Breaking News

अब शॉर्ट कट का तकाजा है कि क्वेश्चन पेपर ही आउट करवा लिया जाए

खरी-खरी            Jun 19, 2024


 

हेमंत कुमार झा।

फिल्मों में देखते हैं कि जिलों में हाकिमों की पोस्टिंग बिकती है, अखबारों में पढ़ते हैं कि विश्वविद्यालयों में कुलपतियों, कुलसचिवों के पद बिकने के आरोप लग रहे हैं, टीवी में देखते हैं कि एमपी और एमएलए कभी खुदरा तो कभी थोक के भाव में बिक जाया करते हैं,  सुनते आए हैं कि मालदार थानों में दारोगा जी की पोस्टिंग की बोलियां लगती हैं,  मनचाहा शहर और कॉलेज में पोस्टिंग पाने के लिए प्रोफेसर साहेबानों को अक्सर मोटा माल डाउन करना पड़ता है तो फिर परीक्षाओं के पहले उसके क्वेश्चन पेपर्स क्यों न बिकें?

जब दुनिया बाजार बनने लगती है तो ऐसा क्या है जिसकी बोलियां न लगें? बाजार की अपनी कोई नैतिकता नहीं होती। उसे नियमों और कानूनों से नियंत्रित किया जाता है। लेकिन, जब रेगुलेटर्स ही बिकने के लिए तैयार हों तो नियम और कानून गया भाड़ में।

उदारीकरण के बाद इस देश के एक वर्ग के पास खूब पैसा आया है। अब, उसके बेटे डॉक्टर या इंजीनियर से कम क्यों बनें? बचपन से बाप के वैध-अवैध पैसों के बल पर फर्राटे से एसयूवी उड़ाते दोस्तो के साथ पिज्जा खाने जाने की आदत है। तो, उसे भी कमाई वाली नौकरी चाहिए।

हर पैसे वाले का बेटा मेधावी ही हो जरूरी नहीं। चाहे जितना कोटा या कोटी में कोचिंग करवा लो, नीट या जेईई कठिन एक्जाम हैं। सीटें सीमित हैं, अभ्यर्थी अपरम्पार हैं। ऊपरी रैंक वालों को अच्छे कॉलेज मिलेंगे।

बाद वालों को कॉलेज भी उतना अच्छा नहीं और फीस भी बहुत ज्यादा। तो, जब बाद में ज्यादा पैसा लगाना ही पड़े तो पहले ही क्यों न कोई जुगाड़ कर लिया जाए। कम से कम अच्छे कॉलेज में दाखिला तो कन्फर्म हो जाएगा।

वैसे भी, इस देश में अब रीति नीति भी यही बनती जा रही है कि अच्छे संस्थानों में और अच्छे कोर्सों में पैसे वालों के ही बेटे पढ़ सकें।

 अब, शॉर्ट कट का तकाजा है कि क्वेश्चन पेपर ही आउट करवा लिया जाए। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। लो जी, इसका भी मार्केट तैयार हो गया। एक से एक टैलेंटेड लोग लग गए क्वेश्चन आउट कर बेचने के धंधे में। पता नहीं, ये हुनर सीखी कहां से।

कोई प्रिंटिंग प्रेस से ही क्वेश्चन उड़ा ले रहा है कोई रास्ते में हथौड़ा मार कर सील तोड़ ले रहा है। लाखों, करोड़ों के वारे न्यारे हो रहे हैं, जोड़ कर देखो तो अरबों का बाजार है यह।

 दुनिया जब बाजार बन जाती है तो हर शै का अपना बाजार सजता है। क्वेश्चन पेपर्स का भी अपना मार्केट है। सिपाही बहाली के सवालों का इतना रेट, दारोगा बहाली का इतना, मास्टर बहाली का ये रेट, इंजीनियर डॉक्टर का रेट इतना।

फिर, रेट इस पर भी निर्भर करता है कि कहीं किसी सेफ जगह में किसी रिसार्ट में या होटल में मटन चिकन पनीर की प्लेटें सामने सजवा कर एक एक क्वेश्चन का आंसर भी रटवा दिया जाएं। फिर, एयरकंडीशंड गाड़ियों में अहले सुबह एक्जाम सेंटर तक पहुंचा देने का जिम्मा भी। बोले तो कंप्लीट पैकेज।

आजकल बाजार में कंप्लीट पैकेज का जमाना है। तो, पैसे वालों को अधिक आराम है। पैसा ही तो लगना है। वह तो देश को लूट कर, सरकार को लूट कर, पब्लिक को लूट कर है ही इतना कि कुछ भी खरीद लें।

