ममता मल्हार।
इंतजार! इंतजार! इंतजार! विधायक पत्रकारों से पूछ रहे पत्रकार विधायकों से धीरे से पूछ रहे क्या खबर कोई खबर है, जवाब मिलता है कोई खबर नहीं, पता नहीं क्या होना है।
सत्तापक्ष के विधायकों नेताओं के चेहरों पर असमंजस के साथ प्रश्नवाचक भाव हैं। जो पुराने हैं वे ज्यादा तनाव में हैं जैसे जो तीन-चार बार के मंत्री बन चुके हैं।
नये लोगों को उम्मीद है कि इस बार मंत्री का पद उनके कद में इजाफा कर देगा।
दरअसल मध्यप्रदेश में इस बार सबकुछ देर से ही हो रहा है क्योंकि भाजपा हाईकमान राज्य की सरकार और संगठन के सारे फैसलों की डोर अपने हाथ में जकड़कर बैठ गई है।
आलम यह है कि पिछले एक साल से भारतीय जनता पार्टी ने हर तरह के सूत्र ही खत्म कर दिए हैं। हालांकि संगठन की अचानक घोषणाएं करने की कार्यशैली कोई नई नहीं है कम से कम मुख्यमंत्री के मामले में।
2003 में के चुनाव में उमाभारती मध्यप्रदेश की घोषित मुख्यमंत्रीं थीं, फिर बाबूलाल गौर को अचानक कुर्सी सौंप दी गई वहां भी मामला जमा नहीं तो एक दिन अचानक शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बना दिए गए।
यह वह समय था जब जब डेढ़ से दो साल के अंतराल में मध्यप्रदेश ने एक ही पार्टी के तीन मुख्यमंत्री देखे।
वर्ष 2005 से लगातार बीच के 15 महीने छोड़कर 18 साल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को इस बार चुनाव में सीएम फेस नहीं बनाया गया था। तभी से यह कयास लगाए जाने लगे थे कि इस बार शिवराज सिंह चौहान सीएम नहीं होंगे।
ऐसे में एक सवाल हवा में तैरने लगा कि फिर शिवराज सिंह का विकल्प कौन हो सकता है। तो केंद्र से सांसद और मंत्रियों को चुनाव में उतारकर यह संदेश भी दे दिया गया कि भाजपा के पास मुख्यमंत्री के चेहरों की कमी नहीं हैं।
3 दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद 7 दिसंबर तक इनमें से हर चेहरा मुख्यमंत्री का चेहरा नजर आ रहा था। मगर भाजपा हाईकमान ने एक बार फिर आदतन ऐसा फैसला दिया कि पूरा मध्यप्रदेश ही चौंक गया।
उज्जैन विधायक मोहन यादव को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया।
लेकिन इस बार मंत्रिमंडल गठन तक के पत्ते अपने पास रखकर केंद्रीय भाजपा ने यह संदेश साफ दे दिया है कि अब राज्य हो या केंद्र की सरकार चलेगी तो हमारी ही है और इस कदर चलेगी कि आदमकद पदों पर बैठे संगठन के पदाधिकारियों तक को भनक नहीं लग सकती कि आखिर मंत्रीमंडल गठन होगा कब और कौन मंत्री बनेगा कौन नहीं।
इस बीच विधायकों की इधर से उधर रेस जारी है और यह सवाल भी लगातार है कि कोई खबर है क्या।
यह देरी पहले उतनी असामान्य नहीं लग रही थी पर अब माहौल को भारी बना रही है और एक सवाल के साथ कई सवाल भी आ रहे हैं। कि सरकार बनने में देर मतलब काम में देरी। काम में देरी मतलब हर स्तर पर देरी। खाली खजाने और कर्जदार मध्यप्रदेश का ढोल पीट दिया गया है। मुख्यमंत्री विभागीय समीक्षाएं तो कर रहे हैं पर जवाब तलबी की भी किससे जाए जब जिम्मेदार मंत्री ही नहीं है।
पर असली बात तो वही है इस मंत्रीमंडल में कि चाहे कोई हो जगह मिलने पर ही साईड दी जाएगी।
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