सेल्फी से आगे जहां और भी हैं:ये सेल्फीवाले भी नार्सासिस्ट हैं, आत्मरति में लिप्त
खरी-खरी, वीथिका
Jun 04, 2015
प्रकाश हिन्दुस्तानी
पिछले पांच महीनों में तीन देशों की यात्रा का अवसर मिला- भूटान, यूएसए और श्रीलंका। आमतौर पर पर्यटन स्थलों पर जाने का उद्देश्य प्रकृति को निहारना और वहां के जनजीवन को समझना होता है, लेकिन इन तीनों देशों की यात्राओं में सेल्फी टूरिज्म का अलग ही रूप देखने को मिला।
कितनी भी सुंदर जगह पर आप हो, मौसम कितना भी अनुकूल हो और लोग कितने भी दिलचस्प हो- अधिकांश लोगों को केवल और केवल सेल्फी में व्यस्त पाया। इन सेल्फी टुरिस्टों को किसी भी ऐतिहासिक या प्राकृतिक सुंदरता वाले स्थान पर न तो प्रकृति से कोई ताल्लुक समझ में आता था और न ही उन्हें उस स्थान की ऐतिहासिक विरासत से कोई मतलब था। किसी भी जगह पहुंचे कि लगे सेल्फी खींचने।
अच्छी बात है कि आप किसी विशेष जगह पर गए है और वहां की यादें हमेशा के लिए संजोना चाहते है, लेकिन यह क्या़? लोग तो केवल और केवल सेल्फी में ही दिलचस्पी रखते है। जिनके पास कैमरे है वे दूसरों को कैमरा थमा रहे है और फोटो खींचने का अनुरोध कर रहे है। जिनके मोबाइल में कैमरे है वे अपने हाथ से तरह-तरह की मुख-मुद्रा बनाकर फोटो खींच रहे है। कुछ बुद्धिमान तो ऐसे भी है जिन्होंने सेल्फी स्टिक ले रखी है और उसे में मोबाइल या कैमरा फंसाकर रिमोट से क्लिक करके फोटो खींचने में व्यस्त है। इन सेल्फी स्टिक वालों का हाल तो यह था कि वे अपने साथ उसी गाड़ी में आए अन्य पर्यटकों से भी बातचीत नहीं कर रहे थे। गाड़ी में बैठे है तो कैमरा चालू। कोई भी प्राकृतिक नजारा देखा, ऐतिहासिक जगह देखी कि लगे क्लिक-क्लिक करने या फिर वीडियो उतारने। भाड़ में जाए सहयात्री, भाड़ में जाए सामाजिकता। सबसे बुरा हाल तो इन सेल्फी स्टिक वालों का ही था। ऐसा लगा कि इनकी पूरी यात्रा ही फोटो खींचने के लिए हो रही है। इनमें से 95 प्रतिशत प्रोफेशनल फोटोग्राफर नहीं हैं, लेकिन फोटो खींचने में इनकी कोई कोताही नहीं। हर गंतव्य पर यह अपने कपड़े बदल लेते। ऐसे रंग-बिरंगे कपड़े जिनमें तस्वीर अलग नजर आए। दिलचस्प बात तो यह है कि न्यूयॉर्क और नियाग्रा जैसी जगहों पर जब जहां भीषण ठंड थी और तेज हवाएं चल रही थीं, अनेक सेल्फी टूरिस्ट केवल शर्ट, टी-शर्ट या टॉप में सेल्फी खींचने में मग्न नजर आ रहे थे। सेल्फी हुई कि सी सी करते हुए लगे कोट-स्वेटर ठांसने। किसी भी जगह के 20-25 सेल्फी हुए कि वे लगते हाय तौबा मचाने। अब आगे चलो, यह जगह तो हो गई कवर।
किसी भी स्थान पर जाकर वहां की तस्वीर खींचना निहायत ही दिलचस्प कार्य है। अपनी यात्रा को चित्रों में संजोना किसे पसंद नहीं। आजीवन आप अपने साथ यह यादें समेट कर ले जा सकते है। अपने लोगों से शेयर कर सकते है। इन तस्वीरों के सहारे अपना एकाकीपन दूर कर सकते है, लेकिन यात्रा का अर्थ केवल सेल्फी ही नहीं होना चाहिए। सेल्फी खींचने के लिए कोई सड़क पर लेटा हुआ है, कोई गधे के कान ऐंठ रहा है, कोई अधनंगा होकर अपने बल्ले दिखा रहा है, कोई रेल की पटरी पर चलने की कोशिश कर रहा है, कोई पानी में छलांग लगाने को उद्यत है, कोई आसमान को बाहों में भर लेना चाहता है। एक से बढ़कर एक सुंदर नजारे लोगों के केन्द्रों और मोबाइल में कैद है और यह सब सोशल मीडिया पर यहां-वहां देखने को भी मिलते है। आपका वक्त है, आपका कैमरा है, सोशल मीडिया पर आपका प्रोफाइल है, आपको पूरा अधिकार है कि आप अपने आप को जैसा चाहें, वैसा पेश करें। इसमें भला किसी को क्या आपत्ति होगी, लेकिन क्या यह उचित नहीं है कि आप जिस जगह पर गए है वहां की महत्ता को भी समझे। अगर आप प्राकृतिक स्थान पर है