इस पाखंड को जनता तो समझ चुकी है,आप आइने कब बदलेंगे?

खरी-खरी            Mar 30, 2017


रजनीश जैन।
राजनैतिक पैटर्न पढ़ने में माहिर शिवराज ने अपने आने वाले बुरे वक्त को पहचान लिया है। केंद्रीय नेतृत्व के रवैये को लगता है वे भांप चुके हैं। इसीलिए अपनी संचारी कलाओं से वे अपने कद की इतनी बड़ी लकीर खींचना चाहते हैं कि न तो उनकी लकीर मिटाने की कोई सोचे और न ही उससे बड़ी लकीर खींचने की। लेकिन खुद को भीमकाय बना लेने की इस कवायद में प्रदेश के बहूमूल्य संसाधन, समय और ऊर्जा जाया हो रही है और नतीजे माइनस में जाने के संकेत दे रहे हैं।

यह सभी महसूस कर रहे हैं कि मोदी सरकार ने शुरू से ही शिवराज सरकार को संसाधनों से वंचित रखा है। इसका प्रभाव शिवराज के कामकाज और शैली पर साफ देखा जा सकता है। घूमने और घोषणाऐं करने की अपनी आदत पर वे देर से लगाम लगा सके। जितनी घोषणाऐं कर चुके उनके लिए फंड नहीं है। फंड जुटाने के लिए केंद्रीय मदद के अभाव में राज्य की ही जनता टारगेट बन गयी है। ऐसे ऐसे नायाब तरीकों से जनता से उगाही हो रही है कि पूरी तस्वीर देखने पर कोई अर्थशास्त्री ही उनके इस खेल को समझ सके। वसूली के पाकेट्स बिखरे हुए हैं सो प्रत्यक्ष कम ही दिखाई देते हैं लेकिन कोई समझदार आसानी से समझ सकता है कि पिंजरे का उम्रदराज तोता अब अपने ही अंगों को खाकर काम चला रहा है और इस अहसास से गाफिल है कि कोई देख नहीं रहा।

जनता की जेब हल्की करते समय शिवराज सरकार के मंत्री अफसर एक नुक्ता साथ में रख देते हैं। वह ये कि यह हम नहीं कर रहे केंद्र सरकार ने ऐसा कानून बना दिया है, केंद्र की गाइडलाईन है। ये दोनों तर्क न चलें तो एक ब्रहमास्त्र तर्क सुनने मिलता है कि सुप्रीमकोर्ट के निर्देश आए हैं उसे तो पूरा करना ही पड़ेगा। मतलब यह कि हम नहीं करना चाहते थे पर दिल्ली के दवाब में करना पड़ रहा है। यानि ब्लेम मोदी पर कि जब से आऐ हैं सो वे ही करवा रहे हैं। लेकिन सोचिए कि देश में सबसे मंहगा डीजल पेट्रोल बेचने के लिए केंद्र ने शिवराज से कहा है?

स्टांप ड्यूटीज्, रजिस्ट्रेशन, लायसेंस शुल्कों में कई गुना वृद्धि, अनुबंधपत्र और शपथपत्र की फीसों में बेतहाशा वृद्धि, तहसीलों और जिला कार्यालय की नकलों की फीस, रेत ,सीमेंट, निर्माण सामग्री, स्कूल कालेज की फीसें,स्कूलबस के किराये, आरटीओ के रजिस्ट्रेशन, वाहनों के बीमे, जुर्माने, पान, बीड़ी,सिगरेट ,शराब ,होटलों के खाने,ऐसी कौन सी चीज या सेवा है जिसपर पिछले दो साल में जनता का कचूमर न निकाला गया हो। स्थानीय निकायों के टैक्स, लीज रेंट सभी तो सीधे कई गुणा बढाए हैं। कहा था टेक्नालाजी आएगी तो सब चीजें आसान और सस्ती हो जाऐंगी। किसी बेरोजगार से पूछें कि आनलाइन फार्म की फीस और भरवाई का खर्च अब क्या लग रहा है। सरकार ने टेक्नालाजी और बेरोजगारों तक को कमाई का जरिया बना डाला। और उस पर पारदर्शिता का मुलम्मा। ...जनता जान गई है कि भ्रष्टाचार की आसानी और गोपनीयता का टूल बना लिया गया है ई गवर्नेंस को।

