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पानी रे पानी...! जिसने चेन्नई को खत्म किया वह सियासत है

खरी-खरी            Dec 04, 2015


punya-prasoon-vajpaiपुण्य प्रसून वाजपेयी बिजली है नहीं, पीने का पानी मिल नहीं रहा। सड़क पर पानी है। घरों में पानी के साथ सांप-बिच्छू भी हैं, अस्पताल डूबे हुये हैं, स्कूल पिछले 15 दिनों से बंद हैं। फ्लाइट की आवाजाही ठप है। बच्चों के लिये दूध नहीं है, आसमान से फेंके जाते खाने पर नजर है, तो जमीन पर किसी नाव या बोट का इंतजार है, 300 से ज्यादा की मौत हो चुकी है, 1240 झोपडपट्टियों में रहने वाले नौ लाख से ज्यादा लोग तिल—तिल मर रहे हैं! यह चेन्नई है। वही चेन्नई जो कभी मद्रास के नाम से जानी जाती थी। वही मद्रास जिसकी पहचान पल्लावरम के जरीये पाषाण काल से रही। वही पल्लावरम जो दुनिया के नक्शे पर सांस्कृतिक, आर्थिक और शौक्षणिक केन्द्र के तौर पर विकसित हुआ। और मौजूदा वक्त में वहीं चेन्नई जहां के हर शख्स कमाई देश में तीसरे नंबर पर आती है । वही चेन्नई आज बूंद बूंद के लिये मोहताज है। वही चेन्नई आज जिंदगी की जद्दोजहद में जा फंसी है। वही चेन्नई मदद के एक हाथ के लिये बेचैन है। वही चेन्नई अपनों के रोने को देख कर रो भी नहीं पा रही है। chennai-rain-flued-2 जिस चेन्नई ने बीते दस बरस में विकास की ऐसी रफतार पकड़ी कि उसकी अपनी अर्थव्यवस्था देश में चौथे नंबर पर आ गई। वही चेन्नई जिसने तकनीकी संस्थानों के आसरे दुनिया में अपनी पहचान भी बनायी और दुनिया के तमाम साफ्टवेयर कंपनियों को हुनरमंद दिये। वही संस्थान आज पानी में डूबे हैं। अंधेरे में समाये हैं। कम्यूटर तो दूर मोबाइल चार्ज करने तक के हालात नहीं हैं। जिस चेन्नई को चकाचौंध के आसरे विस्तार दिया गया, संयोग से आज उसी चेन्नई में सबसे घना अंधेरा है। 27 कालोनियों के 2 लाख परिवारों के सामने संकट है कि वह जायें तो कहां जायें? पानी में घर! गाडी में पानी! सड़क पर पानी! और आसमान से लगातार गिरते पानी के खौफ के बीच मदद के लिये सरकार नहीं सेना के जवान हैं। एनडीआरएफ की टीम है। नेवी के बोट हैं। सरकार ने तो निर्णय लेकर चेम्बरमबक्कम झील से पानी छोड़ा कि कहीं झील का बांध ही ना टूट जाये और झील उस जमीन पर हर किसी को लील ना ले जो झील की जमीन थी और अब उसकी जमीन पर क्रंकीट के घरों में लोग रह रहे हैं। तो इस पानी में सरकार कहीं नहीं है। सियासत के जरीये तैयार किया गया चेन्नई नगर कहीं नहीं है। जो बच रहा जो बचा रहा है वह सेना है और जिसने चेन्नई को खत्म किया वह सियासत है। क्योंकि चेन्नई में बेमौसम भारी बरसात सिर्फ इस बार का सच नहीं है। बल्कि बीते छह दशकों में कमोवेश हर दस बरस में इस तरह की जबरदस्त बारिश हुई । 1969, 1976, 1985, 1996, 1998, 2005, लेकिन जो 2015 यानी इस बार हुआ वह पहले नहीं हुआ। तो हर जहन में यह सवाल उठ सकता है कि ऐसा क्यों? तो सच कितना खतरनाक है जरा देख लीजिये। chennai-flude-airport 4 बरस पहले ही चेन्नई का जो चकाचौंध अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा बना आज वहां सिर्फ पानी—पानी है और 6 दिसंबर तक पूरी तरह बंद किया जा चुका है तो उसकी सबसे बड़ी वजह है कि हवाई अड्डा ही अडयार नदी की जमीन पर बना दिया गया। शहर का सबसे बड़ा माल फोनेक्सि वेलचेरी झील की जमीन पर बना दिया गया। अब