राकेश अचल।
मध्यप्रदेश सरकार के हिसाब से जनता को आनंद प्रदान करना भी सरकार का काम है। इसके लिए बकायदा अलग से विभाग का गठन किया गया है और अब पूरे प्रदेश में आनंदोत्सव मनाये जा रहे हैं। ये जाने बिना कि आनंद है क्या और प्राप्त कैसे होता है? बावजूद इसके सरकार की कोशिशों की सराहना की जाना चाहिए क्योंकि सरकार पत्थर पर लकीर खींचने की कोशिश कर रही है।
ख्यातिनाम दार्शनिक एपिकुरुस और उनके अनुयायियों के अनुसार, सर्वोत्तम आनंद पीड़ा की अनुपस्थिति है, आनंद का तात्पर्य, "दैहिक पीड़ा से मुक्ति एवं आत्मा की अशांति से मुक्ति है। सिसरो का मानना था कि सुख की अनुभूति प्रमुख कल्याण है और, इसके विपरीत, पीड़ा प्रमुख बुराई.12 वीं सदी में फख्र अल दीन अल रजी ने अपनी किताब"रूह अल नफस वैल रूह" में आनंद का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण विभिन्न प्रकार के आनंदों का विश्लेषण कामुक और बौद्धिक के रूप में किया और इनके एक दूसरे से तुलनात्मक सम्बन्ध की विवेचना की। उन्होंने दृढ़ता पूर्वक कहा कि "सुखद अनुभूति का अगर सूक्ष्म परीक्षण किया जाए तो यह प्रकट होगा कि यह अनिवार्य रूप से सिर्फ पीड़ा का उन्मूलन मात्र है। 19 वीं शताब्दी में जर्मन दार्शनिक आर्थर स्चोपेन्हौएर ने सुखद अनुभूति को नकारात्मक संवेदना माना है क्योंकि यह पीड़ा नज़रंदाज़ करता है जो कि सार्वभौमिक स्थिति है।
वास्तविकता ये है कि उपयोगितावाद और प्रेमवाद वह दर्शन हैं जो आनंद की अधिकतम वृद्धि और पीड़ा को कम से कम करने पर समर्थन करते हैं। ऐसे दर्शन के कुछ उदहारण फ्रायड की मानव प्रेरणा के सिद्धांत में मिलते हैं - जिसे मनोवैज्ञानिक सुखवाद कहा गया है। उनके अवलोकन के अनुसार मानव की सहज प्रवृति अनिवार्य रूप से विलासिता (भौतिक आनंद) को प्राप्त करने की चेष्टा है।अब सवाल ये है की सरकार समाज को कौन सा आनंद किस तरीके से प्रदान करना चाहती है।
मध्यप्रदेश सरकार जनता की पीड़ा को कम करने के लिए जो कार्यक्रम आयोजित कर रही है उनमें सुमधुर गीतों की प्रस्तुति, रोचक सांस्कृतिक समारोह, पतंगबाजी और विविध खेल भी होंगे।अब बेरोजगार,अवसादग्रस्त लोग नाच-गा कर पतंगें उड़ाकर अपना गम गलत करेंगे यानि आनंद की प्राप्ति करेंगे। आनंद की प्राप्ति के लिए समाज में हर स्तर पर आदर्श स्थितियां निर्मित की जाना चाहिए,लेकिन ये कठिन काम है इसलिए सरकार आसान रास्ते पर चल पड़ी है। युवा बेरोजगार हैं,किसान परेशान हैं, महिलाएं उत्पीड़न का शिकार हैं,नौकरशाही बेलगाम है लेकिन सरकार इस सबसे अलूफ रहना चाहती है और ऐसे ही अव्यवस्थित,असंतुष्ट माहौल में आनंद का सृजन करना चाहती है। ये हकीकत से भागने जैसा उपक्रम है। जैसे "भूखे व्यक्ति से आप भजन की अपेक्षा नहीं कर सकते वैसे ही समस्याग्रस्त व्यक्ति को आप आनंद की अनुभूति नहीं करा सकते।