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राजनीति में घमंड का कोई स्थान नहीं

खरी-खरी            Feb 11, 2015


समीर शाही दिल्ली के नतीजे कम से कम एक बात तो साफ करते हैं कि राजनीति में घमंड का कोई स्थान नहीं होता। जिस तरह अरविंद केजरीवाल पर हमले किये गये उसने दिल्ली की जनता को साफ-साफ संदेश दे दिया कि अब दिल्ली दरबार घमंड में चूर हो गया है और वक्त आ गया है जब इस घमंड को सबक सिखा दिया जाये और दिल्ली में यही हुआ। यह सबक है उन राजनेताओं के लिए जिन्हें गुमान है कि अगर जनता ने उन्हें सत्ता सौंप दी तब वह कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हैं। दिल्ली चुनाव से पहले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह के संदेश दे रहे थे, वह उनके व्यक्तित्व को शोभा नहीं देता। देश की जनता ने अपार समर्थन के साथ उन्हें अपना भरोसा दिया था। मगर प्रधानमंत्री जी इस भरोसे को कब किसी दूसरी तरफ ले गये उन्हें पता ही नहीं चला। एक अच्छे प्रधानमंत्री की जगह कब उनके व्यक्तित्व से तानाशाह की झलक मिलने लगी इसका अंदाजा देश को और दिल्ली के लोगों को होने लगा। दिल्ली चुनाव से पहले जिस तरह केजरीवाल को नक्सली, बंदर और ना जाने क्या-क्या कहा गया उसने कहीं न कहीं लोगों के मन में केजरीवाल के प्रति प्यार जता दिया। लोग समझ नहीं पाये कि मोदी जैसे व्यक्तित्व के व्यक्ति दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री को नक्सली कैसे कह सकते हैं। जिस तरह प्रधानमंत्री की नाक के नीचे उनकी मंत्री दिल्ली में कह रही थी कि रामजादों की सरकार चुनोगे या हरामजादों की और प्रधानमंत्री उस बेहूदा मंत्री को सरकार से बाहर का रास्ता नहीं दिखा रहे थे, उसने दिल्ली के लोगों को एक संदेशा दे दिया कि कम से कम मोदी सरकार अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी भाषा और ऐसे विचारों का समर्थन कर रही है लिहाजा उसने केजरीवाल को इतना समर्थन दे दिया जितनी खुद केजरीवाल ने नहीं की थी। यह एक नया जनादेश है। इसमें आम आदमी की आवाज है। यह आवाज इस बात का संदेश है कि इस देश का आम आदमी अहंकार की भाषा नहीं चाहता। उसे वह राजनेता पसंद हैं जो आम आदमी की तरह सोचते हैं और आम आदमी की तरह व्यवहार करना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनके राजनेता उनके दु:ख-दर्द में शामिल हों और उस तकलीफ को साझाा करें जो वह आये दिन झेलते हैं। दिल्ली का चुनाव और उससे निकले जनादेश के अर्थ को भी समझा जाये तो वह साफ है कि जो पार्टी अब आम आदमी के हितों की उपेक्षा करेगी उसको किनारे लगना ही होगा। मोदी जी आपको इस देश के लोगों ने बहुत प्यार दिया। अब अगर आप दस लाख का सूट पहनेंगे तो फिर आपसे यह सवाल जरूर किया जायेगा कि जिस देश में अस्सी फीसदी आबादी के पास दो वक्त की रोटी न हो। जहां भूख और कर्ज के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हों, उस देश का सर्वेसर्वा आखिर दस लाख का सूट कैसे पहन सकता है। प्रधानमंत्री जी दिल्ली के नतीजे यह भी साफ कर रहे हैं कि यह देश कार्पोरेट घरानों से नहीं चल सकता बल्कि यह देश आम आदमी के हितों की रखवाली करने से ही चल सकता है। उम्मीद है कि आप यह बात जल्दी समझें।


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