राकेश दुबे।
दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन का गंभीर जल संकट दुनिया भर के साथ भारत के लिए भी चेतावनी है। बेंगलुरु सहित भारत के कई अन्य महानगर इसमें शामिल हैं। दुनिया के 12 नेताओं ने एक सप्ताह पूर्व इसे लेकर ‘खुला पत्र’ जारी किया है, जिसमें लिखा है कि विश्व एक गंभीर जल संकट से गुजर रहा है। उनके शब्द हैं, ‘हमें पानी की हर बूंद का हिसाब रखने की जरूरत है’।
इस पैनल में मॉरीशस, मेक्सिको, हंगरी, पेरू, दक्षिण अफ्रीका,सेनेगल और ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति शामिल थे, तो ऑस्ट्रेलिया,बांग्लादेश, जॉर्डन, नीदरलैंड के प्रधानमंत्री। विशेष सलाहकार के रूप में कोरिया के पूर्व प्रधानमंत्री भी इस पैनल का हिस्सा थे।
इस समूह का साफ कहना है कि समाज के लिए पानी के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व पर्यावरण से जुड़े मूल्यों का पुन: आकलन होना चाहिए। पैनल मानता है कि‘पानी का इस तरह बंटवारा होना चाहिए कि समाज को अधिक से अधिक लाभ मिले।
यह बात जग जाहिर है कि अप्रत्याशित व असामान्य गंभीर घटनाएं सामान्य मौसमी पैटर्न को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं, और अतीत अब ज्यादा दिनों तक भविष्य का बैरोमीटर नहीं हो सकता।
ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी मौसमी परिघटनाएं बार-बार घटित हो रही हैं। लिहाजा योजनाकारों और नीति-निर्माताओं को इसके मद्देनजर आपातकालीन योजनाओं के साथ तैयार रहना ही होगा।
हर भारतीय को इसे लेकर सचेत हो जाना चाहिए। अपने यहां बढ़ती आबादी, पर्याप्त योजनाओं के अभाव, कमजोर पड़ते इन्फ्रास्ट्रक्चर,बोरवेल की अंधाधुंध खुदाई, भारी मात्रा में पानी की खपत और बेपरवाही से इसके इस्तेमाल को लेकर भ्रम पालने के कारण हालात बिगड़ रहे हैं।
यदि अब भी पानी के संरक्षण व इसके कम इस्तेमाल को लेकर कठोर कदम नहीं उठाए जाएंगे, तो वह दिन दूर नहीं, जब बेंगलुरु जैसे नगरों में राशन की तरह पानी की आपूर्ति करने के लिए भी प्रशासन को मजबूर होना पड़ेगा। गौर करने वाली बात है कि बेंगलुरु उन 11 वैश्विक नगरों में दूसरे स्थान पर है, जहां पानी तेजी से खत्म हो रहा है। इस सूची में साओ पाउलो पहले स्थान पर है, जबकि बीजिंग, काहिरा, जकार्ता, मास्को, इस्तांबुल, मेक्सिको सिटी, लंदन, टोक्यो और मियामी भी सिमटते जल वाले वैश्विक शहरों में शामिल हैं। अनुमान है कि अगले तीन दशकों में शहरी क्षेत्रों में पानी की मांग 50 से 70 प्रतिशत बढ़ेगी। भारत को अभी हर साल लगभग 1100 अरब घनमीटर पानी की जरूरत होती है, जिसके साल 2050 तक बढ़कर 1447 अरब घनमीटर होने का अनुमान है।
एशियाई विकास बैंक ने अपने पूर्वानुमान में बताया है कि साल 2030 तक भारत में 50 प्रतिशत पानी की कमी हो जाएगी।
हमारे देश में पानी की जरूरतें मूल रूप से नदियों और भूजल से पूरी होती हैं। देश के सात राज्यों के उन इलाकों में सतत भूजल प्रबंधन सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जहां सर्वाधिक दोहन हो रहा है। अध्ययन में यह पाया गया है कि देश के
6584 ब्लॉक में से 1034 ब्लॉक में पानी का अत्यधिक दोहन हो रहा है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में लगभग 77 प्रतिशत बस्तियों ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल परियोजना के तहत शत-प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया है, यानी 40 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की खपत वहां हो रही है। इतना ही नहीं, 55 प्रतिशत ग्रामीण आबादी अब नल के पानी का इस्तेमाल करने लगी है।
एक अन्य गंभीर मसला, शहरों की जीर्ण-शीर्ण पाइपलाइन व्यवस्था है। इसके कारण भी काफी सारा पानी बेकार चला जाता है।इससे पहले कि स्थिति गंभीर हो जाए, हमें तत्काल सामूहिक प्रयास शुरू कर देना होगा। तालाबों, पोखरों व जल संचयन की अन्य संरचनाओं को पुनर्जीवित व सुरक्षित करना होगा।
Comments