कीर्ति राणा।
तरसा तरसा कर खुश करने की भाजपा की ये नई शैली चार सप्ताह में तीन राज्यों में जितनी लोकप्रिय नहीं हुई उससे अधिक कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक को तनाव में डालने वाली साबित हुई है।
किसी फिल्म का गीत है जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे… इस गीत के भाव-दृश्य तीनों राज्यों में नजर भी आ रहे हैं जिसमें यह संकेत भी है कि दिल्ली दरबार की यह शैली जिसे पसंद ना हो वो अपनी राह अलग तलाश ले…इस अदृश्य संकेत को वसुंधरा राजे से लेकर शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह तक ने समझ तो लिया लेकिन करें क्या?
कांग्रेस से अलग होकर अर्जुन सिंह, एनडी तिवारी, माधवराव सिंधिया ने मप्र विकास कांग्रेस बना तो ली थी, हठयोगिनी उमा भारती को भी भारतीय जनशक्ति पार्टी की सवारी आ गई थी-लेकिन ये सभी नेता सुबह के भूले शाम को वापस घर लौट आए, इतने बड़े उदाहरण हैं कि जुबान हिलाने तक की हिम्मत भी नहीं बची।
तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों की कमर में थोड़ी-बहुत अकड़ बची भी होगी तो उस पर उन कच्चे चिट्ठों की फाइलों का भारी बोझ है इतना है कि हर वक्त सजदा करते ही नजर आते हैं।
इनका ही ऊंचे कद और हल्के विभाग वाले मंत्रियों, नेताओं का भी हाल ठीक नहीं हैं पर दुखड़ा सुनाएं किसे…? उनके अंडर में काम करना पड़ रहा है जिन्हें कभी एबीसीडी लिखना सिखाया था।इससे बुरा हाल क्या होगा कि मनचाहा विभाग भी नहीं मिल पाया। यूपी, छत्तीसगढ़ के बाद एमपी में भी भारी मंत्रालय सीएम के सिंहासन के नीचे दबे रह गए और सपने देखने वालों की किस्मत पर पत्थर पड़ गए।
मोशा जी ने तीन राज्यों में नई रीति-नीति से पार्टी को गढ़ कर बाकी राज्यों के लिए भी रोल मॉडल तय कर दिया है।यह संकेत है कि चाहे पांच-बार जीतो या आठ बार, हो चाहे जितने वजनदार, अब चाहिए दिल्ली मोदी की योजनाओं को समयावधि से पहले अंजाम देने वाले चेहरे जो हों असरदार।लोक निर्माण मंत्री रहे विजयवर्गीय के प्रदेश-देश में फैले समर्थकों की उम्मीद पर पानी फिर गया जब उन्हें नगरीय प्रशासन विभाग का दायित्व सौंपा गया।इंदौर के विकास, पीपीपी मॉडल की शुरुआत, चौड़ी सड़के बनाने के लिए मकान-दुकान ढहाने वाले व्यापक अभियान उनके महापौर काल में ही शुरु हुए थे।अब विजयवर्गीय को टॉस्क मिला है प्रदेश के अन्य शहरों को तो इंदौर जैसा बनाना ही है, सेटेलाइट टॉउन विकसित करने के साथ शहरों के विकास संबंधी मोदी की गारंटी को भी पूरा कर के दिखाना है।प्रह्लाद पटेल को गांवों की सूरत बदलना है, बजट भी भारी भरकम है।केंद्र में यदि उनका चयन योग्यता रही तो पंचायत ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में उन्हें भी अपनी क्षमता को सिद्ध करना होगा।
शिवराज सरकार में जो उनके प्रिय थे उनके पास मलाईदार विभाग थे, बाकी मंत्री तो नरोत्तम की तरह बस नाम के थे।यादव सरकार में तो कोई बहाना भी नहीं चलना है कि सीएम से किसी मंत्री की नहीं पटती क्योंकि यहां तो मोहन यादव को खुद पार्टी नेतृत्व यूपी के योगी वाले सांचे में ढालने का काम शुरु कर चुका है।
