प्रकाश भटनागर।
भ्रम का शिकार हो गया हूं। मध्यप्रदेश की सरकार कमलनाथ के भरोसे हैं या भगवान के। कमलनाथ का क्या किया जाए। उन पर गुस्सा करें! तरस खायें! हंसे! या फिर इस सारे घटनाक्रम को प्रदेश के दुर्भाग्य से जोड़कर खुद का ही सिर धुन लें।
हनी ट्रैप मामले पर कुंभकर्णी नींद से जागकर मुख्यमंत्री ने जिस स्वरूप का परिचय दिया है, उस पर प्रतिक्रिया के लिए न तो पर्याप्त शब्द मिल पा रहे हैं और न ही सही मनोभाव।
छिंदवाड़ा, दिल्ली दरबार के बाद अब भोपाल स्थित मंत्रालय नाथ की राजनीतिक परिक्रमा का तीसरा पड़ाव बन चुका है। यहां अपने चैंबर में बैठे-बैठे नाथ पूरे प्रदेश की स्थिति पर तीखी नजर होने का भ्रम जीवित रखे हुए हैं।
ठीक वैसे ही, जैसे 'राग दरबारी' उपन्यास में शिवपालगंज की निकम्मी पुलिस को लेकर गलतफहमी थी। पूरी तरह साधन तथा क्षमता-विहीन उस पुलिस से आशा की जाती थी कि आसपास के ढाई से तीन सौ गांवों की हर हलचल पर उसकी नजर है।
उसकी क्षमता इतनी कि अपराध होने के बाद तो दूर, वह ऐसा होने से पहले ही घटना स्थल तक पहुंच जाएगी। नाथ इस उपन्यास के दरोगा और वल्लभ भवन के उनके दरबारी इसी कृति के सिपाहियों जैसा ही आचरण कर रहे हैं।
इसलिए वह सब हो रहा है, जो राग दरबारी में होता दिखा। हनी ट्रैप की सारे देश में गूंज हुए कम से कम एक पखवाड़ा बीत चुका है।
एक बड़े अखबार की खबर पर भरोसा करें तो मुख्यमंत्री को गयी रात समझ में आया कि इस मामले की जांच की प्रक्रिया दोषपूर्ण है। इसलिए उन्होंने मुख्य सचिव, डीजीपी और एटीएस के प्रमुख को तलब कर डपट दिया।
यह चुटकुलानुमा सवाल पूछ लिया कि इस मामले में एटीएस के दखल की जरूरत क्यों पड़ गयी?
सवाल सही भी है कि एंटी टेरिरिस्ट स्क्वाड का इस मामले से क्या लेना देना होना चाहिए? कहीं इसे नैतिक टेरेरिज्म से जोड़ने की गलतफहमी तो नहीं है।
साफ है कि प्रदेश की राष्ट्रीय स्तर पर छिछालेदर करा देने वाले इस कांड से मुख्यमंत्री अब तक खुद भी पूरी तरह अवगत नहीं हैं। उन्होंने जानकारी लेना नहीं चाही या उन्हें यह जानकारी देने योग्य नहीं समझा गया, यह अलग से बहस का विषय हो सकता है। लेकिन इस निष्कर्ष को लेकर बहस की गुंजाइश नहीं दिखती कि यह मुख्यमंत्री का भोलापन नहीं, बेपरवाही का सीधा-साधा परिचायक है।
यदि आप कतिपय कारणों से कैलाश जोशी को इस राज्य के 'सोते मुख्यमंत्री' के तौर पर जानते हैं तो फिर ताजा घटनाक्रम के बाद नाथ के लिए भविष्य में कहीं 'जागते हुए सोते रहने वाले मुख्यमंत्री' की उपाधि ही शेष न रह जाए।
अब कल्पना कीजिए कि मुख्यमंत्री की तंद्रा भंग होने से पहले तक के करीब पंद्रह दिन में हनी ट्रेप में संलिप्त प्रशासन तथा पुलिस की चांडाल चौकड़ी इस बेहद संवेदनशील मामले में कहां-कहां और कैसी-कैसी लीपापोती कर चुकी होगी।
हनी ट्रैप में फंसे खास लोगों को उपकृत करने के तमाम जतन इस अवधि में सफलतापूर्वक संचालित किये जा चुके होंगे। यही काम लेन-देन की सूरत में भी अंजाम दिया गया हो सकता है। इस तरह नाथ की बहुत देर से टूटी नींद कई और भ्रम को जन्म दे रही है।
इस घटना की जांच करने वालें चेहरों को ताश के पत्तों की तरह फेटे जाने का खेल किसकी शह पर हुआ, अब यह जांच का विषय बन गया है। कौन था, जिसने मुख्यमंत्री को अब तक भ्रम में रखकर मामले की जांच मनमाने तरीके से संचालित रखी, इस पर भी चिंतन जरूरी हो गया है।
जांच की मनमानी पर गौर करने से पहले इस पूरे मामले में अब तक की इकलौती अच्छी खबर सिर्फ इतनी है कि पुलिस ने राजगढ़ की हनी ट्रेप गैंग की शिकार हुई लड़की की मदद करने का फैसला किया है।
लेकिन इससे जुड़ा एक सवाल भी है। जिसका उत्तर अब तक सामने नहीं आया है। अगर यह लड़की इस प्रकरण से बाहर हो रही है तो पुलिस को इस बात का जवाब देना चाहिए कि वह इंदौर नगर निगम के सिटी इंजीनियर हरभजन के सिंह के खिलाफ धारा 376 (सी) के तहत प्रकरण दर्ज कर रही है या नहीं?
