प्रवीण कुमार झा।
मुझे ऐसा काफ़ी समय तक लगता रहा कि एलोपैथी चिकित्सा शिक्षा सिर्फ़ अंग्रेज़ी में ही संभव हैं।
आखिर सभी मानक किताबें जो पूरी दुनिया में नए एडिशन आती है, वह अंग्रेज़ी में ही है। वे इतनी मोटी और बारीक़ फॉन्ट में हैं कि उनका अनुवाद और हर तीसरे वर्ष सुधार करना असंभव और अप्रायोगिक है।
हैरीसन नामक मूल किताब किसी और भाषा में मिलती भी तो है, तो नियमित सुधारी (संस्करण) नहीं जाती।
फिर कुछ यूँ मोड़ आया कि ग़ैर-अंग्रेज़ी देश नॉर्वे आ गया। यहाँ की शर्त ही थी कि नॉर्वेजियन भाषा की सबसे कठिन परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी, क्योंकि वही चिकित्सकीय भाषा है।
खैर, डाक्टरी अपने-आप में ही इतना दूहर पाठ्यक्रम है कि भाषा एक मामूली चीज है।
चूँकि इस देश के तिहाई चिकित्सक बाहरी देशों से ही हैं, तो सबने यह सहजता से कर लिया।
कैसे? पूरी डाक्टरी अंग्रेज़ी में पढ़कर अब नॉर्वेजियन में कैसे सारी फाइल लिखने लगे?
यही एक बात समझनी है कि डाक्टरी की भाषा कभी भी अंग्रेज़ी थी ही नहीं।
अंग्रेज़ी में पीएचडी हों या शशि थरूर, वह डाक्टरी भाषा नहीं समझ सकते।
वह ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में न मिल पाएगी। वह भाषा चीनी, रूसी, कोरियाई, इतालवी, फ्रेंच, नॉर्वेजियन, स्वीडिश सभी में एक ही है। हर भाषा में एक नस का नाम Arteria mesenterica superior ही है, लिपि भले भिन्न हो।
बदलते हैं सिर्फ़ उनके वाक्य में प्रयोग।
जैसे आप दिल्ली, बंबई, पटना हर भाषा में एक ही नाम लिखते हैं, वे फिक्स हैं। कुछ उसी तरह। अब ये वाक्य पढ़ें
There is a fracture through sinus sphenoideum.
Det er en fraktur gjennom sinus sphenoideum. (Norsk)
साइनस स्फिनॉयड में फ्रैक्चर है। (हिंदी)
साइनस स्फिनॉयडल्ली फ्रैक्चर इदे। (कन्नड़)
साइनस स्फिनॉय्ड मध्ये फ्रैक्चर आहे। (मराठी)
अलग-अलग स्थानों पर कार्य करते हुए मेरी यह भाषा चिकित्सकों के मध्य रही है, मेरी ही नहीं, अधिकांश लोगों की।
आप मरीजों से भी इसी शब्दावली को कुछ सरल कर स्थानीय भाषा में बात करते हैं।
अगर अंग्रेज़ी किताबें भी पढ़ें, तो भी चिकित्सक को स्थानीय भाषा सीखनी ही है।
बल्कि पढ़ाते वक्त भी अगर शिक्षक सहजता से बुझाना चाहते हैं, तो वह स्थानीय भाषा का प्रयोग करते हैं।
इन्हीं अंतरराष्ट्रीय मानक शब्दों को अगर बदल दिया जाए तो मसला और है।
पैनक्रियाज के अग्नाशय या bukspyttkjertel (नॉर्वेजियन) नाम मालूम होने में हर्ज़ नहीं, मगर पैनक्रियाज ज़रूर मालूम हो।
हैरीसन अंग्रेज़ी में पढ़ी जाए, यह द्वितीय भाषा तो है ही।
पढ़ाने की या समझने की भाषा अलग चीज है।
वह दुनिया के बड़े हिस्से में अपने स्थानीय भाषा में पढ़ी जाती है और कहीं दिक्कत नहीं आती।
जहाँ हिंदी बोली जाती है, मरीज हिंदी बोलते-समझते हैं, वहाँ हिंदी में पढ़ाना अनुचित नही।
आखिरी बात कि डॉक्टर जब दुनिया के तमाम टेढ़े-मेढ़े स्पेलिंग सीख गए तो अंग्रेज़ी उनके लिए कोई हौवा नहीं है।
मुद्दा है व्यापक और सहज अभिव्यक्ति का, जो हम सभी जानते हैं कि कैसे संभव है।
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