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नि:संदेह धार्मिक आजादी है लेकिन जबरन धर्मांतरण की आजादी कदापि नहीं

खरी-खरी            Nov 17, 2022


राकेश दुबे।

अब तो समझिये,देश की शीर्ष अदालत भी जबरन धर्मांतरण को चुनौतीपूर्ण मुद्दा मानती है। उसका स्पष्ट मत है कि इस तरह की कोशिशें जहां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चुनौती हैं, वहीं नागरिकों की धर्म और अंत:करण की स्वतंत्रता को भी बाधित करती हैं।

जब शीर्ष अदालत केंद्र सरकार से कदम उठाने को कहती है तो विषय की गंभीरता का अहसास होता है।

अदालत का मानना है कि देश में धार्मिक आजादी है, लेकिन इसका मतलब जबरन धर्मांतरण की आजादी होना कदापि नहीं है।

शीर्ष अदालत ने इस बाबत केंद्र सरकार को तुरंत कदम उठाने को कहा है और बाईस नवंबर तक जवाब दाखिल करने को कहा है ताकि मामले में माह के अंतिम सप्ताह में सुनवाई हो सके।

देश में लंबे समय से आरोप लगते रहे हैं कि देशी-विदेशी एजेंसियां धर्मांतरण के जरिये देश का सांस्कृतिक चरित्र बदलने की कोशिशों में लगी हैं।

खासकर आदिवासी व पिछड़े इलाकों में छलबल व धनबल के जरिये ऐसी कोशिशों को अंजाम दिया जा रहा है।

हकीकत में यह संकट समाज में सामाजिक व आर्थिक असमानता से उपजा एक प्रश्न भी है।

जिन आदिवासियों व निचले जातिक्रम में आने वाले समूहों को समानता का हक नहीं मिला| उन्हीं तबकों में व्याप्त आक्रोश को धर्म परिवर्तन का अस्त्र बनाया जाता है।

जातीय दंभ से त्रस्त समाजों में यह आक्रोश नजर भी आता है। अशिक्षा भी इसके मूल में एक बड़ा कारण है।

निस्संदेह, सामूहिक धर्मांतरण की कोशिशें कालांतर सामाजिक तानाबाना भी बदलती  रही हैं।

ये कोशिशें बाद में सामाजिक टकराव की वाहक बनी  हैं, वहीं राजनीतिक हित साधने का साधन भी बनी हुई हैं।

यह बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी चुनौती पैदा कर सकती हैं,  ऐसी चिंता अब अदालत ने भी जतायी है।

अदालत ने लोभ-लालच से कराये जाने वाले मतांतरण को गंभीर मामला बताते हुए इसे रोकने की दिशा में तुरंत कदम उठाने को कहा है।

हालांकि, देश में कुछ राज्यों ने धर्मांतरण रोकने के लिये कानून भी बनाये हैं, लेकिन ये धर्मांतरण कराने वाली संस्थाओं पर अंकुश लगाने में कारगर साबित नहीं हुए हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण रोधी प्रभावी कानून बनाये जाने की मांग तभी की जाती रही है।

देश के आदिवासी इलाकों से इतर सम्पन्न राज्य पंजाब में भी धर्मांतरण के मामलों में तेजी आने की बात सामने आई है ।

जिसमें धन का प्रलोभन देकर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं।

कहा जा रहा है कि हाल के वर्षों में धर्म विशेष की गतिविधियों में अप्रत्याशित तेजी आई है। कुछ समय में बड़ी संख्या में उपासना स्थल बनाये गये हैं।

जिसके चलते पिछले पांच वर्षों में कई राज्य के कई जनपदों में सामाजिक संरचना में बदलाव देखने की बात कही जा रही है।

यह बदलाव पिछड़े व वंचित वर्गों में ज्यादा देखा जा रहा है।

निस्संदेह देश में धार्मिक आजादी है और हर व्यक्ति को अपने अंत:करण की स्वतंत्रता है, लेकिन उसका उपयोग दूसरे धर्म के लोगों के धर्म परिवर्तन के लिये किया जाना अनुचित ही है।

आरोप है कि अंधविश्वास, अज्ञानता, डर, लालच को अस्त्र बनाकर यह धर्म परिवर्तन किया जा रहा है।

कुछ इलाकों में महज अनाज देकर ही धर्म परिवर्तन करने की बात कोर्ट में याचिकाकर्ता ने कही है।

कुछ लोगों को जीवन की रोजमर्रा की मुश्किलों का समाधान धर्म परिवर्तन में बताया जा रहा है।

निस्संदेह, किसी की विवशता का लाभ उठाकर धर्म परिवर्तन कराना अनैतिक कृत्य ही कहा जायेगा।

पिछले दिनों देश में पश्चिम बंगाल, नेपाल व राजस्थान से लगे सीमांत इलाकों में धार्मिक आधार पर जनसंख्या के स्वरूप में बदलाव को लेकर राष्ट्रीय एजेंसियां चिंता जता चुकी हैं।

वे इस सुनियोजित कोशिश को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा बताती रही हैं।

नि:संदेह, इस समस्या को राष्ट्रीय चुनौती मानते हुए जहां सरकार को यथाशीघ्र पहल करने की जरूरत है, वहीं समाज के स्तर पर जागरूकता की जरूरत है।

सदियों से राष्ट्र की मुख्यधारा से कटे लोगों को मुख्यधारा में लाने के सार्थक प्रयास करने की जरूरत है।

साथ ही गरीबी के दलदल में धंसे लोगों तक सरकारी नीतियों का लाभ पहुंचाने की जरूरत है,  जिससे उनका जीवन स्तर भी सुधरे।

 



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