यह सीधा मामला पद के प्रभाव से नाबालिग न सही कम उम्र लड़की के यौन शोषण का तो है ही। हरभजन सिंह किसी सेक्स स्केंडल में फंस कर ब्लेकमैल हुआ, उसकी इस करतूत के सामने आने मात्र से मामला तो पूरा नहीं हो जाता।
क्या ब्लेकमैल हो रहे हरभजन सिंह को पुलिस के पास जाने से पहले सुरक्षा का आश्वासन मिला है? या किसी ने इस मामले में कुछ शर्तों पर हरभजन को पुलिस के पास जाने के लिए राजी किया है।
मुझे लगता है जो दुर्गम रास्ते हैं, उनकी तरफ तो पुलिस तथा एसआईटी अभी शायद देख ही नहीं रही हैं। मैंने अपने रविवार के कालम में भी लिखा था कि भोपाल में पिछले दो साल में पढ़ने के लिए बाहर से आई लड़कियों की आत्महत्या के प्रकरणों की भी एसआईटी को जांच करना चाहिए।
ताजा हनी ट्रैप मामला सामने आने के बाद और उसमें घोषित तौर पर सामने आईं महिलाओं के अलावा भी लड़कियों को ब्लेकमैल करने के मामले सामने आना इस प्रकरण की गंभीरता को खुद बयान कर रहे हैं।
दुर्भाग्य से इस मामले में सरकार के प्रभावशाली अफसर और राजनेताओं के नाम सामने आने से पूरे सिस्टम की सडांध प्रदेश में बजबजा रही है। हनी ट्रैप में जिस तरह के वजनदार चेहरों के निर्वस्त्र होने की बात कही जा रही है, उसे देखकर यह आशंका निर्मूल नहीं रह जाती कि अब तक की शिकायतें किसी दबाव के चलते ही ठंडे बस्ते में डाल दी गयीं।
इसीलिए एक बार फिर दोहराना जरूरी हैं कि इस तरह की ठंडे बस्ते में डाल दी जा चुकी छोटी से छोटी शिकायत की हनी ट्रैप के परिप्रेक्ष्य में गंभीरता से जांच करायी जाए। हरभजन सिंह जैसों पर किसी बेचारगी का भाव अपनाये बगैर।
क्योंकि यह सिंह जैसे लोग ही थे, जिनकी काम वासना को शांत कर उनकी पद प्रतिष्ठा का लाभ लेने के लिए हनी ट्रैप का कुचक्र संचालित किया गया। क्या ताज्जुब है, पूरा सिस्टम ही खल कामी नजर आने लगा है।
मुख्यमंत्री ने कहा जरूर है कि मामले की निष्पक्षता से जांच होना चाहिए और यह भी कि किसी निर्दोष को प्रताड़ित नहीं किया जाए। वाकई कमलनाथ की मंशा अगर ऐसी है तो इस मामले को अकेले एसआईटी के भरोसे क्यों छोड़ा जाए?
क्यों नहीं इस मामले की निगरानी का काम उच्च न्यायालय को सौंप दिया जाए। और इस मामले में केन्द्र और राज्य की संयुक्त एजेंसी हाईकोर्ट की निगरानी में जांच करें और रिपोर्ट भी उसे ही करें।
लेकिन क्या ऐसा संभव होता नजर आ रहा है। मुझे तो नाथ के गुस्से की खबर पढ़कर फिल्म 'जाने भी दो यारों' की याद आ गयी। फिल्म के अंत में महाभारत का नाटक दिखाया गया है। उसमें भीम का पात्र पूरे समय खरार्टे भरता रहता है।
क्योंकि उसके हिस्से केवल एक लाइन है, 'ठहर जा पापी! मैं तेरा सिर फोड़ दूंगा।' जब भी उसकी बारी आती है, उसे जगाया जाता है। वह संवाद कहता है। तुरंत बाद साथ बैठा पात्र उसे 'शांत गदाधारी भीम शांत' कहकर चुप करा देता है। भीम वाला चरित्र फिर नींद में चला जाता है।
कमलनाथ के गुस्से की खबर के बाद मुझे यकीन है कि किसी बेहद प्रभावी और अपनेपन से भरी आवाज ने नाथ के कंधे पर हाथ रखकर कहा होगा, 'शांत पंजाधारी कमलनाथ शांत' और इसके बाद मुख्यमंत्री एक बार फिर विश्राम की मुद्रा में आ गये होंगे। धन्य हो सरकार।
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