डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
मध्यप्रदेश पुलिस के एक कांस्टेबल, हनुमान जी के भक्त और मिस्टर इंदौर रह चुके मोतीलाल दायमा बेहद लोकप्रिय शख्सियत हैं। कुछ अख़बार उन्हें आयरनमैन भी लिखते हैं, पर वे हैं एकदम बेहद विनम्र, हंसमुख और मेहनती व्यक्ति।
रोजाना मीलों दौड़ना और हर दिन कम से कम पांच घंटे रोज जिम में पसीना बहाना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है।
साधनों के अभाव और उपेक्षा के कारण उन्हें कई अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में योग्यता होने के बाद भी वंचित रहना पड़ा है।
बॉडी बिल्डिंग के क्षेत्र में समय देने के कारण वे अब भी कांस्टेबल ही हैं और आगे की प्रमोशन की परीक्षाएं नहीं दे पाते हैं।
मोतीलाल दायमा का कहना है कि मैं रोजाना 5000 से लेकर 9000 कैलोरी खर्च करता हूँ। जाहिर है इसके लिए मुझे स्पेशल डाइट भी लेनी होती है। साथ में प्रोटीन की भी जरुरत पड़ती है।
जिम में इतनी मेहनत करता हूँ कि इसके लिए अच्छा और पर्याप्त भोजन भी करना होता है। मेरे भोजन में प्रोटीन, सूखे मेवे और करीब चार किलो दूध शामिल है। इससे भी पेट नहीं भरता तो इस मौसम में मक्का के भुट्टे उबाल और सेंककर खाता हूँ। दिन का काफी वक़्त कसरत में और कई घंटे खाने में खर्च करना पड़ते हैं।
मोतीलाल दायमा ने बी-एससी तक पढाई की है। धार जिले के गांव से जब इंदौर आये थे, तब उनका वज़न 60 किलो भी नहीं था, लगातार मेहनत और जिम में कसरत और खानपान पर ध्यान देने के कारण उन्होंने अपना वज़न 110 किलो तक बढ़ा लिया था, लेकिन अब वज़न घटकर 92 किलो ही रह गया है।
उनके परिवार पर करीब 12 लाख रुपये का क़र्ज़ भी चढ़ गया है क्योंकि पुलिस की नौकरी में करीब 20 हजार रुपये हाथ में आते हैं, जबकि उनकी डायट का खर्च ही करीब 60 000 रुपये महीना है।
घर के जेवरात और जमीन बिक गई, लेकिन परिवार ने उन्हें आगे बढ़ाने में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी।
सरकार की तरफ से उन्हें एक चीज़ जमकर मिली -- वह है आश्वासन पर आश्वासन, वादे पर वादे और लिखवा रखी हैं अर्जियों पर अर्जियां, जो आगे बढ़ने का नाम नहीं ले रही।
लगता है कि मध्यप्रदेश सरकार की तमाम योजनाएं केवल दिखावे और वोटरों को प्रभावित करें के लिए ही हैं। खेल के नाम पर सरकार में एक विभाग भी है। युवा कल्याण के नाम पर भी एक विभाग है, लेकिन मोतीलाल दायमा के किस काम का?
इंदौर शहर में आये दिन हो रहे आयोजनों पर लोग लाखों रुपये उड़ा देते हैं, जन्मदिन पार्टियों, शादियों में लाखों खर्च हो जाते हैं, लेकिन ऐसी प्रतिभाओं को स्पांसर करें की ललक किसी में नहीं है।
क्या कोई है जो आगे आकर और इंदौर के अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर की मदद कर सके? जवाब का इंतज़ार है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह खबर उनके फेसबुक वॉल से ली गई है।
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