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मोदी सरकार में तेल का खेल...?

खरी-खरी            Jan 27, 2015


अयोध्या से कुंवर समीर शाही पेट्रोल, डीजल, कुकिंग गैस और हवाई जहाजों में पड़ने वाले टरबाइन फ्यूल की कीमतों में कमी का जो फायद उपभोक्ताओ को मिलना चाहिए था, वह नरेन्द्र मोदी सरकार की हेराफेरी का शिकार हो गया। हाल के तकरीबन तीन महीनों से इण्टरनेशनल मार्केट में क्रूड यानी कच्चे तेल की कीमतों में काफी गिरावट आई है। मोदी सरकार बनने के वक्त यानी अप्रैल मई में इण्टरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत एक सौ दस डालर फी बैरल थी जो पिछले तीन महीनों में गिर कर उनचास (49) डालर पर आ गई। मतलब साफ है कि आम उपभोक्ता (उपभोक्ताओं) को अप्रैल मई में पेट्रोल और डीजल जिस कीमत पर मिल रहा था, अब उससे आधी कीमत पर ही मिलना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पेट्रोलियम मंत्री ने आम लोगों को बेवकूफ बनाया। थोड़ा-थोड़ा करके छः महीनों में तकरीबन पांच रूपये लीटर ही कम किया है। बारह नवम्बर से पहली जनवरी तक मोदी सरकार ने कुल मिला कर पौने छः (5.75) रूपये की एक्साइज ड्यूटी डीजल और पेट्रोल पर लगा दी है। इस एक्साइज ड्यूटी से ही सरकार 31 मार्च तक दस हजार छः सौ करोड़ रूपये कमाएगी। कहा गया कि इस पैसे को सड़क बनाने पर खर्च किया जाएगा। सरकार खुद तो इस किस्म की कमाई कर ही रही है प्राइवेट सेक्टर और थैली शाहों व कारपोरेट घरानों को भी खुली छूट दी गई है कि वह भी अपनी तिजोरियां पूरी तरह भर लें। पिछले तीन चार महीनों में हवाई जहाजों में पड़ने वाले टर्बाइन फ्यूल (तेल) की कीमतों में एक चैथाई से भी ज्यादा की कमी आई है, लेकिन एयर इण्डिया और प्राइवेट एअर लाइन्स ने किराए में कमी करने के बजाए नवम्बर से दिसम्बर के आखिर तक किराए के नाम पर पूरी तरह लूट मचा दी, लखनऊ से दिल्ली का किराया जो ढाई हजार (2400-2500) रूपये तक होना चाहिए वह 18 से 22 हजार तक वसूला गया यानी तेल सस्ता और किराया महंगा। जब जब दुनिया के मार्केट में क्रूड महंगा होते उस महंगाई को उपभोक्ता (उपभोक्ताओं) के सर मढ़ दिया जाए और जब सस्ता हो जाए तो सरकार तेल कम्पनियों, एयरलाइन्स, कारपोरेट घराने और थैलीशाह अपनी तिजोरियां भरें यही तो वह अच्छे दिन हैं जो नरेन्द्र मोदी सरकार लेकर आई है। जिस तरह अंग्रेजों ने शुरू में मुफ्त चाय पिला कर आम लोगों को उसका आदी बनाया फिर चाय के बहाने लोगों की जेबें काटने लगी, ठीक उसी तरह पहले तो मुल्क के पच्चासी फीसद लोगों के हाथों में सस्ता मोबाइल सवाल थमा दिए गए अब मोदी सरकार कह रही है कि मोबाइल की तादाद बहुत ज्यादा हो जाने की वजह से स्पेक्ट्रम कम पड़ रहे हैं और आइन्दा स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए टेलीफोन रेग्यूलेटरी अथारिटी ने 17 से 33 फीसद तक का इजाफा करने का फैसला किया है। मतलब यह कि मोबाइल काल्स भी अब चालीस से पचास फीसद तक महंगी हो जाएगी। क्या मोदी ने एलक्शन मुहिम के दौरान इन्हीं अच्छे दिनों का वादा किया था? मुल्क की सत्ता संभाले भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सात महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है इन सात महीनों के दौरान प्रधानमंत्री ने एक भी वादा पूरा नहीं किया है। बीजेपी, मोदी और उनके हामी झूट बोलने और अवाम को गुमराह करने में माहिर हो चुके हैं तभी तो वह सामान्य स्तर