
राकेश कायस्थ।
न्यू इंडिया में छोटा कुछ भी नहीं होता है, जो होता है, सबसे बड़ा होता है। चार साल पहले मोदीजी के हमारे मेहुल भाई' ने अपने भांजे नीरव मोदी के साथ मिलकर 13 हज़ार करोड़ रुपये के बैंक फ्रॉड का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था।
एक और गुजराती व्यापारी ऋषि अग्रवाल ने यह रिकॉर्ड तोड़ दिया है और वो भी भारी अंतर से। सूरत की एसजीपी शिपिंग यार्ड्स का घोटाला 22,842 करोड़ रुपये का है।
यानी पांच साल के भीतर किसानों की आय के साथ-साथ घोटाले की रकम भी दोगुनी हो गई। ठोको ताली...
ऋषि अग्रवाल परिश्रम की पराकाष्ठा में यकीन रखने वाले पहली पीढ़ी के कारोबारी बताये जाते हैं। उनके विजन से प्रभावित होकर श्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए एसजीपी शिपिंग यार्ड्स को सूरत में एक लाख वर्ग मीटर ज़मीन आवंटित की थी। उद्योगपतियों के डेलीगेशन में मोदीजी के साथ अग्रवाल साहब भी विदेशी दौरे पर गये थे। ठीक उसी तरह जैसे नीरव मोदी गये थे। ठोको ताली...
ऋषि अग्रवाल ने प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर यानी हर तरह के बैंक को चूना लगाया है। सबसे ज्यादा यानी लगभग चार हज़ार करोड़ रुपये का फटका हम सबके प्यारे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को लगा है, जहां बुजुर्ग लोग सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अपने पैसे रखते हैं। 
इस तरह के घोटाले एलआईसी की तरह एसबीआई के निजीकरण का रास्ता भी साफ करेंगे। हमेशा की तरह साहब संसद में हाथ नचाकर कहेंगे--  बाबुओं के भरोसे बैकिंग सेक्टर कब तक छोड़ा जा सकता है। प्रोफेशनल प्राइवेट मैनेजमेंट चाहिए।
अग्रवाल साहब ने आईसीआईसीआई जैसे प्राइवेट बैंकों को भी अच्छा-खासा चूना लगाया है। अगर आप सोच रहें कि इतने बड़े घोटालों से बैकिंग सेंटर की वित्तीय स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा तो ये डर मन से निकाल दीजिये। जनता है.. ना। इस घाटे की भरपाई एटीएम ट्रांजैक्शन और दूसरी सेवाओं पर शुल्क बढ़ाकर कर ली जाएगी.. जैसा हर बार होता है। ठोको ताली....
एसजीपी ग्रुप को 2012 से लेकर 2017 तक बैंकों से लगातार लोन मिला है। 2012 में इस कंपनी का कारोबार 248 करोड़ रुपये था। 2017 में आकर कारोबार सिर्फ 2 करोड़ रुपये रह गया और घाटा 721 करोड़ रुपये हो गया। इसके बावजूद बैंकों ने इसे लोन दिया। ठोको ताली....
जो लोग शेयर बाज़ार में रुचि रखते हैं, उनके लिए स्क्रीन शॉट शेयर कर रहा हूं, जिससे आपको पता चलगा कि एसजीपी शिपिंग यार्ड्स किस हैसियत की कंपनी है। क्या ऐसी हैसियत की किसी कंपनी को बाइस हजार करोड़ का लोन मिल सकता है?

भक्तगण इस ख़बर से निराश ना हों। दो चीज़ें आपके पक्ष में है। घोटाले में दो साल यूपीए के कार्यकाल के भी हैं। कोई अगर आपसे ये कहे कि 2017 से इस घोटाले को लेकर सुगबुगाहट थी, फिर भी पांच साल तक कार्रवाई क्यों ना हुई तो सीधे उससे कहिये कि 2012 और 2014 में भी बैंक ने लोन दिया था, तब क्यों चुप थे।
इससे भी ज्यादा तगड़ा प्वाइंट ये है कि घोटाले से जुड़े ज्यादातर लोग नेहरूजी के कार्यकाल में पैदा हुए हैं। यानी मामला सुनवाई से पहले ही डिसमिस।
 
                   
                   
             
	               
	               
	               
	               
	              
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