राकेश दुबे।
अब बॉल कांग्रेस के पाले में है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश और उसके बाद राजस्थान जाकर भी यह घोषणा कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो दस दिनों के अंदर किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा।
उससे यही पता चल रहा है कि वह किसान कर्ज माफी के बुरे नतीजों से परिचित होने के बाद भी उसे ही चुनाव जीतने का मंत्र मान बैठे थे।चुनाव जीत भी गये अब कर्ज़ माफ़ी के लिए धन कहाँ से लायेंगे यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है।
जुमलेबाज़ी का आरोप लगाने वाले राहुल गाँधी यह बात जानते थे और है कि पंजाब और कर्नाटक की उनकी सरकारों को कर्ज माफी की अपनी घोषणाओं को पूरा करने में एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है।
नि:संदेह राहुल गांधी इससे भी अपरिचित नहीं हो सकते कि अतीत में विभिन्न् राज्यों और यहां तक कि केंद्र सरकार की ओर से भी किसान कर्ज माफी की जो घोषणाएं की गईं, उनसे किसानों का वास्तव में भला नहीं हुआ।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर उसी रास्ते पर जाने का क्या मतलब, जिससे किसानों का भला होने के बजाय वे नए सिरे से कर्ज के जाल में फंस जाते हैं और बैंकों की वित्तीय सेहत पर भी नकारात्मक असर पड़ता है?
इस पर हैरानी नहीं कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना आदि राज्यों में कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों की ओर से कर्ज माफी की घोषणाओं से बैंक चिंतित हैं।
एक अनुमान है कि यदि इन राज्यों में कर्ज माफी की योजनाएं अमल में आईं, तो बैंकों के करीब एक लाख करोड़ रुपए के कर्ज फंस सकते हैं।
अब जब बैंकों की हालत पहले से ही खराब है, तब कर्ज माफी की घोषणाएं करते रहना एक तरह से बर्बादी की राह पर जान-बूझकर जाने जैसा है।
यह चिंताजनक है कि जब कांग्रेस को अपनी और साथ ही दूसरे दलों की कर्ज माफी की नाकाम नीतियों से सबक सीखना चाहिए, तब वह किसानों को एक तरह की अफीम चटाने का काम कर रही है।
कांग्रेस की ओर से भले ही यह दावा किया जाए कि उसकी राज्य सरकारें अपने स्तर पर कर्ज माफी के धन का प्रबंध करेंगी, लेकिन इसकी कतई अनदेखी नहीं की जा सकती कि कर्ज माफ करने की घोषणा होते ही बैंकों का कर्ज वसूली का तंत्र चरमरा जाता है।
कर्ज माफी की चुनावी घोषणाएं कैसे हालात पैदा करती हैं, इसका एक प्रमाण मध्य प्रदेश में ही देखने को मिल रहा है जहां कांग्रेस की ओर से कृषि कर्ज माफ करने की घोषणा होते ही यहां के कई किसानों ने कर्ज की किश्तें देना बंद कर दिया है।
समस्या केवल यह नहीं है कि कर्ज माफी की योजनाएं नाकाम होने के बाद भी बार-बार सामने आती जा रही हैं,बल्कि यह भी है कि वे ईमानदारी से कर्ज चुकाने वाले किसानों के समक्ष धर्मसंकट खड़ा कर रही हैं।
कर्ज माफी की घोषणाएं जाने-अनजाने किसानों को कर्ज न लौटाने के लिए उकसाती हैं। कर्ज माफी की घोषणाएं केवल किसानों का ही अहित नहीं कर रही हैं।
वे बैंकों के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था का भी बेड़ा गर्क कर रही हैं। नि:संदेह ऐसा भी नहीं है कि राज्य सरकारें कर्ज माफी का पैसा अपने नेताओं की जेब से जुटाती हों। यह भी तो जनता के टैक्स का ही होता है।
Comments