समीर खान।
यह तानाशाही और सिर्फ अपनी जिद बन्द कीजिए, अच्छे काम करके, अच्छी तस्वीरें छपवाकर कोई अच्छा नहीं बन जाता।
आपसे पहले भी यहाँ बहुत लोग उस कुर्सी पर बैठकर जा चुके हैं जिन्होंने अपने पैरों तले किसानों के आंदोलन को कुचलने की कोशिशें की, वह असफल रहे।
क्योंकि इस जिले का इतिहास पढ़िए, किसानों की समस्याओं को समझिए, उनसे संवाद कीजिए।
आप अनुमति की बात कर रहे हैं तो अभी हाल ही में कर्मचारी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया, उसकी अनुमति भी आपके द्वारा ही दी गई होगी।
फिर किसान कौन हैं..? कोई मंगल ग्रह से आये हैं क्या, यह सिर्फ वही बात करने आये हैं जो बात यह आपसे हाथ जोड़कर कई बार कर चुके हैं।
आपकी संवादहीनता और इनकी समस्या दूर न होने से यह विवाद जन्मा है तो आज इसकी वजह भी आप ही हैं।
जो तकलीफ यहां का कृषक भोग रहा है उसे दूर करने की बजाय आप किसानों के समक्ष पुलिस और कर्मचारियों को आगे कर रहे हैं।
यह अच्छे लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है, यदि आपको किसानों की ही आवाज दबानी है तो फिर आप स्वतंत्र है।
आपको कौन रोक सकता है, पर विचार कीजिएगा कि क्या यह तरीका सही है?
जब बार-बार किसान आपके दर पर हाथ फैला रहा है, आपको सूचित कर रहा है लेकिन आप संवाद नहीं कर रहे हैं।
किसान संगठन से बात करना उचित नहीं समझ रहे हैं। आपका यह रवैया नाकाबिले बर्दाश्त है।
एक अच्छा लोक सेवक लोक के लिए अपनी सेवाएं देता है और उसकी जिम्मेदारी भी यही है कि वह आवाम की मुश्किलातों को दूर करने की कोशिश करे।
जिले की जनता का आग्रह है कि टकराव के हालात न बनें।
त्यौहारों का मौसम है आम जन इन हालातों में परेशान हैं तो इन्हें शांतिपूर्ण तरीके से बैठने व अपनी बात कहने की इजाजत दी जाए।
ट्रेक्टर्स के माध्यम से जरूरत का सामान लाने दिया जाए।
यकीन मानिए यहाँ का किसान बहुत सह्रदयी और शांत है वह प्रशासन को जरा सा भी परेशान नहीं करेगा।
पर किसान, एक सीमा के बाद अक्ल खो देता है यह बात आपको समझनी होगी।
मौके की नजाकत को देखते हुए प्रशासन को अपनी हट छोड़नी चाहिए और किसानों से संवाद करना चाहिए।
वरना वह किसान ही तो है, धरती को बिछौना और आकाश को चादर बनाकर कहीं भी सो जाएगा।
Comments