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व्यंग्य: कॉग्रेस पार्टी गौमुखी गंगा से आसुत जल तक वाया गंदा नाला

वीथिका            Jun 06, 2025


अमिताभ दुबे द्वंद।

यों तो भारत की सबसे प्राचीन और बड़ी नदी का जन्म भी भूवैज्ञानिक कारणों से वैसे ही हुआ होगा जैसे दुनिया भर की अन्य नदियों का। पर पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा नदी राजा सगर के वंशज भागीरथ की तपस्या का प्रतिफल है।इसका उद्गम उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र से गंगोत्री ग्लेशियर के गायमुख रूपी छोर "गोमुख" से होता है। तब यह भागीरथी कहलाती है।कुछ आगे जाकर देवप्रयाग नामक स्थान पर इसका मिलन अलखनंदा धारा से और उसके आगे रुद्रप्रयाग में मंदाकनी से होता है और यह गंगा नदी कहलाने लगती है।

तत्पश्चात  यह उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से होकर ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे मैदानी स्थानों पर पहुंचती है। यहां तक गंगा नदी एक शुद्ध जल धारावाली प्रदुषण मुक्त पवित्र नदी बनी रहती है।हरिद्वार से गंगा उत्तर भारत के मैदानों में प्रवेश करती है।यह उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है, जहाँ यह कई शहरों जैसे कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, पटना और कोलकाता को स्पर्श करती है।प्रयागराज में यमुना नदी और अदृश्य सरस्वती नदी के साथ इसका संगम होता है। कानपुर गंगा के मार्ग का वह स्थल है जहां उसका प्रदूषण स्तर सर्वाधिक चरम हो जाता है।

गंगा के मार्ग में कई सहायक नदियाँ मिलती हैं, जैसे:यमुना, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी ।दक्षिण से चंबल, सोन और बेतवा।अंतिम चरण में  पश्चिम बंगाल  में, गंगा दो प्रमुख धाराओं में बँट जाती है: हुगली ,जो कोलकाता से होकर बहती है,और पद्मा ,जो बांग्लादेश में प्रवेश करती है।

सुनने में भले अजीब लगे पर भारत की ग्रैंड ओल्ड राजनीतिक पार्टी कांग्रेस और ग्रैंड ओल्ड धार्मिक नदी के जीवन प्रवाह में बेहद समानता है। जब 1885 के दिसंबर में तत्कालीन ब्रिटिश सिविल सर्वेंट ए ओ ह्यूम ने भारतीयों और ब्रिटिश शासकों के मध्य एक मध्यस्थ मंच के रूप में इसकी स्थापना की थी तब यह कांग्रेस भी गोमुख से निकली एक पतली लेकिन पवित्र भागीरथी धारा के समान थी।सो आप कह सकते है कि वह कांग्रेस के लिए  ब्रह्मा के वरदान के समान है जैसे गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए था!

कांग्रेस के जीवन मे देवप्रयाग पड़ाव तब आया जब उन्नीस सौ पंद्रह में मोहनलाल करम चंद गांधी साउथ अफीका से लौटकर इससे संलग्न हुए। तब तक यह पार्टी दिल्ली,बॉम्बे और कलकत्ता के चंद बड़े वकीलों और रईसों का छोटा सा समूह था और पूरे भारत मे इसका प्रभाव नगण्य था।इसके तुरंत बाद गांधी ने पूरे भारत का दौरा किया और आम जनता को इससे जोड़ा। यह कांग्रेस के जीवन का रुद्रप्रयाग पड़ाव था जहां आमजन रूपी मंदाकनी की धारा इससे जुड़ी और तब इस दल ने बेगवती मां गंगा का प्रचंड स्वरूप धारण कर देश को अज्ञानता और शोषण से ठीक उसी प्रकार मुक्ति दिलाई जैसे गंगा नदी ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की आत्मा को मुक्ति दिलाई होगी।

महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में देश को विदेशी शासन से मुक्त कराने हेतु अहिंसक आंदोलन के अभिनव प्रयोगों के फलस्वरूप अंततः उन्नीस सौ सैंतालीस में वह प्राप्त हुई जिसका श्रेय सिर्फ कांग्रेस को ही जाता है। इस समय तक यह अपने उद्गम से हरिद्वार तक की गंगा  के समान पवित्र और प्रदूषण  रहित दल था। यों उक्त अवधि में इसकी मूल विचारधारा को प्रदूषित करने वाले तत्व भी इससे जुड़े पर तब इसका स्वस्फूर्त वेग इतना प्रबल था कि उसको प्रभावित करने वाले समस्त विपरीत तत्व स्वतः ही इससे अलग होते चले गए।

आज़ादी के काल का यही वो वक्त था जब गांधी जैसे दूरद्रष्टा ने कांग्रेस को एक राजनैतिक दल के रूप में भंग करने अथवा विभाजित करने का सुझाव दिया था। पर तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व ने इसे अव्यवहारिक मानकर ठुकरा दिया था। उस वक्त शायद गांधी ही ऐसे एकमात्र व्यक्ति थे जो आने वाले दशकों में  कांग्रेस पार्टी और उसकी विचारधारा की होनेवाली दुर्दशा की परिकल्पना कर सकते थे!

