ममता यादव।
सोशल मीडिया पर फैली साम्प्रदायिक वैमनस्यता की गंदगी को नजरअंदाज करके देखें तो इसमें कोई शक नहीं कि मध्यप्रदेश के लोगों और यहां की पत्रकारिता ने अमन चैन को कायम रखा हुआ है बच्चियों के साथ हुए दुष्कृत्यों के बाद जिस तरह कठुआ और अलीगढ़ पर प्रतिक्रिया आई वह डराने वाली थी।
इसके पीछे कारण है मीडिया की रिपोर्टिंग और सोशल मीडिया पर उसका प्रसार फिर प्रतिक्रिया। ऐसा ही घटनाक्रम भोपाल में हुआ लेकिन इसे मध्यप्रदेश के लोगों ने जाति धर्म के नाम पर मुद्दा नहीं बनाया। फोकस रहा सिर्फ और सिर्फ बच्ची के साथ हुई हैवानियत पर।
यही मध्यप्रदेश की ताकत है। आज अखबारों में भी खबर का प्लेसमेंट और कवरेज देखकर सुकून मिला। वहीं एक बार नहीं कई बार देखा है मैंने खुद को उत्तरप्रदेश का नम्बर एक कहने वाला अखबार कई घटनाओं में जाति धर्म का न सिर्फ उल्लेख करता है बल्कि विस्तार से लिखता है। ऐसा ही कई न्यूज चैनल वाले करते हैं।
पर मध्यप्रदेश में ये अच्छाई खूबसूरती कायम है यह हमारी खुशकिस्मती है। हम आपस में उलझ सकते हैं पर सुख-दुख में एक ही रहते हैं।
पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान ये प्रमुखता से पढ़ाया जाता था कि कभी साम्प्रदायिक दुर्घटनाओं के कवरेज के दौरान धर्म या जाति का उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए नहीं तो माहौल खराब हो सकता है।
सुकून इसी बात का है कि मध्यप्रदेश में ये ध्यान रखा जाता है। इस सुकून को कायम रखने की जिम्मेदारी अगर ईमानदारी से कोई निभाता है तो वो है मध्यप्रदेश की जनता।
जब भी आपको अपना कुछ ज्यादा ही खतरे में लगे तो सोशल मीडिया से दूरी बना लीजिये और असल दुनिया मे लौट जाइये सब ठीक और अच्छा लगेगा। हमारे यहां कोई भी बच्ची बच्ची ही है। अपराधी अपराधी ही है।
सबसे बड़ी बात इंसान इंसान ही है। ये अमन सुकून कायम रहना चाहिए इसी समझदारी के साथ यही दुआ है।
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