जिस तरह चेन्नई वासियों को कहा जा रहा है कि वह सड़क मार्ग पर ना निकलें तो कल्पना कीजिये चेन्नई का सबसे बड़ा बस टरमिनल शहर के कोयबेडू इलाके में बनाया गया जो सबसे निचली जमीन पर है यानी बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाका है। देश के महानगर यूं ही मरते शहर साबित नहीं हो रहे बल्कि चकाचौंध और पैसा कमाने की होड़ में कभी किसी ने सोचा ही नहीं कि दो नदी और 35 झीलों वाले इलाके में अगर सिर्फ क्रंकीट खड़ा किया गया तो हालात बिगड़ेंगे तो क्यों और कैसे बिगड़ेंगे इसकी थाह भी कोई नहीं ले पायेगा और हुआ यही। बंकिघम कैनल और पल्लीकरनई कैनल की जमीन पर कंसट्रक्शन किया जा चुका है। एक्सप्रेस वे और बायपास बनाते वक्त देखा ही नहीं गया कि पानी की आवाजाही कही रुक तो नहीं रही। कैसे लोगों के जीवन के साथ खिलावाड़ कर विकास की खुली बोली लगायी गयी । इसका सच राष्ट्रीय राजमार्ग 45 और एनएच 4 के बीच बनाया गया बायपास है। जहां ड्रेनेज सिस्टम बंद हआ तो न्नागर,पोरुर,वनाग्राम,माडुरावोयल,मुग्गापेयर और अंबातूर डूब गये, जो डूबने ही थे। क्योंकि पानी निकाला कैसे जाये इसकी कोई व्यवस्था है ही नहीं। नौलेज कैरिडोर और इंजीनियरिंग कालेज का निर्माण भी डूब वालीजमीन पर ही हुआ। किस तरीके से जमीन पर कन्स्ट्रक्शन हुआ या यूं कहें बेखौफ जमीन का दोहन हुआ उसका सबसे बड़ा असर दुरआवोयल लेक की हालत देख कर समझा जा सकता है। जो कभी 120 एकड़ में फैला था लेकिन अब 25 एकड़ में सिमटा है और अब जब पानी फैला है तो वह 200 एकड़ को झील में बदल चुका है। दो मंजिली इमारत में भी यहां पानी ही पानी है। chennai-flude नदी और झील ही नहीं बल्कि कैनाल की जमीन पर भी कन्स्ट्रक्शन हो चुका है। अडयार क्रिक से कोवालम क्रीक के बीच दक्षिणी बाकिघम कैनाल जो 25 मिटर का होता है वह 10 मिटर में सिमट चुका है । चेन्नई के अंबेटूर टैक , अडमबक्कम टैक, पाल्लाईकरनाई टैक, विलिवक्कम टैक गायब है। और तो और चेन्नई में बाढ़ के हालात हों तो फिर जो पानी दशक भर पहले तक चेन्नई हारबार के उस इलाके में समा जाता था जो समुंदर से लगा था तो वह जमीन भी मालवाहक जहाज और फ्राइट कैरिडोर तले खत्म कर दी गई। इतना ही नहीं जिस शहर में दस बरस पहले तक पानी निकासी की 150 वाटर बाडिज थी अगर वह अब घटकर सिर्फ 27 बचेगी तो होगा क्या? जिस शहर की जमीन पर क्रंकीट का जंगल खड़ा करने की होड़ में 35 में से दस झीलों पर लोग रहने लगें तो फिर पानी का बुलबुला बढ़ेगा तो वह किस—किस को अपनी हद में लेगा यह कोई नहीं जानता। चेन्नई के करीब 20 लाख लोग थिलईगईनागर झील ,पुझविथक्कम झील ,वेलाचेरी झील ,और मडीपक्कम झील की जमीन को ही क्रकिट के घर बनाकर रहने लगे। दो सरकारी कालोनियां भी झील की जमीन पर ही बन गईं। दो दर्जन निजी कंपनियों के दफ्तर भी झील की जमीन पर ही खड़े हो गये। 10 बरस में करीब 90 हजार कंस्ट्रक्शन में इस बात का ध्यान ही नहीं रखा गया कि पानी की निकासी होगी कैसे? और जो प्लान शहर के लिये 2005 में जबरदस्त पानी के बाद बनाया गया वह पानी—पानी वाले मौजूदा हालात से पहले ही चेन्नई कारपोरेशन ने पानी में बहा दिया। जो जमीन 2005 में 80 रुपये स्कवायर फीट थी वह 2015 में पांच हजार रुपये स्कावयर फिट तक जा पहुंची है। लेकिन जमीन खरीदने और गैर कानूनी तरीके से कन्स्क्ट्रक्शन की होड आज भी है। लेकिन