स्वतंत्रता पश्चात नेहरू काल मे कमोबेश कांग्रेस हरिद्वार वाली गंगा के समान ही पवित्र बनी रही। सत्ता के अंतःपुर में रहने का "प्रदूषण" इसमें अवश्य आया लेकिन शीर्ष नेतृव इससे अछूता रहा और उस प्रदूषण का स्तर "स्वीकार्य" स्तर का ही रहा। नेहरू काल की कांग्रेस देश के लिए गंगा के कछार के समान उपजाऊ और फलदाई रही। उस काल मे जो कार्य हुए वो देश के विकास की नींव के पत्थर साबित हुए जिन पर देश के विकास की इमारत आज भी गढ़ी जा रही है।  देश मे और उनकी पार्टी में नेहरू का स्थान कोई नही ले सकता, यह एक अकाट्य सत्य है, भले कोई माने अथवा न माने।

कांग्रेस और उसकी विचारधारा में पहली बड़ी गिरावट नेहरू की मौत के बाद तब आई जब वरिष्ठता और राजनैतिक सक्षमता की योग्यता को दरकिनार कर लालबहादुर शास्त्री को नेहरू की कुर्सी पर बिठाया गया। उस समय कांगेस में इस पद के सबसे योग्य और सक्षम उम्मीदवार मोरारजी देसाई थे जो अपनी ईमानदार और कड़क छवि के कारण अन्य प्रभशाली कांग्रेस नेताओं में अलोकप्रिय थे। सो कांग्रेस के जीवन का यह पहला पड़ाव था जहां से यह प्रदूषित होना शुरू हुई ठीक बिजनोर वाली गंगा के समान जहां से गंगा नदी में सीवर और औद्योगिक कचरा मिलना शुरू होता है।

वैसे शास्त्री जी स्वयं में एक ईमानदार सिंद्धान्तवादी व्यक्ति थे पर वह "प्राइम मिनिस्टर स्टफ" तो कतई नही थे।इसके बाद का इतिहास कांग्रेस के उत्तरोत्तर पतन और प्रदूषित होने का इतिहास है वैसा ही जैसे गंगा नदी बिजनोर के बाद प्रयागराज तक प्रदूषण के चरम पर पहुंचती है।शास्त्रीजी के असामयिक निधन के बाद पुनः वरिष्ठता और योग्यता को दरकिनार कर इंदिरा गांधी नेहरू की कुर्सी पर टिका दी गई। यह कांग्रेस इतिहास की एक बड़ी गिरावट का काल था जिसने वंशवादी प्रदूषण को पार्टी में स्थापित किया जिससे वह आज भी नही उभर पा रही।

फिर उनीस सौ उन्नहतर का कांग्रेस का पहला विभाजन, गाय बछड़े वाला चुनाव चिन्ह, राष्ट्रपति चुनाव में "आत्मा की आवाज" का इंदिरा नारा इसको मुरादाबाद, फर्रुक़ाबाद, और बरेली वाली प्रदूषित गंगा  बनने का इतिहास है। सत्तर में बंगला देश के निर्माण ने इकहत्तर के चुनाव में इंदिरा को अभूतपूर्व सफलता दिलाई। तब शायद लोगों ने इसे बनारस वाली प्रदूषित लेकिन पवित्र गंगा मानकर ऐसा किया होगा। लेकिन फिर उन्नीस सौ सतत्तर चुनाव के पहले तक जो कुछ भी हुआ उसने इसे चरम पर प्रदूषित कानपुर वाली गंगा नदी बना दिया।कानपुर में प्रदूषण अधिक गंभीर रूप से बढ़ता है।

इंदिरा के नेतृत्व में इस काल मे कांग्रेस के बचे खुचे सिद्धान्तों की भी बलि चढ़ा दी गई और वह कानपुर वाली गंगा के समान एक गंदे नाले में परिवर्तित हो गई। उनके छोटे पुत्र द्वारा "हृदय परिवर्तन" के नाम पर रातों रात सारे असामाजिक तत्वो को कांग्रेस के द्वार खोल दिये गए ।यह सभी गंगा की सहायक नदियों के समान इसमें समाहित होते गए। अभी तक ऐसे लोग भले छिपकर समर्थन देते रहे हो पर खुलकर कभी सामने नही आये। लेकिन अब वह स्वयं नेता हो गए थे। इसने न केवल कॉग्रेस को डुबोया बल्कि देश की राजनीति को भी डुबो दिया।कॉग्रेस अब प्रयागराज की "त्रिवेणी"  थी जहां "भ्रष्टाचार, अत्याचार और अदृश्य व्यभिचार" की नदियों का संगम होता था।