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भावना के अनुरूप आनंद विभाग मध्यप्रदेश के हर नागरिक को प्रसन्न रखने और स्वाभाविक आनंद को महसूस करने के महत्व से अवगत करवाने के लिए अनेक गतिविधियाँ करवा रहा है। शहरों में ऐसे केन्द्र स्थापित किये जायेंगे जिसमें लोग उन वस्तुओं को जमा करेंगे, जो अन्य जरूरतमंद लोगों के लिए उपयोगी होंगी। इसके लिए सभी वर्गों के लोगों से आव्हान किया गया है कि वे ऐसे घरेलू सामान और वस्त्रों कोआनंद की दीवार अर्थात् नव स्थापित केन्द्र में जमा करें, जिस सामान अथवा वस्त्रों की उन्हें आवश्यकता नहीं हैं।ये काम स्वयमसेवी संस्थाएं पहले से करती आ रही हैं ।
दरअसल मध्यप्रदेश सरकार द्वारा आनंद विभाग बनाए जाने की मंशा भी यही है कि किसी अन्य की सहायता कर आत्मिक आनंद प्राप्त किया जाए। भौतिक सुविधाओं के बढ़ जाने और बड़े पदों पर आसीन होने से ही प्रसन्नता और आनंद प्राप्ति नहीं हो सकती। पारस्परिक सहयोग वास्तविक आनंद प्रदान करता है। आनंद विभाग का उद्देश्य है कि संतुलित जीवनशैली के लिए नागरिकों को ऐसी विधियां तथा उपकरण उपलब्ध कराए जाएं, ताकि वे उनके लिए आनंद के कारक बनें। इसी दिशा में सात दिनों तक प्रत्येक ग्राम पंचायत और पंचायत समूह स्तर पर आनंद उत्सव का आयोजन किया जाएगा। इसमें गांव के बच्चे, किशोर, युवा, बुजुर्ग महिला एवं पुरुषों की विभिन्न खेलकूद, गायन, नृत्य, लोकसंगीत जैसी प्रतियोगिताएं होंगी। जिनमें उन्हें आनंद की अनुभूति हो। प्रत्येक गतिविधि के लिए पंचायत विभाग द्वारा 10 हजार रुपए की सहायता भी दी जाएगी। ताकि आयोजन की व्यवस्थाएं हो सकें।
प्रदेश की मौजूदा सरकार ने अपनी मूलभूत जिम्मेदारियों से बचते हुए वे सब उपक्रम कर रही है जो सरकार के नहीं समाज के हैं। पहले वरिष्ठ नागरिकों को निशुल्क धार्मिक रेलयात्राएं,फिर नमामि नर्मदा अभियान और अब आनंदोत्सव कुछ ऐसे ही कार्यक्रम हैं। सरकार ने सामजिक सरोकारों के साथ ही जनकल्याण के ऐसे अनेक काम हाथ में लिए थे जिनका स्वरूप लोकलुभावन था,किन्तु दुर्भाग्य है की एक एक कर सबने घिसटना शुरू कर दिया। लाडली लक्ष्मियाँ घोषित राशि के लिए परेशान हैं,छात्राओं को घटिया साइकिलें मिल रहीं हैं पोषण आहार दलालों के कल्याण का साधन बन गया है,अस्पतालों में गरीब बिना दवाओं के मर रहे हैं ,फिर भी सरकार की और से आनंद की खोज जारी है कुपोषण से मरे बच्चों के अभिभावकों का दर्द सरकार की अनुभूति से बाहर की चीज है।
अब तक आनंदोत्सव साधू-सन्यासियों के जन्मोत्सव के रूप में ही मानते थे किन्तु अब सरकार इसे अपने ढंग से मना रही है। मुमकिन है की सरकारी कोशिशों से मध्यप्रदेश की जनता आनंद का अनुभव करने लगे लेकिन ये सब विधानसभा चुनावों से पहले तक ही सम्भव है। उसके बाद तो जनता होगी और उसके दुःख होंगे बेहतर हो की सरकार अपने आनंदोत्सवों में कथा-भागवत सुनाने वालों को शामिल कर ले,खाली हाथ बैठी जनता को आनंद की अनुभूति करने के लिए ये सब भी प्रभावी साबित हो सकते हैं। आइये जैसे भी हो आनंद की खोज करें और आनंदित हों,क्योंकि हमारी सरकार भी यही चाहती है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह आलेख उनके फेसबुक वाल से लिया गया है।
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