कौशल सिखौला।
गंगा तव दर्शनात मुक्ति .....
गंगा में टाइटैनिक यानी क्रूज ?
पहले गंगा में स्टीमर फिर नावों में डीजल इंजन और फिर सीएनजी।
क्रूज या रिवर क्रूज या मिनी क्रूज इतना मंहगा कि रईसों और विदेशियों के अलावा कोई जा ही न पाए।
अब भला 51 दिनों की लंबी यात्रा में 3200 किलोमीटर का सफर करने से पहले आम तो आम खास आदमी भी हजार बार सोचेगा।
इतने लंबे समय की बात छोड़िए 50 लाख रुपए कहां से लाएं ?
राजस्थान की पैलेस ऑन व्हील की तरह गंगा में क्रूज भी विदेशियों के काम आएगा।
आश्चर्य यह भी कि 18 सुपर डुपर डीलक्स कक्षों और राजसी ठाठ बाट वाले क्रूज की यात्रा 2024 तक बुक हो चुकी है।
भगवान राम के पुरखों की चार पीढ़ियां गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाने में लग गईं।
कपिल मुनि के शाप से भस्म हुए राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की राख बहाने के लिए राम के पूर्वज राजा भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे।
शिव की जटाओं के रास्ते गंगा भगीरथ के पीछे पीछे चलीं।
भागीरथ शंख बजाते आगे आगे, पतित पावनी गंगा मां पीछे पीछे। वाह ! क्या अद्भुत समां रहा होगा !
गंगा सागर में कपिल मुनि के आश्रम तक गंगाजी बहती रहीं, किनारों पर बड़े-बड़े तीर्थ बनते गए ।
2525 किमी का सफर तय कर भगीरथ गंगासागर स्थित कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे , अपने पूर्वजों की राख बहाई, पीढ़ियों बाद अंतिम संस्कार संपन्न हुआ।
गंगाजी एक मात्र ऐसी नदी हैं जो हिंदुओं की अस्थियां बहाने के प्रयोजन से धराधाम पर आईं ।
विश्व में वे अकेली हैं, जिन्हें माता की संज्ञा मातृ नदी प्रदान की गई है ।
इतिहास की यह सत्यकथा बखान करने के पीछे उद्देश्य गंगा की महत्ता और अलौकिकता बताना है।
एक प्रसंग और सुनिए, वर्ष 1913 में ब्रिटिश सरकार ने हरिद्वार में गंगा पर बांध बनाने की योजना बनाई ।
बांध बन जाने पर हर की पैड़ी पर बहने वाली गंगाजी बंधकर बहती और नहर के जरिए ब्रह्मकुंड हर की पैड़ी पहुंची।
तीर्थ पुरोहितों ने इस योजना का यह कहते हुए कड़ा विरोध किया कि बंधे हुए जल में अस्थि प्रवाह , दशगात्र , क्रियाकर्म , जनेऊ मुंडन आदि कर्मकांड शास्त्रीय दृष्टि से वर्जित है।
बांध के नीचे बंधकर आने वाली गंगा की धारा अक्षुण्ण और अवच्छिन्न नहीं रहेगी ।
अंग्रेज न माने तो 1914 में पंडों ने महामना मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में आंदोलन शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे यह आंदोलन कोलकाता तक फैल गया, पंडों ने अपने यजमान राजा महाराजाओं और प्रभावशाली लोगों से गंगा की पवित्रता की रक्षा की गुहार लगाई।
अंततः महामना और पंडों के आह्वान पर बत्तीस राजाओं की सेनाओं ने भीमगोड़ा में डेरा डालकर बांध बनाने वालों को खदेड़ दिया। यह विश्व का पहला बांध विरोधी आंदोलन था।
धार्मिक आंदोलन को उग्र होता देखकर ब्रिटिश सरकार डर गई और बांध बनाने की योजना निरस्त कर दी।
गंगा की अस्मिता के लिए पुरोहितों की यह बहुत बड़ी जीत थी ।
तीर्थाटन और पर्यटन में अंतर है तो उसे रहना भी चाहिए, तीर्थ पर कारीडोर बने पर तीर्थाटन के लिए, पर्यटन के लिए नहीं।
तीर्थ की मूल सत्ता उसी तरह बरकरार रहनी चाहिएजैसे पर्यटन स्थलों की रहनी चाहिए । हम पहलगाम, शिमला, मसूरी, दार्जलिंग को तीर्थ की दृष्टि से विकसित करने की मांग नहीं करते तो तीर्थों को पर्यटन स्थलों में क्यूं बदलना चाहते हैं ?
गंगा को भी गंगा रहने दीजिए, सौ बार सोचिए गंगा धर्म से जुड़ी हैं क्रूज जैसे पर्यटन से नहीं।
गंगाजल की गुणवत्ता पहले ही खत्म की जा रही है, उसमें अब पेट्रोल की गंध घोली जा रही है, रोली, चंदन और कपूर की नहीं ।
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