पर पेट्रोल व डीजल की कीमतों में आधे से भी ज्यादा कमी आने को भी वह अपना ही कारनामा बता रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि सामान्य स्तर पर तेल की कीमतों में जो कमी आई है उसका फायदा उठाकर मोदी सरकार अपना खजाना भर रही है और जनता पर महंगाई का बोझ डाल रही है। संन्य स्तर पर तेल की कीमतों में कमी आने पर जैसे ही पहली बार पेट्रोल और डीजल के दामों में मामूली कमी आई वैसे ही नरेन्द्र मोदी उनकी भारतीय जनता पार्टी और उनकी पिछलग्गू व मीडिया का एक तबका इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कारनामा बताने लगा। किसी ने भी यह बताने की कोशिश नहीं की कि अब पेट्रोल और डीजल को खुले बाजार के हवाले कर दिया गया है और अब कम से कम कहने के लिए उनकी कीमतों पर सरकार का कोई कन्ट्रोल नहीं है बल्कि अब उनके दाम इंटरनेशनल मार्केट के हिसाब से तय होते है। अगर सामान्य स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में कमी आती है तो दाम घटने-बढ़ने में सरकार का कोई रोल नहीं होता है। लेकिन केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार सामान्य स्तर पर कम हुई क्रूड आयल की कीमतों का फायदा भी देश की जनता को देने के लिए तैयार नहीं है। यही वजह है मोदी सरकार एक्साइज ड्यूटी बढ़ा देती है, जिसकी वजह से उनका खजाना तो भर जाता है मगर देश की जनता की जेबों पर जो बोझ पड़ रहा है वह कम नहीं होता। नरेन्द्र मोदी की बीजेपी सरकार अवाम की जेब काटकर अपना खजाना भरने में लगी है। इंटरनेशनल मार्केट में इस वक्त क्रूड आयल की कीमत अड़तालिस था उन्चास डालर फी बैरल है। पेट्रोल पम्प डीलर्स का कहना है कि अगर सरकार ने एक्साइज ड्यूटी न बढ़ाई होती और पेट्रोल कम्पनियों को अपनी तिजोरी भरने की छूट न दी होती तो इस वक्त पेट्रोल की कीमत बत्तीस से तैंतीस रूपए फी लीटर के आसपास होती और डीजल की कीमत पच्चीस - छब्बीस रूपए फी लीटर तक हो जाती, लेकिन केंद्र सरकार ने बार-बार एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी करके और तेल कम्पनियों को मालदार बनाने की वजह से पेट्रोल की कीमतों को कम नहीं होने दिया। इनका कहना है पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी के बावजूद रीटेल प्राइज इंटरनेशनल प्राइज के मुताबिक नहीं है, इन लोगों का कहना है कि जून से अब तक बाजार में तेल की कीमत में पचास फीसद से ज्यादा की कमी आई है लेकिन पेट्रोल की कीमत में महज नौ फीसद और डीजल की कीमत में सिर्फ आठ फीसद की कमी की गई है। केंद्र सरकार की ओर से बाकायदा प्रेस रिलीज मे कहा गया है कि केंद्र सरकार के इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत पन्द्रह हजार किलोमीटर लम्बी सड़कें बनाने के लिए पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी दो रूपए बढ़ाई गई है। नरेन्द्र मोदी की केंद्र सरकार ने यह कदम उस वक्त उठाया जब इंटरनेशनल बाजार में तेल की कीमतों ने तीन डालर फी बैरल की कमी आई थी और वह साठ डालर फी बैरल से कम होकर सत्तावन डाॅलर फी बैरल पर आ गई थी। एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने से पेट्रोल और डीजल की मौजदा कीमतों पर कोई फर्क नहीं पडे़गा, लेकिन अगर यह दो रूपए की एक्साइज ड्यूटी न लगाई जाती तो पेट्रोल की कीमतों में पौने छः रूपए और डीजल की कीमतों में साढ़े चार रूपए की कमी आ जाती। अब यह पैसा इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के तौर पर सीधे सरकारी खजाने में जाएगा। इस वजह से सरकार को तेरह हजार करोड़ रूपए का अधिक रेवेन्यू मिलेगा। यह वह रकम है जिसका फायदा देश की जनता को मिलता मगर मोदी सरकार ने जनता की जेब से वह रकम निकाल कर अपने खजाने में भर ली है। यूपीए सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को खुले बाजार के हवाले कर दिया था तो अट्ठारह अक्टूबर 2014 को मोदी सरकार ने डीजल पर से भी सरकारी कन्ट्रोल हटा कर उसे खुले बाजार के हवाले कर दिया था। इसके बावजूद पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी आने को मोदी सरकार का कारनामा बताया जा रहा है। जबकि कीमतों में कमी की असल वजह इंटरनेशनल बाजार में क्रूड आयल की कीमतों में कमी होना है। भारत चूंकि अपनी जरूरत का सत्तर फीसद तेल इम्पोर्ट करता है इसलिए कीमतें विदेशी बाजार के हिसाब से ही तय होती है। इसलिए पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी होना मोदी सरकार का नहीं विदेशी बाजार का कारनामा है। तकरीबन पांच छः महीने पहले इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड आयल की कीमत एक सौ दस डालर फी बैरल थी जो अब कम होकर अड़तालीस डालर फी बैरल हो गई है यानि इंटरनेशल बाजार में तेल की कीमतें चार-पांच महीने में आधी से भी कम हो गई मगर भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें उस हिसाब (अनुपात) में कम नहीं हुई, दरअस्ल ऐसा मोदी सरकार की बदनियती की वजह से हो रहा है। जब भी दुनिया के बाजार में तेल की कीमतें कम होती है तो जनता को राहत देने के लिए पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम करने के बजाए मोदी सरकार उस पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा देती है। पिछले तीन महीने में तीन बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई। नरेन्द्र मोदी सरकार ने सबसे पहले बारह नवम्बर को पेट्रोल और डीजल पर डेढ़ रूपए फी लीटर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई थी। इसके बाद दिसम्बर में फिर सामान्य स्तर पर तेल की कीमतें कम हुई तो मोदी सरकार ने फिर सवा दो रूपए फी लीटर पेट्रोल पर और एक रूपया फी लीटर डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी। इस वक्त तेल की कीमत अड़तालीस डालर फी बैरल है तो नरेन्द्र मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर दो रूपए फी लीटर की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी। इस तरह तेल की कीमतों में पचास फीसद से ज्यादा की कमी दुनिया के बाजार में आ चुकी है मगर मोदी सरकार ने अवाम को पेट्रोल में नौ फीसद और डीजल में आठ फीसद की ही कमी का फायदा दिया है। सरकार के इस रूख से महंगाई कम नहीं हो रही है।नरेन्द्र मोदी सरकार ने अगर तीन महीने में तीन पर एक्साइज ड्यूटी न बढ़ाई होती तो इस वक्त पेट्रोल की कीमतें पैंतीस रूपए फी लीटर से भी कम होती। