नितिन मोहन शर्मा।
राजा कहते हो उन्हें। वे देवादिदेव हैं। सब देवन के देव हैं वे। महादेव हैं वे। उनके सामने कोई राजा नहीं। न महाराजा। वे स्वयम अवंतिकानाथ हैं। कालों के काल..महाँकाल हैं।
वे ही धरा के स्वामी हैं। साक्षात राजा। शेष सब प्रजा। उनके समक्ष प्रजा ने रहने में ही भला है। आनंद है। भगवान आशुतोष प्रजा वत्सल है। तभी तो वे स्वयं सावन मास में प्रजा का हाल जानने अवंतिकापुरी के मार्गों पर निकल पड़ते हैं। राजा प्रजा के बीच।
और आप, क्या कर रहे है? आप तो प्रजा बनना चाहते ही नहीं। उस राजा के सामने भी नहीं जो सबका नीति नियंता है। आप तो उसके समक्ष भी महाराजा बनने पर उतारू हो और वह भी जबरिया।
उसके दरबार मे जोर दिखा रहे हैं, सुरक्षा में लगे राजा के नंदी गणों को धकिया-लतिया रहे हो। डमरू की डम डम की जगह आपका तैश ओर शोर गूंज रहा है। वह भी उनके आंगन में। उनके की समक्ष।
जरा सा भी डर नहीं लगता उनसे। उनके समक्ष इस तरह से अराजकता करने से। आप तो उस दल से आते हो न जो संस्कृति-संस्कार-धर्म की बात, बात-बात में करती है।
उसी दल से हो न जो स्वयं को सबसे अलग बताता है।
जहां अनुशासन का ढोल सबसे ज्यादा पीटा जाता है। अपने आकाओं के सामने कतारबद्ध हाथ बांधे खड़े रह सकते हो, अखिल ब्रह्माण्ड के मालिक के दरबार मे सुरक्षा कर्मियों पर हाथ खोल रहे हो।
नियम कायदे ठोकरों में रख रहे हो, जबरन घुसना चाहते हो? क्यों?
प्रजा बनकर ही दर्शन कर लो। कुछ नुकसान हो जाएगा। बाबा महाकाल से ज्यादा अपने नेता की पूजा जरुरी है तो उसके लिए तो पार्टी कार्यालय है न? खूब चरण वंदना कीजिये। किसने रोका? पर ये आये दिन का तमाशा बन्द कीजिये।
कभी आपके कारण भस्मारती जैसी महत्वपूर्ण प्रभु सेवा विलंबित होती है तो कभी आपके विधायक नियम विरुद्ध गर्भगृह में प्रवेश करते है।
नियम कायदे तो आपकी ही सरकार के बनाये हुए हैं, आपका ही तंत्र उन कायदों को लागू किये हुए है।
आम आदमी तो इन कायदे कानूनों को मानकर ही राजा महाँकाल के दर्शन कर रहा है।
उसी आम आदमी को तो गर्भगृह में गए महीनों हो गए। उसके लिये तो आपकी ही सरकार ने 1500 रुपये जैसी भारी भरकम इंट्री फीस मुकर्रर कर रखी है।
कांधे पर कावड़ लिए मीलों पैदल चलकर आने वाले कांवड़ियों तक को गर्भगृह में जलाभिषेक मयस्सर नहीं होता।
कोई गलती से चला जाये तो आपका तंत्र उसके खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लेता है और आप हो कि हर बार जबरिया घुस रहे हो।
आपके दल के एक विधायक ऐसे ही जबरिया प्रवेश कर गए, कार्रवाई उन पर होना थी। कार्रवाई हुई पंडे-पुजारियों पर।
अभी भी जब आपके ही दल के युवा विंग के अध्यक्ष के आगमन पर आपने जो किया, उस पर 3 दिन बीत जाने के बाद भी कोई प्रशासनिक करवाई नहीं। न मन्दिर प्रबन्धन ने कोई कार्रवाई की। जबकि सीसीटीवी में आपकी अराजकता दर्ज है।
फिर किसकी आज्ञा का इंतजार हो रहा है नामजद कार्रवाई करने में?
जबकि स्वयं भाजपा ने इस अराजकता का दोषी मानते हुए 18 नेताओ को पद से बर्खास्त कर दिया।
और सबसे बड़ा सवाल, आप क्यों प्रजा के रूप में दर्शन नही करना चाहते? क्या इसलिए कि आप सत्ता हो? सरकार हो?
तो क्या महाकाल का आंगन भी आपकी सियासत का सेंटर है?
आपकी हिमाकत तो दिन ब दिन बढ़ती जा रही है, राष्ट्रपति आये तो आपने ऊंचा आसन लगवा दिया।
ये जानते हुए भी ये धर्म विरुद्ध तो है ही, राजा महाकाल के प्रोटोकॉल के खिलाफ भी है। माना कि राष्ट्रपति को शारिरिक परेशानी थी तो शेष नेताओं को भी ऊंचे आसन पर कब्जा जमाने की क्या जरूरत थी?
क्या बाकी नेता जमीन पर बैठकर पूजन अर्चन नहीं कर सकते थे?
किसके सामने अपने होने का दम्भ भर रहे हो? इसका जरा सा भी भान है कि अगर उसने हल्की सी भी भृकुटियों को हिला भी दिया तो आप सब कहां जाओगे, खबर तक नहीं होगी।
नामलेवा नहीं बचेगा।
राजा के सामने प्रजा बनो, महाराज बनने की हरकतों को बंद कर दो। नहीं तो उनसे पूछो कि उन नेताओं का क्या हुआ जिन्होंने अवंतिकानाथ के समक्ष अवंतिकापुरी में राजा बनने की कोशिश की?
और कुछ नहीं तो उज्जयिनी के इतिहास को ही जान समझ लेते, जहां के राजा सिंधिया दरबार में भी रात रुकने के लिए शहरी सीमा से बाहर कालियादेह महल का निर्माण करवाया था।
आज भी कोई राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री भी रात विश्राम उज्जैन नही करता। कारण स्पष्ट- उज्जैन का एक ही राजा है राजा महाकाल। फिर आप क्यों महाराज बनने पर उतारू हो?
लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं।
Comments