धर्मेश यशलहा।
तीन साल पहले टोक्यो ओलंपिक से भारत को इस बार एक पदक ही कम मिला, लेकिन 6 खेलों में 9 खिलाड़ी-टीम चौथे स्थान पर आए, पेरिस ओलंपिक में मात्र 6 पदक लाकर ही भारत इसी से संतुष्ट हैं!
2020 टोक्यो ओलंपिक में भारत को एक स्वर्ण और एक रजत सहित सर्वाधिक सात पदक मिले, इस बार कम से कम 10 पदकों की तो उम्मीद की जा रही थी क्योंकि जो पेरिस ओलंपिक गए उन सभी पर तो शासन ने लक्ष्य ओलंपिक पोडियम कार्यक्रम (टाप्स) के तहत भरपूर धन खर्च किया। साधन और सुविधाएं दी हैं, भरपूर तैयारियों के बावजूद टोक्यो के सफल खिलाड़ी भी इस बार पेरिस में अपने पदक के रंग में इजाफा नहीं कर सके।
दो ओलंपिक पदक प्राप्त बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु प्रि क्वार्टर फाइनल में ही उसी चीनी खिलाड़ी ही बिंग्जिआओ से हार गई जिसे टोक्यो में हराकर कांस्य पदक जीता था, और वह रजत पदक जीत गई, टोक्यो में रजत लाने वाली महिला भारोत्तोलक मीराबाई चानू चौथे स्थान पर अटक गई, कांस्य पदक प्राप्त महिला मुक्केबाज लवलीना बुरगोहेन भी पदक रहित रही, भाला फेंक में नीरज चौपडा के दोबारा स्वर्ण के इरादे को पड़ोसी पाकिस्तानी अरशद नदीम ने ओलंपिक कीर्तिमान के साथ खंडित कर चौंका दिया, नदीम टोक्यो में पांचवें स्थान पर रहे थे, गनीमत है कि नीरज के भाले ने छह में से पांच फाउल ही किए और दूसरे प्रयास में अपने दूसरे श्रेष्ठ प्रदर्शन से रजत पदक जीत कर भारत की लाज रख ली, भारत को पेरिस ओलंपिक में यही अकेला चांदी का तमगा हासिल हुआ,
भारत अब तक ओलंपिक में 41 पदक जीता है जिसमें 10 स्वर्ण और 10 रजत पदक शामिल हैं, जिसमें भी 13 पदक तो सिर्फ हाकी के ही हैं, हाकी के बाद 8 पदक कुश्ती के हैं,
दूसरी ओर दो महाशक्ति अमेरिका और चीन ने अकेले पेरिस ओलंपिक ओलंपिक में ही 40-40 स्वर्ण पदक जीते हैं, अमेरिका ने पेरिस ओलंपिक में ही अकेले 126 पदक जीते हैं, ओलंपिक में तो अमेरिका के दो हजार से अधिक पदक हैं, रुस और जर्मनी के बाद ब्रिटेन भी एक हजार पदक जीतने वाला देश बन गया हैं, चीन भी आगे बढ़ता जा रहा हैं, इस बार तो पेरिस में आस्ट्रेलिया ने भी 18 स्वर्ण सहित 53 पदक जीत लिए और पदक तालिका में अमेरिका, चीन और जापान के बाद चौथे स्थान पर आए, फ्रांस मेजबान था तो 16 स्वर्ण सहित 64 पदक ले लिए,
एक करोड़ 14 लाख आबादी के कैरेबियन द्वीप डोमेनिक ने एक स्वर्ण और दो कांस्य पदक एवं 1.24 लाख आबादी वाले ग्रेनाडा ने दो कांस्य पदक हासिल कर लिए, भारत को 6 में से सर्वाधिक 3 पदक निशानेबाजी में मिले, मनु भाकर ने एक ओलंपिक में दो कांस्य पदक जीत कर चकित किया ,हरियाणा की मनु 25 मीटर पिस्टल निशानेबाजी में चौथे स्थान पर रहकर तीसरे पदक से चूकी, कुश्ती में 2008 से हर ओलंपिक में पदक का सिलसिला जारी हैं तो, हरमनप्रीत सिंह और श्रीजेश की स्टिक की कलाकारी से भारतीय पुरुष हाकी टीम ने लगातार दूसरी बार कांस्य पदक जीता, 1968और 1972 के बाद यह पहला मौका है जब भारतीय हाकी टीम ने लगातार दो बार एक पदक जीते हैं, कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने पेरिस में सर्वाधिक 10 गोल भी किए,
मुक्केबाजी, तीरंदाजी और बैडमिंटन में भारत ने निराश किया, 2012के लंदन ओलंपिक के बाद भारत ओलंपिक बैडमिंटन में पहली बार पदक रहित रहा, लेकिन लक्ष्य सेन ओलंपिक में सेमीफाइनल खेलने वाले पुरुष खिलाड़ी बन गए, फिर भी कैसा भारतीय सिस्टम है कि बैडमिंटन की असफलता की कोई जवाबदेही नहीं लेता हैं,
बैडमिंटन में पहली बार सबसे अधिक सात खिलाड़ियों ने विश्व टूर की सुपर स्पर्धाओं में अपनी शटलकाकस से सुपर बनकर ओलंपिक के लिए पात्रता हासिल की, लक्ष्य सेन के साथ ही सात्विक साईंराज रैंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी जिनसे सबसे ज्यादा पदक की , स्वर्ण की भी उम्मीद थी, पी वी सिंधु, एच एस प्रणोय को अपने पसंदीदा प्रशिक्षक और सहयोगी दिए गए, फिर अश्विनी पोनप्पा और तनिषा क्रास्टो को ही कोई युगल विशेषज्ञ प्रशिक्षक क्यों नहीं दिया गया, बैडमिंटन संगठन और मुख्य प्रशिक्षक क्या कर रहे थे?