जब "इंदिरा इज इंडिया" का नारा चरम पर था तब चुनावी हार ने इसे पूरे उत्तर भारत से स्वरस्ती नदी के समान अदृश्य कर दिया।लोगों के मन मे परिवर्तन की खुशी के मनोविज्ञान को समझते हुए कादम्बनी के तत्कालीन संपादक श्री राजेन्द्र अवस्थी ने अपने संपादकीय में चेताया था कि भारत के लिए कांग्रेस सिर्फ एक राजनीतिक दल नही बल्कि एक शासन व्यवस्था का नाम है। अतः दिल्ली की गद्दी पर जो भी शासक बैठेगा उसका कांग्रेसीकरण होने में अधिक समय नही लगेगी।उनकी यह बात आज दिनांक तक अक्षरशः सत्य साबित हो रही है।

बाद का कांग्रेसी इतिहास एक प्रमुख राजनैतिक दल के रूप में उसके लगातार पतन का इतिहास है। संजय गांधी का असामयिक निधन,इंदिरा की अपने ही द्वारा रचित "भष्मासुर" के " भूत" द्वारा भष्म किया जाना ,सिखों का नरसंहार और वंशवाद को आगे बढ़ाते हुए राजीव गाँधी का राज्याभिषेक और उनकी हत्या। इंदिराजी की हत्या के बाद देशव्यापी सिखों का नरसंहार साबित करता है कि कांगेस भी गांधी हत्यारे गोडसे के मार्ग पर चल पड़ी है। राजीव गांधी कांग्रेस के "अंतिम मुगल" साबित हुए। उनके बाद कॉग्रेस कभी स्वयं अकेले सरकार नही बना पाई।पर उनका कार्यकाल दो वजह से याद रखा जाएगा- सी डाट रूपी संचार क्रांति की नींव रखने और देश को न्यूक्लिअर स्टेट बनाने का मार्ग प्रशस्त करने।

इसके बाद देश ने तीन कांग्रेसी नेतृत्व वाली सरकारे देखी जिनका नेतृत्व गांधी -नेहरू परिवार के वंशजों के हाथ मे नही था। पहली सरकार में तो परोक्ष रूप से भी नही।पर अब कांग्रेस गंगा के समान बड़ी नदी नही रह गई थी बल्कि मुख्य सहायक नदी की भूमिका में थी। तीनो ने मजबूरियों के बीच भी बेहतर काम किया।नरसिम्हाराव की सरकार का आर्थिक नीति में परिवर्तन देश के विकास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ    

2014 के बाद से कांग्रेस के प्रमुख क्षत्रप उसे छोड़कर जा चुके है और वह लगभग प्रदूषण मुक्त होकर "डिस्टिल्ड वाटर" बन चुकी है।डिसटिल वाटर पीने के लिए तो सुरक्षित है, लेकिन इसमें खनिजों की कमी के कारण इसे लंबे समय तक पीने की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि यह शरीर के लिए आवश्यक खनिज प्रदान नहीं करता। कुछ यही स्थिति अब कांग्रेस की है। अब उसमें खनिज रूपी जनाधार, कार्यकर्ता, राजनीतिक क्षत्रप और योग्य उम्मीदवारो का सर्वथा अभाव है। अतः राहुल गांधी का "ऑपरेशन सृजन" सुनकर ऐसा लगता है जैसे देवानंद "सिक्सपेक ऐब" बनाकर कह रहे हो कि मैं सलमान खान को पछाड़ सकता हूँ  सो यह ग्रैंड ओल्ड पार्टी अब एक पुराने रिकॉर्ड प्लेयर की तरह लगती है—वही पुराना राग बार-बार बजता है, लेकिन सुई कहीं अटक सी गई है। नेतृत्व? वो तो "परिवार पहले" का अटूट नारा है, जैसे कोई रियलिटी शो हो जिसमें एक ही परिवार हर सीज़न जीतता हो। जनाधार और कार्यकर्ताओं के बिना राहुलजी का सृजन अभियान सुनकर एक भोजपुरी कहावत याद आती है, "न लोटा न थारी , तो का करे गिरधारी!"

लेखक अंग्रेजी, मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग में अंग्रेजी के प्राध्यपक रहे हैं

 


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