मल्हार मीडिया भोपाल।
कैजुअल्टी विभाग प्रत्येक मेडिकल कॉलेज की रीड की हड्डी होता है, जहां पर 24×7 गंभीर से गंभीर मरीज आते रहते हैं। ओपीडी के समय एवं बाद में भी मेडिकल कॉलेज में कैजुअल्टी विभाग ही 24 घंटे कार्यरत रहता है।
कैजुअल्टी जैसे अति महत्वपूर्ण और संवेदनशील विभाग के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए मध्यप्रदेश शासन ने प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर के पद स्वीकृत किए हैं। लगभग 1 साल से बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज की कैजुअल्टी में कार्यरत सीएमओे पर्याप्त कैजुअल्टी स्टाफ की कमी से परेशान हैं।
सूत्रों के अनुसार मेडिकल कॉलेज कैजुअल्टी में सीएमओ के कुल 20 पद हैं जिनमें से सिर्फ 7 सीएमओ ही कार्य कर रहे हैं, 4 शैक्षणिक अवकाश पर हैं, दो को अन्य विभागों में कई वर्षों से अस्थाई रूप से पदस्थ किया गया है।
अनुसूचित जनजाति के छह पद एवं अन्य पिछड़ा वर्ग का एक पद खाली हैं।
23 जून को होने वाली प्री.पी.जी परीक्षा की वजह से 7 में से पांच सीएमओ ने 2 दिन के लिए छुट्टी ले ली।
और इन व्यवस्थाओं को चलाने के लिए कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर देशराज को नाइट के बाद पोस्ट नाइट ऑफ की जगह पर इवनिंग में भी ड्यूटी करने आना पड़ा एवं मॉर्निंग ड्यूटी सीनियर रेजिडेंट द्वारा कराई गई जो कि एमएलसी कार्य करने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे ऐसे में उन्हें बहुत समस्या हुई। दो
कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर्स डॉ रेखा गुप्ता डॉ रोषी जैन को वर्ष 2019 और 2018 से अस्थाई रूप से पैथोलॉजी और अप्थेल में पदस्थ किया गया है कॉलेज प्रशासन उन्हें दो दिन के लिए भी उनके मूल विभाग में नहीं बुला पाया।
ज्ञात हो की पैथोलॉजी और अप्थेल विभाग में ना तो फैकल्टी की कोई कमी है और ना ही स्टाफ की। ऐसे में दो कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर जहां सीएमओ अपनी पद संख्या से एक तिहाई कम संख्या में कार्य कर रहे हैं।
इन्हें इनके मूल स्थान पर नियुक्त न करना प्रशासन की उदासीनता ही दिखती है
सूत्रों से पता चला है कि जुलाई के महीने में दो कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर अति आवश्यक कार्य हेतु छुट्टी के लिए अप्लाई कर चुके हैं
ऐसे में कैजुअल्टी सिर्फ पांच सीएमओ के द्वारा ही चलाई जाएगी जिससे सीएमओ की कार्य क्षमता एवं मनोबल प्रभावित होगाा
सीएमओ अध्यक्ष डॉ.अरूणा कुमार कुमार के दौरे पर भी सीएमओ की कमी उन्हें दिखाई दी और उन्होंने निर्देश दिया कि मॉर्निंग और इवनिंग ड्यूटी में एक-एक सीएमओ न रखकर दो-दो सीएमओ रखे जाएं।
लेकिन कॉलेज प्रशासन जो कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर अन्य विभाग में पदस्थ हैं उन्हीं को मूल स्थान पर वापस नहीं बुला पा रहा है।
कैजुअल्टी शुरू होने के 10 साल बाद भी अभी तक पद पूरे नहीं भरे गए हैं तो भविष्य में अनुसूचित जनजाति कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर के पद कैसे भरे जाएंगे कहना मुश्किल है। तब तक कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर अधिक कार्यभार से प्रभावित होते रहेंगे।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के मुख्य बड़े मेडिकल कॉलेज में सभी में कैजुअल्टी मेडिकल ऑफीसरों की संख्या 20 से भी अधिक ही है लेकिन सागर मेडिकल कॉलेज में सीएमओ सिर्फ 7 ही बचे हैं
कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर के पदों के लिए मध्य प्रदेश शासन की ओर से भी उनके कोई भर्ती नियम नहीं है ना तो उन्हें भत्ता प्रदान किया जाता है और ना ही प्रमोशन चैनल है, इसी वजह से चिकित्सा कैजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर बनने से दूर रहते हैं।
कैजुअल्टी जैसे प्रमुख संवेदनशील विभाग के लिए जब तक प्रशासन युद्ध स्तर पर कार्य नहीं करेगा, तब तक मेडिकल कॉलेज में मरीज को पूर्ण रूप से स्वास्थ्य सुविधाओं का मिल पाना संभव नहीं होगा।
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