दीपक शर्मा।
मध्यप्रदेश में आत्महत्या की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है, जिससे न केवल व्यक्तिगत परिवारों को बल्कि पूरे समाज को भी झटका लग रहा है।
मध्यप्रदेश में हाल ही में दर्ज की गई आत्महत्या की घटनाओं ने चिंता के साथ-साथ दबी हुई दुख की लहर फैल रही है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024 की पहली छमाही में आत्महत्या की घटनाओं में पिछले वर्षों की तुलना में 15% की वृद्धि दर्ज की गई है। इस वृद्धि के पीछे कई सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं मानी जा रही हैं।
मध्य प्रदेश में आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि के पीछे विभिन्न सामाजिक और आर्थिक कारणों के साथ-साथ वर्तमान राजनीति की उदासीनता भी एक महत्वपूर्ण कारक मानी जा रही है।
साल दर साल का रिकॉर्ड:
2020 - 2020 में आत्महत्या की कुल 1,200 घटनाएं दर्ज की गई थीं। कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के दौरान आर्थिक तंगी और मानसिक तनाव की वजह से आत्महत्या की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई थी।
2021 - 2021 में आत्महत्या की घटनाओं में और बढ़ोतरी देखी गई, जो कि 1,350 के करीब पहुंच गई। महामारी के प्रभाव और बेरोजगारी ने स्थिति को और गंभीर बना दिया था।
2022 - 2022 में आत्महत्या की घटनाओं की संख्या 1,500 के करीब पहुंच गई। इस वर्ष में कृषि संकट और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि देखी गई।
2023 - 2023 में आत्महत्या की घटनाओं की संख्या 1,600 से अधिक रही। आर्थिक दबाव और सामाजिक समस्याओं ने आत्महत्या की घटनाओं में और वृद्धि की है।
2024 (प्रारंभिक आंकड़े) - 2024 की पहली छमाही में आत्महत्या की घटनाओं की संख्या 800 से अधिक हो चुकी है, जो कि पिछले वर्षों के आंकड़ों के साथ मिलाकर चिंताजनक स्थिति को दर्शाती है।
कारणों की पड़ताल:
आर्थिक संकट: किसानों पर कर्ज का बोझ, सूखा और खराब फसल की वजह से आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। आर्थिक अस्थिरता और वित्तीय दबाव प्रमुख कारण हैं।
मनोवैज्ञानिक तनाव: अवसाद, मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं और सामाजिक दबाव भी आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं में योगदान दे रहे हैं।
शिक्षा और बेरोजगारी: युवाओं की शिक्षा और रोजगार की समस्याएं निराशा और हताशा का कारण बन रही हैं, जो आत्महत्या की घटनाओं को बढ़ावा दे रही हैं।
राजनीतिक उदासीनता के संकेत:
नीतियों का कार्यान्वयन: कई बार, राज्य सरकार की नीतियां और योजनाएं, जो आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं, सही ढंग से लागू नहीं होतीं। उदाहरण के लिए, किसानों के लिए आर्थिक सहायता योजनाएं या मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम अक्सर कमी और प्रशासनिक लापरवाही का शिकार हो जाते हैं, जिससे उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है।
सामाजिक कल्याण योजनाओं की कमी: राज्य सरकार द्वारा लागू की गई सामाजिक कल्याण योजनाओं की प्रभावशीलता में कमी भी आत्महत्या की घटनाओं को बढ़ाने का एक कारण हो सकती है। कई योजनाएं केवल कागज पर ही रहती हैं और जमीन पर इनका कोई वास्तविक प्रभाव नहीं होता।
मनोरंजन और चुनावी राजनीति: चुनावी राजनीति और प्रचार में ज्यादा ध्यान देने की वजह से दीर्घकालिक सामाजिक समस्याओं की ओर कम ध्यान दिया जाता है। आत्महत्या की समस्याओं को गंभीरता से न लेना और चुनावी लाभ के लिए अस्थायी समाधान प्रस्तुत करना, वास्तविक मुद्दों की जड़ों तक पहुंचने में बाधक हो सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान की कमी: मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार के लिए आवश्यक संसाधन और सुविधाएं अक्सर कमी का शिकार होती हैं। सरकार की तरफ से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवश्यक बजट और समर्थन की कमी आत्महत्या की समस्याओं को और बढ़ावा दे सकती है।
प्रशासनिक उपाय और समाज की भूमिका:
राज्य सरकार ने आत्महत्या की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए कई पहल की हैं, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना, विशेष काउंसलिंग सेवाओं की शुरुआत और आर्थिक सहायता की योजनाएं शामिल हैं। इसके साथ ही, समाज में जागरूकता फैलाना और मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर चर्चा करना अत्यंत आवश्यक है।
आत्महत्या की समस्याओं का समाधान एक समग्र दृष्टिकोण से ही संभव है, जिसमें सरकारी नीतियों, सामाजिक समर्थन और व्यक्तिगत देखभाल की महत्वपूर्ण भूमिका है। मध्य प्रदेश में आत्महत्या की घटनाओं के इस बढ़ते संकट को रोकने के लिए सभी स्तरों पर सक्रिय प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
लेखक प्रतिवाद समाचार वेबसाईट के संपादक हैं।
 
                   
                   
             
	               
	               
	               
	               
	              
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