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मंदिर मस्जिद से आगे निकल चुके है अयोध्या के लोग ...

खरी-खरी            Jan 15, 2015


मंदिर –मस्जिद नही विकास की हो रही मांग अयोध्या में 60 प्रतिशत हिन्दू और 40 प्रतिशत मुस्लिम आबादी ayodhya-3 अयोध्या से, कुंवर समीर शाही अयोध्या रंग-बिरंगे फूलों के ढेर के बीच में बैठकर माला पिरो रही बरकतुल निशा को यह नहीं पता कि जो वो माला तैयार कर रही हैं, मंदिर में मूर्ति पर चढ़ेंगी या मज़ार की चादर पर। राम जन्मभूमि विवादित स्थान के पीछे मोहल्ला कोठीघाट में रहने वाली बरकतुल निशा के घर से, दो किमी दूर कजि़याने मोहल्ले में रहने वाले सन् 1949 से मुद्दई बाबरी मस्जि़द हाशिम अंसारी (93) के घर तक जाने वाली सड़क महज़ एक मार्ग नहीं है, बल्कि यह अयोध्या के बदलाव की कहानी बयां करती है। बरकतुल का घर 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद हुई हिंसा में धराशाई कर दिया गया था। ”देखो ये कुर्सी वाले हम लोगों (हिन्दू-मुस्लिम) को अपने फायदे के लिए लड़ा दिए और खुद मजे कर रहे हैं। पब्लिक परेशान रहती है इसी मंदिर-मस्जि़द के पीछे। ये नेता अपनी कुर्सी के लिए लड़ते हैं और उसमें मंदिर-मस्जि़द का मुद्दा रख देते हैं।” माला की धागा काट कर कैंची रखते हुए बरकतुल कहती हैं।अयोध्या में करीब 60 प्रतिशत हिन्दू परिवार हैं, जबकि 40 प्रतिशत मुस्लिम परिवार रहते हैं। विवादित राम जन्म भूमि की बाउंड्री के दूसरी ओर थोड़ी ऊंचाई पर मोहल्ला कोठीघाट में रहने वाली ज्य़ादातर मुस्लिम महिलाएं फूलों से मालाएं बनाने का काम करती हैं। जिन्हें 20 मालाएं बनाने का 6 रुपया मिलता है। बरकतुल निशा के घर से विवादित राम जन्मभूमि की लोहे की बाउंड्री के किनारे-किनारे चलने पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर बने चेक पोस्ट पर चार से छह पीएसी के जवान मुस्तैद दिखते हैं। इस भारी-भरकम सुरक्षा के बीच पास के ही रामकोट मोहल्ले में रहने वाले विनोद चन्द्र पाठक (40) अपने गेट की कुंडी चढ़ाते हुए कहते हैं, हम लोग मंदिर-मस्जिद मुद्दे से आगे निकल चुके हैं। मंदिर का मामला कोर्ट में है। उसे अब कोई पार्टी बनवा नहीं सकती। अब हम राम के नाम पर वोट नहीं देगे। एक्यूप्रेशर से मरीजों का इलाज करने के लिए जाने को अपनी साइकिल को संभालते हुए आगे कहते हैं, ”ये राजनेता कुछ नहीं करेगे। बस राजनीति करते हैं।” अयोध्या में हर साल लगने वाले सावन मेला, रामनवमी मेला और कार्तिक मेला पर यहां की अर्थव्यवस्था टिकी रहती है। या फिर रोज आने वाले श्रृद्धालुओं से जो कमाई होती है। ayodhya-1 कनक भवन के दक्षिण गेट पर एक पान की गुमटी पर खड़े रामकोट में भरत निवास के पुजारी देवानंद शास्त्री (40) कहते हैं, ”पहले अयोध्या का विकास हो, फिर मंदिर बने। ताकि झगड़ा समाप्त हो जाए।” लेकिन गुमटी में पान लगा कर दे रहे विक्की जायसवाल (22) को पहले विकास चाहिए। थोड़ी दूर ढलान से नीचे आने पर कनक भवन तिराहे पर श्री हनुमान मंदिर के महंत राम शरण दास (80) मानते हैं कि मोदी के आने से राम मंदिर क्या पूरे देश का विकास हो जाएगा। अपनी लंबी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए बोलते हैं, ”राम मंदिर आंदोलन में मैं शामिल था। हम लोगों ने काफी मेहनत की है। कनक भवन तिराहे पर ‘राय साहब धार्मिक कलेक्शन” नाम की एक दुकान में एक नौजवान कुछ तस्वीरों को सहेज रहा है। बैरागपुरा मोहल्ले में रहने वाले रामजी राय (28) सामने रखी रामदरबार की तस्वीर को कपड़े से साफ करते हुए कहते हैं, अब यहां राम मंदिर कोई चुनावी मुद्दा नहीं रहा। पहले इस धर्मनगरी का विकास हो, तब मंदिर बने।” तस्वीर को संभाल कर अपने स्थान पर रखते हुए बोलते हैं, ”अयोध्या ने इस बार विकास को वोट किया है ।