मल्हार मीडिया भोपाल।
न्यायपालिका भी सोशल मीडिया के न्यूसेंस और ट्रोलिंग से परेशान है। मप्र के जिला न्यायाधीशों ने सवाल उठाया कि वाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पर हमारे विरुद्ध अमर्यादित बातें होती हैं। जिन्हें फैसला पसंद नहीं आता, वे भ्रम फैलाते हैं। भद्दे कमेंट करते हैं। क्या ऐसा करने वालों पर हम (न्यायाधीश) कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की कार्रवाई कर सकते हैं?
जवाब में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय एस ओक ने कहा कि सोशल मीडिया के ट्रोलिंग से न तो डरें और न हीं किसी एजेंडे के तहत गढ़े जाने वाले नैरेटिव से प्रभावित हों। इसे सिर्फ इग्नोर करें, क्योंकि सोशल मीडिया की कोई अकाउंटेबिलिटी (जवाबदेही) नहीं है।
मौका था भोपाल में चल रहे दसवें मप्र न्यायाधीश सम्मेलन के दूसरे और आखिरी दिन का। सबसे ज्यादा नाराजगी जजों ने सोशल मीडिया पर जताई। बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस ओक ने बताया कि मुंबई में तो जजों को प्रभावित और परेशान करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल इतना बढ़ गया है कि कई जजों के खिलाफ ही पिटीशन दायर हो जाती है। यह एक समस्या है, लेकिन इग्नोर करने के अलावा कोई बेहतर उपाय नहीं है।
अदालतों के कामकाज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के बढ़ते इस्तेमाल पर जस्टिस ओक ने कहा कि मेरा भरोसा जजों के नेचुरल ह्यूमन इंटेलिजेंस (विवेक) पर ज्यादा है। एआई कामकाज में मदद तो कर सकता है, लेकिन मानव विवेक का स्थान नहीं ले सकती, इसलिए एआई की मदद से ह्यूमन इंटेलिजेंस का इस्तेमाल बढ़ाइए। एआई पर निर्भर मत हो जाइए।
मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मलिमठ ने कहा कि जजों की निष्ठा से न्याय प्रदान करने के प्रति होनी चाहिए। यह नौकरी नहीं, बल्कि सेवा है। यदि न्यायपालिका के प्रति निष्ठा नहीं है तो कोई भी जज सही और जल्द न्यायदान नहीं कर सकता। सीनियरिटी और जूनियरिटी कोई मायने नहीं रखती, बल्कि मायने रखता है निष्ठापूर्वक सही और जल्द न्याय करना। इस पेशे में आने के लिए कानून की पढ़ाई और जानकारी होना पहली योग्यता है, लेकिन असल योग्यता कानून के ज्ञान का प्रैक्टिकली लागू कर पाना है।
जस्टिस ओक ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका में अब कंटीन्युअस लीगल एजुकेशन का दौर शुरू हो गया है, जो जज खुद को अपडेट नहीं करेंगे, वे काम ही नहीं कर पाएंगे। जल्द ही पूरी आईपीसी, सीआरपीसी, सीपीसी, एविडेंस एक्ट बदलने वाले हैं। अब नए सिरे से इन्हें पढ़ना होगा। आगे और भी रिफॉर्म होने हैं। नेशनल ज्युडिशियल एकेडमी से लेकर कई राज्यों की ज्युडिशियल एकेडमी अब जजों को अपग्रेड करने के लिए कोर्स तैयार करने में जुटी हैं। नए कानूनों के कारण पुलिस भी काफी गलतियां करेगी, यदि जज खुद को अपग्रेड नहीं करेंगे, तो इन गलतियों को न पकड़ पाएंगे और नहीं सुधार पाएंगे।
जस्टिस ओक ने कहा कि हाल ही आजादी के 75वर्ष पूरे हुए हैं। दो साल बाद भारतीय न्यायपालिका के अस्तित्व की बुनियाद संविधान को भी 75 साल पूरे होने जा रहे हैं। हमें अभी से सोचना होगा कि हम देश को कैसी न्यायपालिका देना चाहते हैं।
जिलास्तर पर ही सही प्रोसीजर और सभी तथ्यों के आधार पर आप किसी कन्क्लूजन पर पहुंचते हैं, तो फिर वही फैसला अंतिम होता है, उसे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी नहीं बदल सकते। इसलिए कभी भी खुद को सबॉर्डिनेट ज्युडिशियरी ना समझें, न हीं इन्फीरियोरिटी कॉम्पलेक्स आने दें। मप्र हाईकोर्ट के जस्टिस रोहित आर्या ने कहा कि सिर्फ 15% केस ही हाईकोर्ट में पहुंचते हैं, उनमें से 8 से 9 % केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं, जबकि 85% केसों के लिए जिला कोर्ट ही अंतिम अदालत होती है, इसलिए भारत की मूल न्यायपालिका जिला न्यायालय हैं।
मप्र हाईकोर्ट के जज जस्टिस विवेक रूसिया ने एआई के जरिए अदालतों में कामकाज को सुगम बनाने के तरीके बताए। कोर्ट फीस तय करने, लिमिटेशन, ट्रांसलेशन, लिस्टिंग, लाइब्रेरी, लीगल इन्फॉर्मेशन के सर्चिंग जैसे कामों को एआई ने आसान बना दिया है, लेकिन एआई कभी फैसले नहीं लिख सकता।
Comments