तो प्रकृति से कुछ बात-चीत करें। अपने मन-मस्तिष्क में उस प्राकृतिक नजारे को याद रखें। यह क्या बात हुई कि यादों को इकट्ठा करने के बहाने आप एक महान सुख से वंचित हो जाएं। सेल्फी अपनी जगह ठीक है, लेकिन अगर आप नियाग्रा के विशालतम झरने को देख रहे हैं तो क्यों नहीं उस क्षण को जी लेते हैं। जैसे बच्चों की तस्वीरें बहुत अच्छी लगती है, लेकिन उन बच्चों से मिलना और बात करना दुनिया की सबसे बड़ी नियामत है, यह बात नहीं भूलनी चाहिए। सेल्फी में भौतिक वस्तुएं तो आ सकती है, आप नाटकीय तरीकों से उन्हें मैनेज करके छवि के रूप में भी सुरक्षित रख सकते है, लेकिन प्रकृति के सबसे बड़े वरदान को आप सेल्फी में कहा सहेज सकते है? क्या आप सेल्फी में वहां की खुशबू, हवाओं के झोंके और मौसम की रंगत सहेज सकते है? इन सब चीजों को भूलकर उसके भौतिक रूप को ही सहेज लेना अच्छा है, लेकिन कोई बहुत बड़ी अक्लमंदी की बात नहीं। दुर्भाग्य से अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं होता कि वे उस क्षण में कितनी अनमोल अवसरों को नासमझी में गंवा रहे हैं।
टीवी चैनलों के कैमरामैन और अखबारों के फोटोग्राफरों की बात समझ में आती है। यह तो उनकी रोजी-रोटी है, लेकिन उन बेचारों को क्या कहें जो दुर्लभ स्थानों पर खड़े होकर सेल्फी के लिए मरे जा रहे हैं। इन सैकड़ों हजारों सेल्फी में से कुछ वे अपने सोशल मीडिया में शेयर कर पाएंगे और बाकि या तो खुद डिलीट कर देंगे या स्पेस के अभाव में उन्हें उसे डिलीट करना पड़ेगा। तकनीकी दिक्कतों के कारण भी कई पर्यटक बाद में दुखी नजर आते है जिनके सारे के सारे डाटा या छवियां करप्ट हो जाती है। ये बेचारे न तो उस क्षण को जी पाए और न ही उनके पास उसकी आभासी छवि बची। अखबारों में आए दिन ऐसी खबरें छपति रहती है कि सेल्फी के चक्कर में पर्यटकों ने जान गंवा दी। कोई पहाड़ की चोटी से फिसल गया, तो कोई नहर में बह गया। किसी को जंगली जानवर ने काट लिया, तो किसी ने सेल्फी के चक्कर में ऐतिहासिक महत्व की कलाकृतियों को ही नष्ट कर दिया। सेल्फी के दीवानों ने हर किसी घटना या दुर्घटना को सेल्फी टूरिज्म के रूप में अपना लिया है। यहां तक कि ज्वालामुखी फटने जैसी घटनाओं के समय भी सेल्फी खींचने का मोह लोग छोड़ नहीं पाते। इन लोगों ने भूकम्प पर्यटन, ज्वालामुखी पर्यटन, सुनामी पर्यटन, युद्ध पर्यटन जैसी नई व्यावसायिक गतिविधियों को जन्म दे दिया है। कई देशों की सरकारों ने बाकायदा सेल्फी टूरिस्टों को न्यौता देना शुरू कर दिया है। होटलों के विज्ञापन भी इस बात की पुष्टि करते है जैसे सेल्फी समर्स इन बरमुडा। बरमुडा के पर्यटन प्राधिकरण ने तो अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को लुभाने के लिए बाकायदा इश्तिहार जारी कर दिए है। जिसमें कहा गया है कि बरमुडा द्वीप पर आइए और अपनी शानदार सेल्फी का मजा लीजिए। सेल्फी न हुई, आईस्क्रीम हो गई। इतने पर से भी पेट नहीं भरा तो सेल्फी की प्रतियोगिता रख दी। अच्छी सेल्फी खींचने वालों को शराब की बोतलें और होटलों में स्टे फ्री देने का भी वादा किया गया।
कई लोगों का मानना है कि ज्यादा सेल्फी के चक्कर में पढ़ने वाले लोग एक तरह की आत्मरति में रत रहने वाले लोग होते हैं। यह भी एक तरह का नार्सि़जम ही है। दुनिया में सभी को अपने तरीके से जीने का अधिकार है और सभी अपनी तरह से जी भी रहे है। यहां उनको परिभाषित करने की कोशिश की गई है। उनकी आलोचना की नहीं। दुनिया में पर्यटन खूब बढ़े, लोग घूमे-फिरें और दूसरे लोगों और प्रकृति से तारतम्य बनाए। सेल्फी अपनी जगह है, लेकिन उससे आगे भी जहां और भी हैं।
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