देरी से हुए इस विभाग वितरण के बाद अब स्यापा करने का समय भी नहीं है मंत्रियों के पास क्योंकि दिल्ली दरबार तो लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गया है। कम समय में बेहतर काम नहीं करने वालों के लिए दया भाव इसलिए भी नहीं रहेगा कि अगले पुनर्गठन के लिए ढेर सारे के नामों की वेटिंग लिस्ट है।
मप्र के मंत्रियों में किए गए विभाग वितरण को बारीकी से देखें तो मोहन यादव के बाद डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा दूसरी पसंद हैं। यादव-देवड़ा जिन वर्गों से आते हैं बाकी प्रदेशों में उनका साथ अब भाजपा को इसलिए भी आसानी से मिल जाएगा कि राम मंदिर का संकल्प पूरा करने के साथ, अयोध्या में एयरपोर्ट भी महर्षि वाल्मिकी के नाम पर कर दिया है।
मप्र के मुख्यमंत्री यादव और उपमुख्यमंत्री देवड़ा का चेहरा लोकसभा चुनाव तक बड़ा करने पर काम शुरु हो गया है।मनचाहे परिणाम पाने में इनके चेहरे लोक लुभावन साबित नहीं हो पाए तो कुर्सी का स्वभाव है जो बैठे उसकी हो जाती हैं।
दूसरे उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ब्राह्मण वर्ग का प्रतिनिधित्व तो कर ही रहे हैं उन्हें दिया हेल्थ और मेडिकल एजुकेशन वाला विभाग मप्र में हेल्थ सर्विस को भूलकर मेडिकल माफिया में बदल चुके प्रायवेट हॉस्पिटल पर अंकुश लगाने के साथ ही शिवराज के वक्त हुए व्यापमं जैसे घोटालों पर कार्रवाई की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
शिवराज सिंह के खास रहे मंत्रियों को यादव के साथ काम करने का मौका मिला जरूर है लेकिन विभाग दमदार नहीं हैं। तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह के खास आईएएस अधिकारियों की प्रमुख जिलों में हुई पोस्टिंग और शिव-साधना को प्रसन्न करने की विधि जानने के बाद मगरूर हो चुके अधिकारियों को जिस तरह सिंगल आदेश जारी कर लूप लाईन में भेजने की चौंकाने वाली कार्रवाई ने जोर पकड़ा है उससे प्रशासनिक मशीनरी के वर्षों से उपेक्षित उन अधिकारियों के चेहरे चमक उठे हैं जिनकी योग्यता पर एक महीने पहले तक राहु-केतु की महादशा लगी हुई थी।
उज्जैन के महाकाल लोक निर्माण-बारिश-आंधी में कई मूर्तियों के जमींदोज हो जाने के बाद वही शिवराज आंखें मूंदे रहे जो 2016 के सिंहस्थ में बारिश-आंधी से तबाह हुए पांडालों की मरम्मत के लिए अमला लेकर खुद दौड़ पड़े थे।
इकबाल सिंह की सिफारिश पर शिवराज के खास कहे जाने वाले जो अधिकारी तब पूजे जाते रहे उन्हें सिंगल आदेश पर वल्लभ भवन के कमरों का रास्ता दिखाकर दिल्ली दरबार समझा रहा है कि अब किसी के मन को भाने वाले नहीं, जनभावना का सम्मान करने वाले तरक्की के हरदार बनेंगे।
अभी तो चुन चुन कर तबादले ही किए जा रहे हैं बहुत संभव है ऐसे अधिकारियों के समय हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग भी उठने लगे और जनदबाव का हवाला देकर मुख्यमंत्री अधिकारियों, मंत्रियों के वक्त हुए कथित गलत कामों की जांच के आदेश भी जारी कर दिए जाएं।
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