जनगणना-2011 के अनुसार फैज़ाबाद जिले की साक्षरता दर करीब 69 प्रतिशत है, जो वर्ष 2001 की जनगणना कि हिसाब से 57 प्रतिशत थी। जो पिछले एक दशक में 12 फीसदी बढ़ी है। इसके बगल की दुकान में खाने-पीने का सामान बेचने वाले प्रहलाद मोदनवाल (70) का धंधा मंदिर-मस्जि़द विवाद के बाद से काफी मंदा पड़ा है। ”जब बाबरी मस्जि़द नहीं टूटी थी, तो इतने बैरियर नहीं थे, दुकानें भी खूब चलती थीं।” मोदनवाल बोलते हैं। कनक भवन तिराहे से थोड़ा आगे दाहिनी तरफ कुछ सीढिय़ां चढऩे पर हनुमान गढ़ी के महंत ज्ञान दास अपने कुछ भक्तों के साथ बैठे दिखाई देते हैं। सन् 1992 से लेकर आज तक अयोध्या में आए बदलाव पर वह कहते हैं, अभी जो झंझावत पहले से प्रवेश कर गया है, उससे लोगों को काफी हानि हुई है। धीरे-धीरे सब शांत हो रहा है। मंदिर-मस्जि़द मुद्दा उलझाया गया है। सब राजनीति की देन है। अब समय आ गया है कि सबका पटाक्षेप हो जाएगा। हनुमान गढ़ी से मेन सड़क की ओर चलने पर मिठाई की दुकान पर बैठे बजरंगलाल गुप्ता ने राम मंदिर आंदोलन में बड़ी सक्रियता से भाग लिया, पर अब वह इस मुद्दे पर होने वाली राजनीति से दुखी हैं। मंदिर-मस्जि़द आंदोलन के दौरान कारसेवकों की खूब देखभाल करने वाले श्री गुप्ता कहते हैं, नेताओं ने राम मंदिर मसले पर सिर्फ राजनीति ही की है। अयोध्या को आज तक पर्यटन नगरी क्यों नहीं घोषित किया गया? क्यों खाली वोट ही लेना चाहते हो? अगर इस बार भाजपा ने इस मुद्दे को बढ़चढ़ कर नहीं उठाया तो सही किया।” एक श्रृद्धालु को लड्डू तौलते हुए बोले, ”देखिए, विकास तो बहुत ज़रूरी है। जब हमारे पास फालतू पैसा होगा तभी सीताराम जपेंगे। अयोध्या के श्रृगार हाट में होटल चलाने वाले चन्द्र भोजनालय के मालिक कहते है की हमने 6 दिसंबर-1992 को सभी कारसेवकों को मुफ्त में खाना खिलाया। तब राम मंदिर को लेकर एक जुनून था। हम आज भी चाहते हैं कि राम मंदिर बने। लेकिन पहले अयोध्या का पर्यटन में नाम होना चाहिए। तब बाहर से ज्य़ादा लोग आएंगे और यहां के लोगों की कमाई भी होगी। अब तक लोग मंदिर-मस्जि़द में फंसे रहे, विकास का मुद्दा कभी उठा ही नहीं! बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी का कहना है की , ”देखिए अब हम मंदिर-मस्जि़द की बात अब नहीं करेंगे। हम विकास की बात करेंगे। हम विकास चाहते हैं, मंदिर या मस्जि़द नहीं। ले जाओ मंदिर और ले जाओ मस्जि़द ..अयोध्या आज विकास चाहती है। मंदिर-मस्जि़द मसले पर सिर्फ राजनीति हुई है। यहां किसी ने विकास नहीं किया। हिन्दू-मुस्लिम को सिर्फ लड़ाया ही है।” हाशिम अंसारी वर्ष 1949 से बाबरी मस्जि़द का मुकदमा लड़ते आ रहे हैं। 93 वर्ष की उम्र में गुस्से से कांपते हुए तेज आवाज में हासिम कहते हैं, ”बाबरी मस्जि़द का फैसला हो, चाहे कुछ भी हो। पर आज करो। हमारे खिलाफ करो। उस पर राजनीति मत करो। इस देश के नौजवानों को नौकरी चाहिए, बाबरी मस्जि़द नहीं।” कुर्सी की खातिर मंदिर-मस्जि़द का मुद्दा रख देते हैं ‘हमें हिन्दुओं से कोई खतरा नहीं’ शादी के बाद बरकतुल को अयोध्या में रहते हुए 35 वर्ष हो गए। पर कभी उन्हें यहां रहने वाले हिन्दू परिवारों से कोई शिकायत नहीं रही। वर्ष 1992 की घटना को याद करते हुए बताती हैं, टेंशन तो पहले से था। पर हम लोगों को अंदाजा नहीं था कि यहां क्या होने वाला है। हम समझ रहे थे कि हर इंसान तीर्थ को जाता है। उसके बाद पहली तारीख को पता चला कि ये लोग (कारसेवक) बहुत ज्य़ादा उधम करने लगे। सामने खेत में (हाथ से इशारा करते हुए) उसमें सब वही लोग नज़र आ रहे थे। जिसके बाद दहशत जैसी लगी, तो हम बच्चों को लेकर और कुंडी चढ़ा के निकल गए। पैदल ही इधर उधर भागे। रिक्शे से फैज़ाबाद भाग गए। थोड़ा रुक कर