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मप्र विधानसभा ने पूरे किए 68 साल, पद्म भूषण कुंजीलाल दुबे चुने गए थे पहले अध्यक्ष

खास खबर            Dec 17, 2024


मल्हार मीडिया भोपाल।

मध्यप्रदेश विधानसभा ने आज मंगलवार 17 नवंबर को अपनी स्थापना के 68 वर्ष पूरे कर लिए। आज की तारीख में मध्य प्रदेश विधानसभा का पहला अधिवेशन शुरू हुआ था। पद्म भूषण कुंजीलाल दुबे मप्र विधानसभा के पहले अध्यक्ष चुने गए थे।

विधानसभा की वर्षगांठ पर आज शीतकालीन सत्र की कार्यवाही के बीच सदन में 68 वर्षों की गौरवपूर्ण यात्रा का उल्लेख किया गया। मप्र के निर्माण से अब तक 15वीं विधानसभा का कार्यकाल का पूरा हो चुका है और 16वां कार्यकाल जारी है।

देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद 1956 में राज्यों का गठन हुआ तो मध्य प्रदेश राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। इसके घटक राज्यों में मध्यभारत, विंध्य और भोपाल थे, जिनकी अपनी-अपनी विधानसभाएं थीं।

पुनर्गठन के बाद चारों विधानसभाएं एक विधानसभा में शामिल हुईं और 1 नवंबर 1956 को नई विधानसभा अस्तित्व में आई। इस विधानसभा का पहला अधिवेशन 17 दिसंबर 1956 को शुरू हुआ था।

पद्म विभूषण स्वर्गीय कुंजीलाल दुबे मप्र विधानसभा के पहले अध्यक्ष चुने गए थे। अब तक मप्र विधानसभा के लगभग 2600 सदस्य रहे हैं। एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के पहले अविभाजित मप्र विधानसभा में कुल सदस्यों की संख्या 320 थी, जो विभाजन के बाद यह 230 रह गई। 1956 से 1996 तक 40 साल मप्र की विधानसभा वर्तमान मिंटो हाल में लगी. अरेरा पहाड़ी पर नया भवन बनने के बाद विधानसभा यहां संचालित हो रही है।

सदन में विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने जानकारी देते हुए बताया कि, 1956 में आज के दिन पहली बैठक हुई थी। विधानसभा के 68 साल पूरे होने पर सदन में चर्चा की गई।

उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने कहा कि, मध्यप्रदेश विधानसभा का सफर अभूतपूर्व रहा है। हम सबको इसकी गरिमा का पालन करना चाहिए। नेताप्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सदन में कहा कि, हम सबको गर्व होना चाहिए। एमपी का गौरवशाली इतिहास रहा है। 1 नवंबर 1956 को चार रियासत मिलाकर एमपी बना था।उस समय हमारे सामने चुनोतियां थी। 17 दिसम्बर को 1956 को पहली बैठक हुई थी। कांग्रेस ने उस समय लोकतंत्र मजबूत किया। प्रदेश के विकास में दोनों पार्टीयो का योगदान रहा है।

उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने विधानसभा के पहले सत्र की 68वीं वर्षगांठ पर प्रदेश की लोकतांत्रिक परंपराओं, विकास यात्रा और भविष्य की योजनाओं पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यह गर्व का विषय है कि मध्यप्रदेश विधानसभा ने लोकतांत्रिक परंपराओं को सुदृढ़ करने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई है। श्री शुक्ल ने बताया कि 17 दिसंबर 1956 से लेकर अब तक मध्यप्रदेश ने विकास और सुशासन की एक लंबी यात्रा तय की है। 1950 में संविधान लागू होने के बाद राज्य कई हिस्सों में विभाजित था। 1 नवंबर 1956 को राज्यों के पुनर्गठन के बाद मध्यप्रदेश का गठन हुआ, और तब से प्रदेश ने लोकतंत्र को मजबूत करते हुए विकास के नए आयाम स्थापित किए।

श्री शुक्ल ने 2003 से लेकर 2024 तक प्रदेश की अभूतपूर्व प्रगति का जिक्र करते हुए कहा कि सिंचाई क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया है। जहां 2003 तक मात्र 7 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होती थी, वह अब बढ़कर 50 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आगामी परियोजनाओं से यह आंकड़ा 1 करोड़ हेक्टेयर तक पहुंचने की उम्मीद है।

विधानसभा में बीजेपी विधायक गोपाल भार्गव ने कहा,  68 वर्ष विधानसभा के पूरे होने को है। जब विधानसभा का गठन हुआ, तब मैं चार पांच साल का था। पुरानी विधानसभा में इससे छोटा हॉल था लेकिन वहां पक्ष-विपक्ष में प्रेम भाव था। सभी अध्यक्षों ने अपनी भूमिका का निर्वाहन किया है। मिंटो हाल में जब विधानसभा चलती थी, तब सबको बोलने का मौका मिलता था। नए विधायकों को उस दौर में बोलने का मौका मिलता था। बजट सत्र के दौरान 40 बैठकें तक होती थीं। विधानसभा की ज्यादा से ज्यादा बैठकें होना चाहिए। हमको पुराने दिन वापस लाने होंगे। सदन के सदस्य चाहते हैं ज्यादा-ज्यादा विधानसभा चले। 

इस अवसर पर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने कहा कि ये चिंता की बात है कि सदन के सत्र सीमित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि स्थिति ये है कि कई विधायकों के प्रश्न छूट जाते हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि एक हजार ऐसे प्रश्न हैं, जिनकी जानकारी ही नहीं मिली है।

उन्होंने कहा कि यह जनता का मंदिर है, लेकिन देश के अन्य राज्यों के मुकाबले में देखें तो लगातार सदन के सत्र सीमित हो गए हैं। बैठकों की संख्या देश के बाकी राज्यों की विधानसभा के मुकाबले घटती जा रही है. उन्होंने कहा कि अध्यक्ष महोदय इस ओर प्रयास किये जाना चाहिए, ताकि विधानसभा में कम से कम 80 से 100 बैठकें तो हों।

पूर्व मंत्री और कांग्रेस के सीनियर विधायक डॉ राजेन्द्र सिंह ने आरोप लगाया कि विकास के लिए 15-15 करोड़ की धनराशि दी गई है। जबकि कांग्रेस के विधायक इससे वंचित हैं। उन्होंने कहा कि वही काम हम भी कर रहे हैं, फिर ये भेदभाव क्यों।

 

 


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