ममता यादव।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जी न माफी मांगिये न टेंडर रोकिये न राशि बढ़ाईये। अगर वाकई मोदीजी का फार्मूला(न खाऊंगा, न खाने दूंगा) लेकर भाजपा सरकारें चल रही हैं तो पहले सिस्टम के लूप होल्स जो कि खाई बन चुके हैं उन्हें भरने की कोशिश करिये।
एक्शन लीजिए, कार्यवाहियां करिए।
इस सिस्टम में काम करने वाले और इसे चलवाने वाले इतने मट्ठर, बेहया और लोभी हो चुके हैं कि आप हजार बार माफी मांग लें लाख नहीं अरब करोड़ बढ़ा दें तो भी काम ऐसे ही होंगे।
गुजरात जैसे हादसे तो सबसे बड़ा उदाहरण हैं जहां 140 मौतों ने भी जिम्मेदारों की आंखों का पानी जिंदा नहीं किया।
ज्यादा दिन नहीं हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जब खुद भोपाल की सड़कों पर उतरे तो असलियत सामने आई। अर्ली मॉर्निंग मीटिंग में अफसरों विभागों की खिंचाई हुई पर फर्क कितना पड़ा आने वाले कुछ महीनों में दिख जाएगा।
मूल सिस्टम में एक सेमी सिस्टम पूरा कॉकस की तरह हावी हो चुका है, हिस्से किन-किन के बनते हैं यह तो सिस्टम चलाने वाले और उन सिस्टम चलाऊ लोगों को हांकने वाले ही जानें।
केंद्रीय मंत्री जी आपका वास्ता सही सड़क से पड़ा तो आपने राशि बढ़ा दी, माफी मांग ली। काम रोककर प्रक्रिया दोबारा शुरू करने को कहा, क्या यह ज्यादा खर्चीला नहीं हो जाएगा?
मुख्यमंत्री का सच्चाई से सामना हुआ तो उन्होंने तीखे तेवर दिखा दिए, जनता तो रोज दो-चार हो रही है। ऐसा क्या है जो इतनी घोषणाएं, इतना पैसा सार्वजनिक तौर पर घोषित होने के बाद भी सड़कें नहीं सुधर रहीं।
सड़क से याद आया कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के शासन काल में बिजली सड़क पानी की समस्याओं से जनता हलकान हो गई थी।
उस समय भाजपा का सीएम फेस रहीं और चुनाव जीतकर सीएम बनीं उमा भारती ने एक संकल्प लिया था कि सागर भोपाल सड़क 6 महीनों में बनेगी और वे खुद 4 घण्टे में बाईरोड सागर पहुंचकर दिखाएंगी। यानि इच्छाशक्ति थी, काम करने की नीयत थी।
कभी यह समीक्षा भी हो जानी चाहिए कि आज के दौर में जब सरकारों के पास अनलिमिटेड पावर हैं हालांकि हमेशा रहे हैं तो सड़क जैसे जरूरी काम ठीक से क्यों नहीं हो पाते?
क्यों पेंचवर्क के नाम पर सिर्फ डस्ट भर दी जाती है? क्यों सड़कें वहीं की गड्ढामुक्त और चमकीली होती हैं जहाँ वीआईपी मूवमेंट होता है?
एक बार सरकार का कोई जिम्मेदार आदमी यह घोषणा करके भी किसी एरिया में सभा करे, उद्घाटन करे सामान्य गाड़ी से जाए कि मेरे पहुंचने से पहले सड़कों का रँगरोगन नहीं किया जाए।
जमीनी हकीकत जानने के लिये जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता के लिये इतना तो कर ही सकते हैं, आखिर एक साल के भीतर चुनाव हैं।
तो माफी मत मांगिये, टेंडर मत रोकिये, राशि मत बढ़ाईये, समीक्षा बैठकों में नाराजगी भी मत जताईये बस हकीकत से रूबरू होने का प्रयास करिये। जनता याद रखेगी!
बाकी चुनाव जीतने और उसके बाद सरकार बनाने बचाने की तैयारी एक अलग पहलू है।
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