लम्हों ने ख़ता की थी, तब का कलात आज का बलूचिस्तान

खरी-खरी            Sep 24, 2022


श्रीकांत सक्सेना।

ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन वर्तमान पाकिस्तान के अधीन एक विशाल राज्य था-कलात।

कलात की लगभग सात सौ वर्षों तक ख़ास पहचान रही है।

अंग्रेज़ों ने भारत के भविष्य की रूपरेखा तैयार कर ली थी।

स्थानीय राजाओं और नवाबों के समक्ष यह विकल्प था कि वे चाहे तो भावी पाकिस्तान चुनें ,चाहे भारत अथवा चाहें तो स्वतंत्र भी रह सकते हैं।

वर्तमान भारतीय क्षेत्र में ही लगभग छ: सौ राजा और नवाब थे।

ज़्यादातर राजा और नवाब अपनी सहमति से भारत अथवा पाकिस्तान से जुड़ने का मन बना चुके थे।

यह फ़ैसला इसलिए भी व्यवहारिक था कि अंग्रेज़ों के जाने के बाद किसी भी राजा या नवाब के पास इतने संसाधन नहीं बचते कि वह अपनी स्वतंत्रता अक्षुण्ण रख पाते।

कुछ बड़े राज्य जैसे हैदराबाद,त्रावणकोर,जोधपुर,जम्मू-कश्मीर,ग्वालियर और कलात राज्य अब भी किसी न किसी तरह अपनी पहचान यथावत स्वतंत्र राज्य के रूप में रखना चाहते थे।

कलात राज्य ही वर्तमान पाकिस्तान का सूबा बलूचिस्तान है।

उस समय के कलात राज्य के अधीन लगभग ये पूरा क्षेत्र था।

वर्तमान बलूचिस्तान में कलात के साथ चार बहुत छोटी रियासतों को जोड़कर बलूचिस्तान नाम का सूबा गठित किया गया।

कलात या बलूचिस्तान के शासक को यह स्वीकार्य नहीं था कि उसका विशाल राज्य जनमत के विरुद्ध तथाकथित पाकिस्तान में मिला लिया जाए।

लिहाज़ा अपनी स्थिति सुरक्षित रखने के लिए उसने एक बड़ा और महँगा वक़ील करके अंग्रेज़ों के सामने यह मामला रखा कि ऐतिहासिक रूप से उसका राज्य स्वतंत्र रहा है और उसके राज्य को किसी भी क़ीमत पर कभी भी पाकिस्तान में न मिलाया जाए।

उसका पक्ष मज़बूत था ,बलूचिस्तान ने कभी भी अपनी स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया था।

बलूचिस्तान की अपनी संसद के समकक्ष संस्था थी जिसमें निचला सदन और उच्च सदन थे।

पाकिस्तान से मिलने के सवाल पर दोनों सदनों ने असहमति दर्ज करा दी थी।

वक़ील ने बड़ी मेहनत से केस बनाया।

यह वक़ील इंग्लैंड से वकालत पढ़कर आया था और हिन्दुस्तान के बड़े वकीलों में गिना जाता था, उसका नाम था मुहम्मद अली जिन्ना।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लोगों के सोचने की रफ़्तार से तेज़ रफ़्तार से दुनिया का बँटवारा शुरु हो गया।

बलूचिस्तान की आज़ादी का वक़ील अब भविष्य के पाकिस्तान का क़ायद-ए-आज़म बनने की तैयारी में था,सो सबसे पहला हमला बलूचिस्तान की आज़ादी के सपने पर ही ज़रूरी हो गया।

घबराकर बलूचिस्तान के शासक ने शायद यह सोचकर कांग्रेस अध्यक्ष अबुल कलाम आज़ाद के पास बलूचिस्तान को भारत में जोड़ने की ख़्वाहिश जताई कि राजनीतिक भूगोल उसके पक्ष में होने के कारण यह स्थिति कमोवेश बलूचिस्तान की आज़ादी की ही तरह होगी।

मौलाना आज़ाद ने सिरे से इस ख़्याल को ख़ारिज कर दिया।

बँटवारे के तुरंत बाद हिन्दुस्तान और पाकिस्तान अपनी-अपनी स्थिति को मज़बूत करने में जुट गए।

नेहरु जी के प्रिय वी के के मेनन ने संभवत: बढ़ते तनाव और हिंसा के बीच कुछ नंबर कमाने की दृष्टि से यह बयान दे दिया कि बलूचिस्तान ने भारत के साथ जुड़ने की इच्छा जताई है।

27मार्च 1948 को मेनन का यह बयान आल इंडिया रेडियो पर प्रसारित हुआ जिसे बलूचिस्तान सहित सारे देश में सुना गया।

यद्यपि तत्कालीन गृहमंत्री पटेल ने तुरंत इस बयान का खंडन कर दिया पर इस ख़बर से जिन्ना के कान खड़े हो गए।

तुरंत नवगठित देश पाकिस्तान की फ़ौजें बलूचिस्तान को रवाना करके बलूचिस्तान पर क़ब्ज़ा कर लिया गया और अप्रैल 1948 में पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के नौ महीने बाद बलूचिस्तान को ज़बरन पाकिस्तान में मिला लिया गया।

इसे पाकिस्तान का सूबा घोषित कर दिया गया।

बलूचिस्तान में इस ज़बरन क़ब्ज़े के खिलाफ ग़ुस्सा और नफ़रत का जज़्बा लगातार बढ़ता ही गया कलात का एक बड़ा और असरदार कबीला है बुगती।

यूँ तो पूरे बलूचिस्तान में पाकिस्तान को लेकर शदीद नाराज़गी और गुस्सा है जिसके चलते सभी क़बीले अपने अपने स्तर पर जंग जारी रखे हुए हैं।

बुगती क़बीले को अपनी तरफ मिलाने के लिए सरकार ने उन्हें तरह तरह के लालच और सुविधाएँ देनी चाहीं।

बुगती क़बीले के प्रमुख को पाकिस्तानी सरकार में मंत्रकार दर्जा दिया गया मगर उनकी स्वायत्तता के मुख्य मुद्दे को नकार दिया।

अपने क़बीले की भावनाओं को समझते हुए उनके नेता नवाब अकबर बुगती ने अस्सी साल की पकी उम्र में भी बग़ावत का रास्ता ही अपनाया।

पाकिस्तान सरकार को बुगती से समझौते के लिए मन बनाना पड़ा।

मगर कोई समझौता न हो सका।

नवाब बुगती को अपने साथियों के साथ अंडरग्राउंड होना पड़ा।

दिसंबर 2005 में मुशर्रफ की फ़ौज ने एक ख़ुफ़िया हमला करके नवाब बुगती को उनके बत्तीस साथियों सहित क़त्ल कर दिया।

नवाब बुगती की लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें किसी अनजान जगह गाड़ दिया गया।

उनकी लाशों की बेहुरमती की गई।ताबूतों में ताले जड़कर उन्हें कहीं ले जाया गया।

बुगती और उनके साथियों की लाशों के साथ हुए ऐसे सलूक को लेकर बलूचों का ख़ून खौल उठा।

आज भी बुगती के परिवार और समर्थकों में पाकिस्तानी फ़ौज के इस रवैय्ये पर रंज और गुस्सा है।

पाकिस्तान के फ़ौजी बूट,बलूचिस्तानी अना की पामाली आज भी कर रहे हैं।

 

 



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