शिवराज सरकार क्या कर रही है? वीडियो कांफ्रेंसिंग की बैठकें, हितग्राहियों का सर्जिकल चयन और फिर अंत्योदय टाईप के मेलों में उनकी नुमाईश। पिछले दो साल में कोई कमिश्नर, कलेक्टर शायद ही किसी आंगनबाड़ी केंद्र में गया हो। जो दिन सरकार ने उत्सव के रूप में बताया उस दिन तामझाम से नेता अफसर चुनिंदा स्कूलों में घुसे वापस लौट कर फिर बैठकों में जुट गये। जनता ने अफसरों की शक्लें नहीं देखीं और मंत्री सिर्फ भाषण देने पहुंचते हैं, कामों के लिए नदारद हैं। गारंटी और जबाबदेही शब्दों का जितना दुरुपयोग इस सरकार ने किया है वह अनिर्वचनीय है।

सरकार यानि शिवराज खुद क्या करते हैं? हवन, पूजा, यज्ञ,कथाऐं, भंडारे, जातिगत कुंभ, मढ़ई, मेले और यात्राऐं। नमामि देवी नर्मदे यात्रा को जो लोग धार्मिक उदेश्य की यात्रा समझ रहे हैं वे उतनी ही गलती पर हैं जितना रात को दिन बताने वाले। 136 विधानसभाओं में धर्म की आड़ में चुनावी जनसंपर्क करने की कला और वह भी सरकारी पैसे से एक एतिहासिक कारनामा है। इस यात्रा में सारी जिला,तहसील और ब्लाकों के फंड शहीद हो गये। भोपाल में नमामि देवी नर्मदे को 'सफल' बनाने में लगे विभागों ,आईएस और जनसंपर्क की चतुरंगिणी सेना देख कर ऐसा लग रहा है जैसे दिल्ली दरबार से होने वाले किसी भी हमले के लिए प्रदेश को तैयार किया जा रहा हो।... और इस सब के बाद भी मंचों पर पहुंच रहे शिवराज के चेहरे पर वो तेज और आभा नहीं है जो यूपीए सरकार के वक्त लड़े गये विस चुनाव में दिखता था। अजीब सी आशंका शिवराज के चेहरे का स्थायीभाव बन गयी है। मामा , फूफा और मौसिया वाले उनके लच्छेदार भाषणों की घिसी पिटी कैसैट सुन सुन कर लोगों ने उनकी सभाओं में जाना छोड़ दिया है।...अब बसों में ठेल कर लाये गये सूचीबद्ध हितग्राहियों को शिवराज अपने भाषण सुना पा रहे हैं। लेकिन कोई स्थानीय मंत्री, कलेक्टर या खुफिया तंत्र वाले उन्हें यह सच बता भी रहे हैं या नहीं कि आपकी महफिल से असली श्रोता भाग निकला है।

मीडिया हाऊसों, अखबारों, पत्रकारों ,लेखकों पर जितना कोष इमेज बिल्डिंग के लिए दोनों हाथ उलीचिऐ शैली में बांटा जा रहा है, वह प्रदेश के इतिहास में एक रिकार्ड है। लेकिन इससे होगा क्या? ये जो आपके मुताबिक आपका थिंकटैंक होंगे दरअसल आपके ऊपर चढ़ बैठीं अमर बेलें हैं। यूपी विजय के बाद दिल्ली सक्रिय हो चुकी है। घ्राणशक्तियुक्त और परानेत्र धारी सुधीजन दिल्ली के दस्तों की आहट सुन रहे हैं। पर शिवराज जी आप लश्कर लेकर दक्खन का मोर्चा संभाले रहो जहाँ से नर्मदा मैया आपकी नैया पार लगाऐंगी, अगर वे भी नाराज न हुईं तो!

इधर आपके सारे सिपहसालार बची खुची रसद से सिर्फ अपना विधानसभा मेंटेंन करने में जुटे हैं। बाकी प्रदेश आपकी और आपके सिपहसालारों की जूठन खा खा कर कुपोषित हो गया है।...लेकिन जब आप दक्खन के मोर्चे से लौटोगे तो उन्हीं बेचारे विधायकों को बुला बुला कर हिसाब मांगोगे जिन विधायकों की रसद तुम्हारे मंत्री हड़पते रहे। वे क्या जबाब देंगे। जब वे बताऐंगे कि किसानों को मुआवजा बांटने आपने 23 करोड़ रू जिले में भेजे थे। मंत्री महोदय के क्षेत्र में 15 करोड़ घुस गये। बाकी एक एक हमारी विधानसभाओं के किसानों को बट पाऐ तब आप क्या जबाब देंगे? मंत्री के क्षेत्र में सूखा, ओला, अतिवृष्टि हमेशा जमकर होती है और बाजू की विधानसभा में कुदरत हमेशा चमन बरसाती है।
इस पाखंड को जनता तो समझ चुकी है, आप आइने कब बदलेंगे शिवराज जी।...क्या तब जब आप वास्तव में फलों की खेती करने लगेंगे?

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।



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