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डिजीटल क्रांति के दौर में साइबर ठगों का गोल्डन पीरियड

खरी-खरी            Feb 19, 2023


राकेश दुबे।

देश के प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी ‘अच्छे दिन’ का नारा आज लगाते  आ रहे हैं। ‘डिजिटल युग’ के आगमन के साथ यह सपना नागरिकों को दिखाया गया था। डिजिटल युग’के साथ  अच्छे दिन आए हैं, पर ये अच्छे दिन उन लोगों के लिए हैं। जिनके नाम के आगे “साइबर ठग” का विशेषण जुड़ा है।

आज के डिजिटल युग में देश की ज्यादातर आबादी इंटरनेट और स्मार्टफोन का इस्तेमाल करती है और लेन-देन के लिए यूपीआई सबसे पसंदीदा तरीका बन चुका है।

ज्यादातर लोग अपनी सहूलियत के लिए दो या दो से ज्यादा मोबाइल नंबर भी रखते हैं और अपने फोन में ड्यूल सिम यानी दो सिम का इस्तेमाल करते हैं।

लेकिन ड्यूल सिम के इस दौर में दूसरे नंबर को रिचार्ज कराना लोग अक्सर भूल जाते हैं और यही एक गलत आदत साइबर लुटेरों के लिए किसी वरदान से कम नहीं साबित होती है।

इस छोटी-सी लापरवाही की वजह से लोग अपनी ज़िंदगीभर की कमाई से हाथ धो बैठते हैं।

पिछले कुछ वक्त से देश में कई मामले सामने आये हैं जहां लोगों ने अपने दूसरे सिम को रिचार्ज कराना बंद कर दिया और बाद में ये सिम किसी साइबर ठग के हाथ लग गयी और ठगों ने पीड़ितों का पूरा खाता खाली कर दिया।

एक प्रदेश की राजधानी में भी पिछले महीने ऐसे कुछ मामले सामने आये थे, जहां साइबर ठगों ने बंद पड़े सिम कार्ड को दोबारा से इश्यू कराकर लाखों की ठगी को अंजाम दिया।

 पुलिस के अनुसार पकड़ा गया आरोपी फ़र्जी केवाईसी के जरिये बंद पड़े सिम को खरीद कर ठगी को अंजाम दे रहा था। दरअसल, ये साइबर अपराधी सबसे पहले फ़र्जी आईडी से बंद पड़ी सिम को खरीदते हैं।

कई मामलों में तो इनकी सिम विक्रेताओं से सांठ-गांठ तक होती है। साइबर लुटेरों की कोशिश होती है कि ये पुरानी डिजिट के नंबर ही खरीदें क्योंकि ज्यादातर लोगों का ये पुराना नंबर ही उनके बैंक अकाउंट और ईमेल आईडी के साथ जुड़ा रहता है।

लापरवाही या फिर जानकारी न होने की वजह से वो इसे बदलते भी नहीं हैं। एक बार सिम मिलने के बाद ये अपराधी इन सिम में आपके भीम, यूपीआई, पेटीएम, फोनपे या फिर गूगलपे जैसे किसी ऐप को लॉगिन करते हैं।

लॉगिन करने के बाद इन्हें इस ऐप के साथ अटैच या आपका जुड़ा हुआ बैंक अकाउंट नंबर और ईमेल आईडी भी मिल जाती है। हालांकि ये अपराधी यूपीआई से पैसा ट्रांसफर नहीं करते हैं क्योंकि यूपीआई से एक दिन में मात्र एक लाख रुपये तक का ही लेनदेन हो सकता है।

आपके बैंक अकाउंट की डिटेल लेने के बाद ये ठग बैंक की ‘इंटरनेट बैंकिंग’ वेबसाइट पर जाते हैं और वहां पहले ‘फॉरगेट यूज़र आईडी’ यानी जो यूज़र आईडी भूल गए हैं उस विकल्प पर क्लिक करते हैं और बैंक की वेबसाइट इनसे अकाउंट नंबर, ईमेल और रजिस्टर्ड फ़ोन नंबर एंटर या फिर डालने के लिए कहती है।