अब, जब बाजार सजते हैं तो कुछ सीमित आमदनी वाले मिडिल क्लास के होशियार लोग भी लपकते हैं उधर। जमीनें बेच कर, गहने गिरवी रख कर, लोन ले कर इस अंधेरे बाजार में पैसे लगा डालते हैं। किसी को अपने बेटे को दारोगा बनवाना है, किसी को सिपाही, क्लर्क तो किसी को मास्टर।

डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर बन गया तो क्या कहने। पिछले साल यूपी में खबरें आई थी कि प्रोफेसर बनवाने का बाजार 35-40 लाख तक चला गया था। वह भी तब जब अपने मेरिट से बीए, एमए, नेट, पीएचडी किए रहो।

सिपाही, क्लर्क, मास्टर, दारोगा, डॉक्टर आदि बनने की परीक्षा का क्वेश्चन आउट हुआ तो क्या हुआ, गिरोहों के गैंग लीडर्स ने तो शेखियां बघारी हैं कि वे यूपीएससी के क्वेश्चन पेपर्स पर भी डाका डाल लेते हैं, बस, माल डाउन करने वाला मिलना चाहिए।

अगर जिम्मेदार लोग कुलपति, प्रिंसिपल, जिलों के साहेबान, थानों के दारोगा आदि की पोस्टिंग बेचते हैं और तब भी सैल्यूट पाते हैं तो क्लर्क, मास्टर या डॉक्टरी की परीक्षाओं का क्वेश्चन अपनी मेहनत और मेधा के बल पर आउट करवा कर बेचने वालों को फांसी दे दोगे? यह कहां का न्याय है? नहीं, बाजार ऐसे नहीं चलता।

पिछले दिनों बीपीएससी की टीचर बहाली में क्वेश्चन आउट करवाने वाले बड़े रैकेट का खुलासा हुआ। कितने पकड़ाए। आजकल नीट के गैंगस्टर्स का जलवा अखबारों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। खबर नवीसों की मासूमियत देखिए, लिखते हैं, "नालंदा जिले के बाप बेटा इस के मास्टर माइंड थे, दानापुर का कोई जूनियर इंजीनियर नीट मामले का मास्टर माइंड निकला आदि आदि।"

जाहिर है, पुलिस की जांच समितियां इन पकाऊ खबरों की स्रोत होती होंगी। इस मासूमियत पर क्यों न फिदा होने को दिल करे?

बीपीएससी जैसी संस्था का क्वेश्चन पेपर प्रिंटिंग प्रेस से ही उड़वा लेने की हैसियत किसी गांव के बिगड़ैल बाप बेटे की होगी? नीट जैसी परीक्षा का क्वेश्चन अगर आउट हुआ है तो इसका मास्टर माइंड कोई जूनियर इंजीनियर जैसा अदना होगा?

बाजारों के बड़े बड़े खिलाड़ी बड़ी ही सफाई से बचते हैं, बचाए जाते हैं, जांच समितियों के द्वारा, मीडिया के द्वारा, ताकि वे अगली बार अगले गुर्गों के सहारे अपने अगले खेल कर सकें।

पैसे की हवस के सामने संसार की हर हवस बौनी है। बाजार को पैसा चाहिए, पैसा कमाने के लिए हुनर चाहिए। चाहे वह ठगी का हुनर हो, चोरी का हुनर हो, डकैती का हुनर हो, फर्जीवाड़े का हुनर हो या कोई सकारात्मक हुनर हो।

वैसे ही, हमारे नीति नियामकों ने निर्धनों के बच्चों का डॉक्टरी में प्रवेश वर्जित कर दिया है। अब इक्के दुक्के भी एडमिशन शायद ही ले पाते हैं। रिजर्वेशन कोटे वाली सीटों के लिए खरीदार कम हैं क्या? उनके पास भी वैध अवैध पैसों का भंडार है।

दादा ने रिजर्वेशन लिया, पोस्ट हासिल किया, जम कर कमाई की, फिर बेटा जी आए, आरक्षित कोटि का लाभ लिया, अकूत कमाया, अब पोता या पड़पोता जी की बारी है। कौन सी पोस्ट है जो पहुंच से दूर है? जो बिकेगा वह ले लेंगे। बाजार होता ही है इसीलिए।

बाजार बनती दुनिया में पोस्टिंग बिकती है, सेलेक्ट होना बिकता है, एक्जाम सेंटर बिकता है, क्वेश्चन पेपर बिकता है, बहुत कुछ बिकता है। जब खरीदने वाले झोली भर कर मुंह बाए खड़े हैं तो बेचने वाला तो धरती फोड़ के निकल कर आ जाएगा। बाजार का यही नियम है।

 



इस खबर को शेयर करें


Comments