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी आती तो माल भाड़ा सस्ता होता, जिसकी वजह से महंगाई में कमी आती। इसके अलावा रेलवे और बसों के किराए में भी कमी आती, क्योंकि रेलवे तकरीबन बाइस फीसद डीजल का इस्तेमाल करता है, ट्रकों और रेलवे के किराए और ढुलाई में कमी आने से महंगाई में भी कमी आती, लेकिन लोगों को ‘अच्छे दिन’ लाने के ख्वाब दिखाने वाले नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के जनता के फायदे के खिलाफ होने वाले फैसले जनता के लिए बुरा ख्वाब साबित हो रहे है। देश से महंगाई कम करने के दावे करने वाले पेट्रोलियम मंत्री अगर चाहते तो तो महंगाई में कुछ कमी कर सकते थे मगर थैलीशाहों की हमदर्द मोदी सरकार को गरीब जनता की परेशानियो से कुछ लेना देना नहीं है तभी तो पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी करने के बजाए उन्होंने तीन बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर अपना खजाना भर लिया और जनता को मिलने वाले फायदे से सरकार की जेब भर ली और तेल कम्पनियों को भी जम कर फायदा करा दिया। जाहिर है तेल कम्पनियों से ही मोटी रकम की हेराफेरी भी मुमकिन है। मोबाइल- एक सर्वे के मुताबिक देश की एक करोड़ तीस लाख आबादी में से तकरीबन नब्बे करोड़ लोगो के पास मोबाइल फोन है। अभी तक मोबाइल काल्स काफी सस्ती पड़ती है। ज्यादा फोन हो जाने की वजह से अब मोबाइल कम्पनियों को ज्यादा स्पेक्ट्रम की जरूरत पड़ रही है। सरकार ने 800, 900 और 1800 मोगाहटर््ज की नीलामी की घोषणा कर दिया। इसी के साथ टेलीफोन रेग्यूलेटरी अथारिटी ने कह दिया कि अब जो स्पेक्ट्रम नीलाम किए जाएंगे उनकी बुनियादी कीमतों में सत्रह से तीस फीसद तक की बढ़ोतरी किया जाएगा। अब जो भी टेलीफोन कम्पनी इतने महंगे स्पेक्ट्रम खरीदेगी, वह टेलीफोन काल्स की कीमतें भी आज के मुकाबले डेढ़ से दो गुने तक वसूलेगी। जिस देश के पच्चासी फीसद से भी ज्यादा लोग मोबाइल इस्तेमाल करते हैं अगर उनको हर काल की कीमत डेढ़ से दो गुनी चुकानी पड़ेगी तो सरकार और मोबाइल कम्पनियों को हजारों करोड़ का फायदा होगा। इस नीलामी से ही इतना बड़ा फायदा सरकार को मिलने वाला है कि उसी से मोदी सरकार अगले साल के बजट में अपने अन्य घोषणा को तकरीबन चार फीसद तक शामिल कर देगी। सड़कें बनाने के लिए पेट्रोल और डीजल की कीमतों से दस हजार करोड़ से ज्यादा की आमदनी होगी। अगले महीने यानी फरवरी में सरकार स्पेक्ट्रम की जो नीलामी करने जा रही है उसी से तकरीबन अस्सी हजार करोड़ रूपये सरकार के खजाने में आएंगे। याद रहे कि बीजेपी और उसके मीडिया के हंगामे की वजह से मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने अपने आखिरी सालों में स्पेक्ट्रम की कीमतों में बढ़ोतरी कर दिया था इस वजह से नीलामी में कम्पनियां शामिल नहीं हुई थी। इसके बावजूद सरकार ने बासठ (62) हजार करोड़ रूपये कमाए थे सरकार के नए कदम से मोबाइल कम्पनियां भी मालामाल होंगी और सरकार का खजाना भी भरेगा अगर कोई नुकशान में रहेगा तो वह है मोबाइल इस्तेमाल करने वाले (उपभोक्ता) मोदी सरकार की पहले दिन से ही प्राथमिकता थैलीशाहों और कारपोरेट घरानों की दौलत में बढ़ोतरी करने की रही है। इसी लिए देश के गांवों में रहने वाली सत्तर फीसद काश्तकारों की आबादी को बर्बाद करने और कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए मोदी सरकार ने लैण्ड एक्वीजीशन कानून में बदलाव कर दिया वह भी इतनी जल्दबाजी में कि संसद में संसोधित बिल लाने के बजाए आनन फानन में आर्डीनेन्स लाया गया। मोदी और उनकी सरकारी की मंशा साफ है कि पहले तीन सालों में वह जनता की गर्दन दबा कर सरकारी खजाना और कारपोरेट घरानों की तिजोरियां भरेंगे फिर आखिरी डेढ़ दो सालों में कुछ पापुलर फैसले करके एक बार फिर जनता को फंसा कर उनके वोट हासिल करने की कोशिश करेंगे।


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