बोलती हैं, ”हमारे मियां की दुकान कजि़याने में थी। जब वो शाम को आए तो देखा कि बाहर काफी भीड़ लगी है। तो वो भी भाग गए। जिसके बाद दुकान में लूटपाट काफी हुई और वो खत्म हो गई। फिर हम पांच से छह महीने इधर-उधर रहे और घर नहीं आए। जब हम लोग वापस आए तो आधे रास्ते से डर के मारे वापस चले गए।” ”कोई घर ऐसा नहीं था, जो पूरा खड़ा रहा हो। हर जगह लूटपाट हुई थी। कोई घर ऐसा नहीं था जो पूरा खड़ा रहता। हमें आसपास के हिन्दुओं से कुछ नहीं है, जो किया बाहरियों ने किया।” बरकतुल कहती हैं। अयोध्या के संत-महंत जितना हाशिम को मानते हैं, उतना मुस्लिम लोग नहीं मानते। मैं महंत परमहंस के साथ एक ही तांगे पर मुकदमा लडऩे जाता था और साथ बैठकर नाश्ता करता था।” हाशिम बताते हैं, ”मैं सन् 1949 से मुद्दई बाबरी मस्जि़द हूं। हमारी सुरक्षा के लिए चार सिपाही हैं। विनय कटियार के पास 125 सिपाही हैं। हमको हिंदुओं से न कोई खतरा था, न है। हम मंदिर-मस्जि़द के झगड़े से दूर रहना चाहते हैं। हम अपने कान से अब मंदिर-मस्जि़द की बात नहीं सुनना चाहते। हिन्दू-मुस्लिम आपस में भाई-भाई चाहिए।”बता दे की बीते 6 दिसम्बर के बाद पुरे देश में चर्चा का विषय बने हासिम ने अपने बेटे इकबाल को मुकदमे की पैरवी करने के लिए नामित क्र दिया है ! अब तक देश की राजनीति का हाल तय करती आ रही अयोध्या की बदहाली पर हासिम कहते हैं, यहां किसी के मन में कुछ नहीं है, यहां सब भाई-भाई मिल कर रहते हैं। बार-बार लड़ाने की कोशिश की जा रही है। अयोध्या के हिन्दुओं ने कभी मुसलमानों का नुकसान नहीं किया। नुकसान किया बाहर के लोगों ने। मंदिर-मस्जि़द मसले को लेकर लंबी खिंची कानूनी लड़ाई पीछे हाशिम राजनीति को ही मानते हैं। वह बताते हैं, ”बाबरी मस्जि़द मामले में पहला मुकदमा गोपाल सिंह विशारद का, दूसरा परमहंस का, तीसरा मुकदमा निर्मोही अखाड़े का, चौथे मुकदमे में मैं मुद्दई हूं। एक सुनवाई पर मेरे सामने महंत परमहंस ने अपना मुकदमा उठवा लिया। लेकिन सरकार नहीं मानी।” आगे कहते हैं, ”हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ हम सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना चाहते थे। महंत ज्ञानदास ने कहा कि बैठकर फैसला कर लो। हम आपस में बातचीत करते रहे, ये हिन्दू महासभा वाले सुप्रीम कोर्ट भाग गए। महंत ज्ञानदास ने पूरी ताकत लगा दी। सभी को बुलाया, और कहा कि आपस में तय कर लेते हैं, अदालत नहीं तय कर पाएगी। अगर फैसला चाहते हो तो सुप्रीम कोर्ट क्यों गए? हम तो बाद में गए। हमें लोगों ने मज़बूर किया कि एकतरफा फैसला हो जाएगा। तो सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। एक पार्टी कहती है कि हमारी सरकार बनेगी तो हम मस्जि़द देंगे। एक पार्टी कहती है हम मंदिर देंगे। हर पार्टी चाहती है कि लड़ते रहें। करो राजनीति, करो न। खाली रामलला को जेल में बंद करके राजनीति करते हो। हासिम तो मर जाएगा पर ये नेता हिन्दू-मुस्लिम को लड़ाकर मुल्क तबाह कर देंगे। हम शांति चाहते हैं। समाजवादी पार्टी के अयोध्या नगर विधायक तेज नारायण पाण्डेय कहते है की उन्होंने तो विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था और उनकी कोशिस है की अयोध्या पर्यटन नगरी के रूप में पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाये ! दो साल में अपने किये गये विकाश कार्यो की लम्बी चौड़ी लिस्ट दिखाते हुए श्री पाण्डेय कहते है की दो वर्षो में अयोध्या का जितना विकास हुआ उतना पिछले 60 वर्षो में नही हो सका ! भाजपा सांसद लल्लू सिंह भी अयोध्या को लेकर काफी संजीदा दीखते है और कहते है की राम मंदिर हमारी आस्था का सवाल तो है लेकिन विकास पहले है !


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