राकेश कायस्थ।
महाकुंभ शब्द संज्ञा कम और विशेषण ज्यादा लगता है। महाकुंभ मतलब विशालता की पराकाष्ठा। ब्रहांड जैसा अनंत और अपने आप में संपूर्ण। महाकुंभ यानी इससे बड़ा कुछ भी नहीं।
महाकुंभ ना तो वाइब्रेंट गुजरात जैसा कोई इवेंट है और ना ही राजनीतिक लाभ के लिए बनाया गया अयोध्या के दीपोत्सव जैसा कोई कार्यक्रम। इसे किसी प्रचार की आवश्यकता कभी नहीं रही।
फिर आखिर क्या कारण है कि केंद्र और यूपी की सरकार कश्मीर से कन्याकुमारी तक महाकुंभ की डुगडुगी बजा रही हैं? सबको पता है कि प्रयागराज आकार में उतना ही बड़ा रहेगा, जितना शुरू से रहा है।
दुनिया का कोई भी चमत्कार सुविधाओं को इतना बेहतर नहीं बना सकता है कि यह शहर एक सीमा से ज्यादा लोगों को बोझ उठा पाये। फिर भी पूरा सरकारी तंत्र इस तरह का माहौल बना रहा जैसे आपने संगम पर डुबकी नहीं लगाई तो जीना व्यर्थ है।
कुंभ उन लोगों का भी उतना ही होता है, जो कभी वहां नहीं जाते। परिवार में कभी कोई गया हो कोई पड़ोसी या रिश्तेदार गया हो, ये कनेक्ट ही पर्याप्त हैं। कुंभ की कहानियां हर घर में हैं, भले यात्री हो ना हों।
देश और हिंदू समाज में अपने आप होनेवाली हर चीज़ का श्रेय लेना मौजूदा सरकार अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती है। मोदी और योगी को यकीन है कि जो लोग संगम में डुबकी लगाकर आएंगे वो बीजेपी को ही वोट देंगे।
यही कारण है कि प्रयागराज आनेवाले तीर्थयात्रियों के मनगढ़ंत आंकड़े उसी तरह बताये जा रहे हैं, जिस तरह मिस्ड कॉल मारकर बीजेपी के सदस्य बनने के वालों के आंकड़े बताये जाते हैं। जो सरकार करोड़ों लोगों के संगम में डुबकी लगाने का दावा कर रही है, वो यह बताने में असमर्थ है कि भगदड़ में कितने तीर्थयात्री मारे गये।
जब से यह महाकुंभ शुरू हुआ है, कुव्यवस्था को लेकर कहानियां हर रोज़ यात्रियों के मुंह से सुनने मिलती आई हैं। भगदड़ की दुखद घटना इसी कुव्यवस्था की एक कड़ी है, प्रार्थना यही होनी चाहिए कि बाकी महाकुंभ सुरक्षित तरीके से संपन्न हो।
जो `राम को लाये हैं, हम उनको लाएंगे’ हिंदू इतिहास का अश्लीलतम वाक्य था। लेकिन इसका विरोध करने के बदले हिंदू समाज के एक बड़े हिस्से ने इसका स्वागत किया। आप अनुमान लगा सकते हैं कि जिन लोगों ने इस समय देश में धर्म का झंडा उठा रखा है, उन्हें अपने धर्म की कितनी समझ है और राम जैसे प्रतीक पुरुषों के प्रति उनके मन में कितना सम्मान है।
हिंदू धर्म ने भारत से बाहर जो ख्याति अर्जित की है, उसके पीछे उसका दार्शनिक पक्ष है लेकिन मौजूदा सत्तातंत्र हिंदू जगत से जुड़ी हर चीज़ को एक सस्ते तमाशे में बदलने पर आमादा है। धर्म के नाम पर स्वयंभू हिंदू राजनेता जो हरकतें कर रहे हैं, वो उन्हें कुंभीपाक नर्क का स्थायी आरक्षण दिलाने के लिए पर्याप्त हैं। ऐसे में ये पूछना तो बनता ही है कि आखिर हिंदू धर्म को असली खतरा किससे है?
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