जिसे एंटर करने के बाद आपके ही बंद पड़े सिम पर जो कि बैंक के साथ रजिस्टर है और अब साइबर ठग के पास मौजूद है उस पर एक ओटीपी आता है।

ओटीपी एंटर करते ही अपराधी को इंटरनेट बैंकिंग की यूजर आईडी पता चल जाती है।

इसी प्रक्रिया अथवा प्रोसेस के जरिये ये ठग ‘फॉरगेट पासवर्ड’ विकल्प का भी इस्तेमाल करते हैं और अपना नया पासवर्ड जनरेट या फिर बना लेते हैं।

बस इसके बाद ये साइबर लुटेरे इंटरनेट बैंकिंग के जरिये आपके अकाउंट को खोलते हैं और फिर पूरा अकाउंट साफ हो जाता है।

यहां पर गौर करने वाली बात ये है कि आपको पता भी नहीं चलता क्योंकि आप अपना वो नंबर पहले ही बंद कर चुके होते हैं।

आपके पास बैंक ट्रांजेक्शन से जुड़ा कोई मैसेज आने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।

वास्तव में ये साइबर लुटेरे ट्राई यानी टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के नए नियमों का फायदा उठा रहे हैं।

पिछले वर्ष 2022 में ट्राई ने नयी गाइडलाइन जारी की थी। जिसके मुताबिक जो टेलीकॉम कंपनियां सिम खरीदने पर लाइफटाइम वैलिडिटी दे रही थीं उसे बंद कर दिया गया है।

अब नए नियमों के मुताबिक अगर यूजर को अपना नंबर चालू रखना है तो उसे हर महीने अपना सिम रिचार्ज कराना होगा या फिर तीन महीने या छह महीने का पैकेज लेना होगा।

अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो तीन महीने बाद ये नंबर अपने आप बंद हो जाएगा।

फिर टेलीकॉम कंपनी उस सिम को किसी दूसरे व्यक्ति को इश्यू कर देगी। ट्राई का यही नियम अब साइबर ठगों के लिए पैसा लूटने का एक नया तरीक़ा बन गया है।

इसी तरीके का इस्तेमाल कर साइबर ठगों ने दिल्ली के एक व्यापारी के बैंक खाते से एक-दो नहीं बल्कि 75 लाख रुपये उड़ा दिए और पांच महीने बीत जाने के बाद भी उन्हें एक रुपये तक वापस नहीं मिला है।

अधिकांशतः लोग अपना ओटीपी दूसरों को शेयर करने की गलती कर बैठते हैं या फिर कोई अनऑथराइज्ड ट्रांजेक्शन कर बैठते हैं। जब ऐसे किसी केस की आरबीआई जांच करता है और यदि उसे लगता है कि ये गलत ट्रांजेक्शन व्यक्ति विशेष की गलती के कारण हुआ है तब ऐसे केस में आरबीआई क्लेम को रिजेक्ट कर देता है।

साइबर विशेषज्ञ बताते हैं आज आपका सिम और फोन भी आपके किसी एसेट यानी कि आपकी एक संपत्ति से कम नहीं है। ऐसे में उसका ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है।

अगर आप नहीं चाहते कि कोई साइबर अपराधी आपका बैंक खाता सिर्फ इस वजह से खाली कर दे कि आप अपने दूसरे सिम को रिचार्ज कराना भूल गए हैं तो अब आपको सतर्क हो जाना चाहिए और हर महीने अपने सिम कार्ड की वैलिडिटी यानी सिम की वैधता की जांच करते रहना चाहिए।

देश में डिजिटल क्रांति के साथ साइबर लुटेरों का भी ‘गोल्डन पीरियड’ शुरू हो चुका है,  जिनकी गिद्ध जैसी नज़र हर वक्त आपकी गाढ़ी कमाई पर है।

 



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