारोबारी अपने प्रोजेक्ट की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर जरूरत से ज्यादा कर्ज बैंकों से ले लेते है और फिर उस पैसे को दूसरे धंधों में लगा लेते है। जब बैंकों को पैसा लौटाने की बारी आती है, तब वे अपने हाथ खड़े कर लेते है और कहते है कि बैंक चाहे तो उनकी गिरवी रखी संपत्ति बेचकर कर्ज की वसूली कर सकती है। जब बैंकें उस संपत्ति को बेचने के लिए जाती हैं, तब उसमें से अनेक संपत्तियां खरीदने के लिए कोई सामने नहीं आता, क्योंकि उनकी कीमत बहुत ज्यादा बढ़ी होती है।
कई बार कर्ज लेने वाले बैंकों से सेटलमेंट कर लेते हैं और दुबारा बैंकों को चूना लगा देते हैं। जैसे किसी ने बैंक से 100 करोड़ का कर्ज लिया और वह कर्ज नहीं चुका पा रहा है, तब वह व्यक्ति फिर बैंक के पास जाता है और कहता है कि अगर मुझे और 100 करोड़ रुपए का कर्ज मिल जाए, तो मैं अपने उद्योग का कारोबार को और आगे बढ़ा सकता हूं और सारा कर्ज चुका सकता हूं। बैंक फिर (जान बूझकर या अनजाने में)झांसे में आ जाती है और फिर 100 करोड़ रुपए उस डिफाल्टर को दे देती है। डिफाल्टर की नीयत तो पहले से ही राशि हजम करने की होती है, सो वह पैसे लौटाता नहीं और बैंक को दुबारा चूना लगा जाता है।
विजय माल्या के मामले में तो यह बात भी सामने आई थी कि विजय माल्या बैंकों के कर्ज के पैसे से हर तरह की अय्याशियां कर रहा था, लेकिन जब भी बैंक को कर्ज देने या कर्मचारियों को उनका हिस्सा देने की बात आती, वह मुंह फेर लेता।
हाल ही में एआईबीईए ने अपने स्तर पर इन डिफाल्टर लोगों की सूची जारी की है। इसमें कई जानी-मानी कंपनियां भी है। खास बात यह है कि इस सूची में प्राइवेट सेक्टर की बैंक भी शामिल की गई हैं। यह एक बहुत ही बड़ा साहसिक फैसला है, लेकिन मास मीडिया में इसकी चर्चा नहीं होती। अगर यह सभी डिफाल्टर बैंकों को पैसा दे दें और अपना काम ईमानदारी से करें, तो भारत की अर्थव्यवस्था में भारी सुधार हो सकता है।
इन विलफुल डिफाल्टरों से पैसा वसूल करना तो आवश्यक है ही, इन्हें जेल भेजना भी जरूरी है, ताकि दूसरे लोगों को सबक मिले। यहां यह कहना भी लाजिमी है कि इन विलफुल डिफाल्टर्स में से कई तो इतने बेशर्म, धूर्त और मक्कार हैं कि ये जेल जाने के बाद भी पैसा लौटाना नहीं चाहते। सुब्रत राय सहारा एक ऐसा ही नमूना हैं, जो पैरोल पर आने के बाद बार-बार कह रहा है कि उसके पास लाखों करोड़ की संपत्ति है, लेकिन अपनी जमानत के लिए उसने पांच हजार करोड़ नकद और इतने ही पैसे की बैंक ग्यारंटी जमा नहीं की। ऐसे विलफुल डिफाल्टर के पीछे बड़ी संख्या में नेता, ब्यूरोक्रेट और कानूनविद् होते हैं। अपने चोरी के इस पैसे में वे उन्हें भागीदार बना लेते है और कानून के दायरे से बचते रहते हैं।
एआईबीईए की सूची यहां अद्यतन दी जा रही है। आप इसमें देखें की कौन-कौन बड़े डिफाल्टर है? सबसे खास बात यह कि यह सूची बैंकवार दी गई है
सरकारी और निजी क्षेत्रों की बैंकों के विलफुल डिफाल्टरों की सूची : यहां क्लिक करें
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