तीसरा ओलंपिक खेली 34 वर्षीय अश्विनी पोनप्पा ने तो कहा भी है कि हमे पसंदीदा प्रशिक्षक तक नहीं मिला, ओलंपिक तैयारियों के लिए डेढ़ करोड़ रुपए भी नहीं मिले हैं।
कोई व्यक्तिगत वित्तीय सहायता नहीं मिली, यहां तक की प्रशिक्षक के लिए उनके अनुरोध को भी खारिज कर दिया गया।
हमारा ग्रुप भी कठिन था, राष्ट्रीय शिविर में भाग लेने वाले खिलाड़ियों पर डेढ़ करोड़ रुपए खर्च किए गए होंगे।
मेरे निजी ट्रेनर का खर्चा मैंने खुद उठाया, नवम्बर 2023 तक तो मैं अपने खर्चे से खेल रही थी, हमने जब ओलंपिक के लिए पात्रता हासिल कर ली तभी मुझे टाप्स में शामिल किया गया।
तो फिर उपयोग किया धन किस व्यवस्था के भेंट चढ़ गया? यह तो सिर्फ बैडमिंटन की एक बात है, बैडमिंटन सहित सभी खेलों के संगठनों की कार्यप्रणाली क्या अधिकतर राजनीति, भाई- भतीजे वाद और पक्षपात से ग्रस्त नहीं रही हैं।
अपने और अपनों के हित में सक्षम और प्रतिभावान समर्थों लगातार उपेक्षा की जाती हैं।
एक-दो दशक नहीं वरन तीन- चार दशकों तक कोई संगठन की सत्ता को छोड़ता नहीं हैं और पक्षपात करता रहता है।
बैडमिंटन में भी साइना नेहवाल और सिंधु के बाद कोई है? सात्विक और चिराग, लक्ष्य के बाद कौन?
मप्र में तो खेलों की और अधिक दुर्दशा
हरियाणा जैसे छोटे राज्य से नीरज चौपड़ा, मनु भाकर, सरबजोतसिंह, अमन सेहरावत, पदक लाते हैं, और क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा सबसे बड़ा एवं जनसंख्या दृष्टि से छठवें मप्र की खेलों में और अधिक दुर्दशा हैं, भारत के 117 खिलाड़ियों में मप्र के सिर्फ दो खिलाड़ी पेरिस गए, हाकी में विवेक सागर प्रसाद कांस्य पदक लाए जो नर्मदा पुरम जिले के हैं और खरगोन जिले के ऐश्वर्य प्रताप सिंह तोमर निशानेबाजी में गए, इंदौर से कोई खिलाड़ी नहीं! मप्र में खेल सुविधाओं को भोपाल तक ही सीमित किया जा रहा है, वहां की मंत्री थी तो ग्वालियर पर भी मेहरबानी हो गई,
खेलों की राजधानी इंदौर को कहा जाता है लेकिन यहां एक भी शासकीय खेल परिसर ( स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स), बड़ा इनडोर स्टेडियम और खेल छात्रावास तक नहीं हैं।
खेल विभाग में तो काकस है एवं खेल संगठनों पर भी नेताओं, दशकों से जमें चुनिंदा लोगों का ही कब्जा हैं जो सरकारी खेल दिशानिर्देश को तो मानते ही नहीं हैं।
मप्र में खेल विभाग के बाद शिक्षा विभाग में खेल होते हैं, जहां तो और बंटाधार हैं। अखेल जानकारों और सरकारी शिक्षकों- कर्मचारियों का कब्जा है जो खुद के नियम बनाकर खेलों के साथ खेलते हैं, यही देखते हैं कि खिलाड़ियों को कम से कम सुविधाएं देकर और नियमों की उपेक्षा कर टीम चयन की औपचारिकता निभाते हुए कैसे सरकारी धन को अपना बनाया जाए?
आदिवासी विकास के नाम पर भी अथाह खर्च गैर आदिवासियों के लिए ही हो रहा हैं। तभी तो शालेय और उच्च शिक्षा से नहीं, वरन व्यक्तिगत प्रयासों से ही कुछ खिलाड़ी निकल जाते हैं,
देश की आजादी की 78 वीं वर्षगांठ पर खेलों के विकास के लिए सभी को सोचना होगा, खेल जानकारों और अनुभवी खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों को महत्व देना होगा जो साधन और सुविधाएं बढ़ाने के लिए कृत संकल्पित हो।
इंदौर को स्टार होटल युक्त नेहरु स्टेडियम नहीं। वरन खेल छात्रावास ( स्पोर्ट्स होस्टल) और बड़े इनडोर स्टेडियम वाले खेल परिसर की जरुरत है।
ताकि बच्चे और युवा अपनी प्रतिभा को तराश सके तभी हम ओलंपिक में अधिक हिस्सेदारी और पदकों के सपनों को साकार कर सकेंगे अन्यथा हर चार साल में खेलों के सिस्टम और प्रोत्साहन की कमी को ही कोसते रहेंगे ।
के पदकों से ही खुशफहमी पालते रहेंगे, खेल संगठनों पर दशकों से कब्जे के सिलसिले को छोड़कर ही नये सक्षम और अनुभवी खेल जानकारों को मौका देने से ही खेलों में विकास होगा
सरताज अकादमी
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