इसका कोई प्लान शहर में बदलती सियासत तले बन नहीं पाया कि कैसे गैरकानूी तरीके से बनाये गये सिवर सिस्टम को रोका जाये और पानी अगर कहीं जमा होता है तो उसे कैसे निकाला कहा जाये। यानी सवाल सिर्फ ड्रेनेज सिस्टम के फेल होने का नहीं है। आलम यह है कि समूचे चेन्नई के लिये कारपोरेशन के पास सिर्फ 22 ट्रेनेज मशीन है। जबकि प्लान के लिहाज से सवा सौ से ज्यादा होनी चाहिये। पानी चोक होने की सबसे बडी वजह ड्रेनेज के पाइंट पर ही कन्स्ट्रक्शन का होना है। इसलिये पहली बार सवाल यह उठा है कि आर्थिक मदद की रकम कुछ भी हो लेकिन मौजूदा वक्त में जान बचायी कैसे जाये और लोगो तक राहत पहुंचायी कैसे जाये? chennai-Rains-001 तो क्या चेन्नई को पटरी पर लाने के लिये सिर्फ पैसा चाहिये? रुपया चाहिये? डालर चाहिये? या कुछ और? क्योंकि जयललिता ने पिछले महीने ही मांगे थे 2000 करोड़। प्रधानमंत्री ने पिछले महीने 940 करोड़ रिलीज किये तो आज 1000 करोड़ की सहायता का एलान कर दिय। लेकिन नंबर से लगातार तीसरी बार जिस तरह का बारिश का ताडंव चेन्नई समेत तमिलनाडु के 60 फिसदी हिस्से को पानी—पानी कर चुका है उसने यह तो साफ कर ही दिया है कि चेन्नई को हजारों हजारों करोड़ की नहीं बल्कि ऐसी प्लानिंग की जरुरत है जहां शहर जिन्दगी के लिये बसे ना कि नाजायज कमाई के धंधे के लिये और इसके लिये आर्थिक मदद नहीं बल्कि ठोस नियम-कायदे चाहिये। क्योंकि चेन्नई में बीते दस बरस में जितने भी गैरकानूनी तरीके से कंस्ट्रक्श हुये या शहर के प्लानिंग सिस्टम को ही ताक पर रख कर इमारते खडी हुई उसमें मुनाफे की रकम ही 2 लाख करोड़ से ज्यादा की है। क्रंकीट के जो घर , दफ्तर, कालोनिया और माल से लेकर हवाई अड्डे तक नदी और झीलों की जमीन पर बनकर खड़े हुये उन जमीनों की कीमत मौजूदा वक्त के लिहाज से एक लाख करोड़ से ज्यादा की है। इसलिये नवंबर से अब तक नुकसान के जो सरकारी आंकड़े भी सामने आ रहे हैं वह 10 हजार करोड़ के हैं। जिसमें सिर्फ बीते तीन दिनो में 8 हजार करोड का नुकसान बताया जा रहा है। लेकिन जिस तरह देसी विदेशी मल्टी नेशनल कंपनियों के दफ्तर से लेकर तीन दर्जन आत्याधुनिक अस्पताल , 22 सिनेमा घर, 180 स्कूल, 16 कालेज की इमारतें और करीब दो लाख घर पानी में डूबे हैं उसमें नुकसान कितना ज्यादा हुआ होगा इसका सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है। लेकिन समझना होगा कि नुकसान का जो आंकड़ा सामने नहीं आ आ रहा है वह चेन्नई शहर की त्रासदी के सामने बेहद कम इसलिये है क्योंकि अधिक्तर कंस्ट्रक्शन ही गैरकानूनी है और यह मामला हाईकोर्ट में भी पहुंचा। जहां चेन्नई कारपोरेशन ने माना कि जार्ज टाउन सरीखी नयी जगह पर तो 90 फीसदी कंस्ट्रक्शन गैर कानूनी है । लेकिन समझना यह भी होगा कि चेन्नई के इस तरह के विस्तार में कितना ज्यादा भ्रष्टाचार है? क्योंकि कारपोरेशन ने हाईकोर्ट के सामने फाइन के तौर पर वसूली की रकम भी इन इलाकों से सिर्फ 1000 रुपये दिखायी, तो क्लापना कीजिये चेन्नई को दोबारा मद्रास वाले हालात में लाकर खड़े करना किस सियासत के बूते है? और इसके लिये कितनी रकम चाहिये। क्योंकि केन्द्र की मदद की रकम से कई गुना ज्यादा से बना चेन्नई का यह चमकने वाला अंतऱाष्ट्रीय हवाई अड्डा भी पानी में समाया हुआ है।


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