राकेश अचल।
सियासत का चरित्र उजागर करने के लिए अब कोई उपमा शेष नहीं रह गयी है। अतीत में ही राजनीतिक टीकाकार सियासत के बारे में न जाने क्या-क्या लिख चुके हैं। सियासत इतनी निर्लज्ज होगी ये कल्पना करना भी अब अकल्पनीय है। कुर्सी के लिए सियासत का कोई भी स्वरूप आपके सामने आ सकता है। कलियुग में सियासत मुझे "पतित-पावनी"लगती है। सियासत के लिए शायद ये सामयिक उपमा हो।
देश के सबसे घने और घनघोर सूबे उत्तरप्रदेश में उत्तरदायी सरकार बनाने के लिए रोज-रोज नए-नए प्रयोग हो रहे हैं किसी दल के लिए किसी दल का दल-बदलू अछूत या अस्पर्श्य नहीं है। घनघोर समाजवादी भाजपा में आकर राष्ट्रवादी हो जाता है ,तो प्रचंड जातिवादी बसपाई साधू। राष्ट्रीय कहलाने वाली कांग्रेस ख़ुशी-खुशी समाजवादी साइकल पर सवारी करने में गर्व अनुभव करती है तब ऐसा लगता है कि सियासत के बारे में चिन्तन-मनन करना ही व्यर्थ है सत्ता के लिए राष्ट्रीय दल प्रादेशिक हो गए और प्रादेशिक दल राष्ट्रीय, कितना परिवर्तन हो रहा है!
यूपी के बाद सियासत का विद्रुप चेहरा अगर देखना चाहें तो आप पंजाब का दर्शन कर सकते हैं। यहां जितनी सियासी दाढ़ियां हैं,उनमें सभी में तिनके हैं। यहां तक की जिनके पेट में दाढ़ियां हैं वे भी पंजाब की सियासत में अपनी झाड़ुओं पर ताव दे रहे हैं,मूंछें तो गरीबों के पास हैं नहीं। नवजोत रातोंरात खानदानी कांग्रेसी हो गए हैं। कल तक उनके पास कांग्रेस के लिए पता नहीं कितने जुमले थे कैप्टन अमरिंदर सिंह तो प्रकाश सिंह बादल को हवा में उड़ा देना चाहते हैं,जैसे की पंजाब सूबा न हो कोई कबूतर हो?
देश को सबसे ज्यादा ईमानदार रक्षामंत्री देने वाले गोवा की सियासत के बारे में तो कहना ही क्या है। यहां तो जो न हो जाये सो कम है गोवा में सियासत का कोई राजधर्म नहीं हैये सच्चा धर्मनिरपेक्ष राज्य है,क्योंकि यहां जो कुछ होता है देश के लिए नहीं पर्यटकों के लिए होता है कोई भी दल यहां रामराज्य की बात नहीं करता ,करना भी नहीं चाहिए ,क्योंकि यहां तो सचमुच का रामराज्य है ही।
बात सियासत में गठबंधनों की थी,इस समय सूबे सियासत में जो गठबंधन हो रहे हैं वे अवसर की मांग हैं या उनके लिए अवसर खोजे गए हैं ये कहना बहुत कठिन है। केर-बेर का संग अवसर ही मुहैया कराता है। तूफ़ान में फंसी नाव पर सांप-बिच्छू और आदमी एक साथ सवारी कर लेता है।हाथी,हाथ,कमल या साइकल तो किस खेत की मूली हैं सबने कभी न कभी आपस में गठबंधन किये हैं,जिन्होंने नहीं किये हैं वे एक-दुसरे की नकल करने में लगे हैं सीखा सबने कांग्रेस से है और देखिये वो ही कांग्रेस अब रेस से बाहर है..
सूबों की जनता के लिए अग्निपरीक्षा का समय है। उसे इन्हीं सांपनाथ और नागनाथों में से किसी एक को चुनना है। चुनने के लिए अब विदेश से तो कोई नया सियासी दल लाया नहीं जा सकता। हाँ दल चलाने के लिए विदेशों से पूँजी जरूर लायी जा सकती है। इस मामले में आम आदमी पार्टी सबसे आगे है। पंजाब में तो उसने कमाल ही कर दिया है। हम इसी दिन का इन्तजार कर रहे थे,क्योंकि हमने देश में रक्षा से लेकर कच्छा तक के कारोबार में विदेशी पूँजी निवेश को जगह दे दी थी। केवल सियासत बची थी सो अब उसके लिए भी दरवाजे खुल गए हैं।आज कनाडा से पूँजी आ रही है कल अमरीका,रूस और जापान के लावा चीन से भी आ सकती है। इसलिए हे मतदाताओ सावधान रहो,"चुनो उसे जो साथ निभाये,हर सुख-दुःख में दौड़ा आये"
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख उनके फेसबुक वॉल से।
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