वीरेंद्र शर्मा।
समाज के प्रति प्रतिबद्धता कभी पदों की मोहताज नहीं होती। इसका सबसे बड़ा उदाहरण इटली के एकीकरण में महत्वपूर्ण निभाने वाला प्रसिद्ध क्रांतिकारी जुज़ॅप्पे गैरीबाल्डी है।
विजय के बाद बिना किसी पद की अभिलाषा के राजा से सिर्फ एक बोरा गेहूं लेकर यह कहकर अपने गांव चले जाने वाला गैरीबाल्डी कि" स्वतंत्र इटली अमर रहे", सच में त्याग और तपस्या का एक अद्भुत उदाहरण है काश कि सपाक्स के कर्ताधर्ताओं ने गैरीबाल्डी का एक सबक तो पढ़ा होता।
काश ये तो सोचा होता कि आखिर सपाक्स की नींव रखने वाले नींव के पत्थरों ने किन मुसीबतों का सामना कर एक मिशन की लड़ाई शुरू की थी।
प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए इंदौर की एक महिला कर्मचारी ने अपने जेवर गिरवी रख के पैसे जुटाए थे। उंगलियों पर गिने जाने वाले लोग थे जिन्होंने सरकार के सामने खड़े होकर लड़ाई लड़ने का साहस दिखाया था।
ये वो लोग थे जिन्हें उस पुष्प की तरह सिर्फ यह अभिलाषा थी कि 70 सालों से चली आ रही सियासत की उपज उस अन्यायकारी व्यवस्था को समाप्त कर पाएं जिसके पैरों तले योग्यता बेरहमी से कुचली जाती है।
एक माहौल बना था सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग अपने हितो के लिये लामबंद दिखाई दे रहा था कि अचानक एक दबाव समूह के रूप में विकसित होते सपाक्स को राजनीति की बुरी नजर लग गई।
व्यवस्थाओं की सुचारू संचालन के लिए जिन्हें नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी गई क्षुद्र स्वार्थों के चलते वे अधिनायकवादी रवैया अपनाने लगे। अचानक घोषणा की गई कि सपाक्स राजनीति के मैदान में उतरेगा। यह भुला दिया गया कि राजनीति की कीचड़ में सिर्फ महत्वाकांक्षा पलती है, मिशन कभी सफल नहीं होते।
अरे अजाक्स से कुछ सीखा होता! बरसों पुराना संगठन आज भी सिर्फ और सिर्फ मिशन के प्रति प्रतिबद्ध है, कभी राजनीति की दलदल में नहीं उतरा।
मिशन में डूबा व्यक्ति हमेशा भगत सिंह की तरह फांसी के फंदे को चूमता है ,गद्दी के लिये सियासत की राजनीति नहीं करता। यह तय मानिए अच्छे खासे मिशन को कुछ व्यक्ति विशेषो की महत्वाकांक्षाओं ने दफन करने की पूरी तैयारी कर ली है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और सहारा समय के मध्यप्रदेश ब्यूरो हैं।
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