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ऊॅं पर्वत पर शिवगिरी की साधना 500 फीट की ऊंचाई, पथरीली जमीन, 45 डिग्री तापमान में उगा दिए सेवफल

खास खबर, वीथिका            Jul 11, 2018


खंडवा से संजय चौबे।
सेवफल की बात करते ही कश्मीर और हिमाचल के बाग जेहन में आ जाते हैं, लेकिन  मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले के ओंकारेश्वर में भी सेवफल लगाया गया है। सेवफल अमूमन ठंडे प्रदेशों में ही उत्पादित किया जाता है, इसके उलट कोटि तीर्थ ओंकारेश्वर की सबसे ऊंची चोटी (500 फीट) और पथरीली जमीन पर 45 डिग्री तापमान में न केवल इसके पौधे रोपे, अब उनमें फल भी आ गए हैं।

पर्यावरण और शिव के यह साधक हर साल अपनी तरफ से 5 हजार पौधे भी निशुल्क बांटते हैं। दान-दक्षिणा में मिले रुपयों से वे पौधों की सुरक्षा, खाद-बीज की व्यवस्था करते हैं।

ओंकारेश्वर में ऊं पर्वत पर पर्यावरण को संरक्षित करने की यह साधना 20 साल से जारी है और साधक है शिवगिरि महाराज। वे कहते हैं पेड़ों से ही पर्यावरण को सुरक्षित करने की अनुभूति हुई। क्योंकि पेड़ खुद फल नहीं खाता, दूसरों को देता है। ठीक उसी प्रकार हम भी प्रकृति के लिए यह सब कर रहे हैं।

उन्होंने बताया शुरुआत में विभिन्न प्रजातियों के पेड़ तो लगाए लिए, लेकिन यहां पानी नहीं था। 267 सीढ़ियां उतरकर नर्मदा का पानी लाकर पौधों को सींचता था। पांच साल पहले सेवफल के 3 पौधे भी लगाए, सब कहते थे, इनमें फल नहीं आएंगे, क्योंकि यह फल ठंडे प्रदेशों में उगाया जाता है। यहां तो अधिकतम 45 डिग्री तापमान रहता है। ऊपर से ऊंचाई भी ज्यादा है।

शिवगिरि महाराज ने हार नहीं मानी। धूप हो ठंड, रोज नीचे उतरते, पानी भरते और पौधों की सिंचाई करते। अंतत: पेड़ों में फल आ ही गए। अब जो भी इन फलों को देखता है, आश्चर्य करता है। जम्मू-कश्मीर निवासी सतपाल शर्मा पर्यावरण प्रेमी भी है, उनका कहना है यहां सेवफल 0 से 26 डिग्री तापमान में पैदा होता है। यदि ओंकारेश्वर में इसकी पैदावार हुई तो वाकई यह शिवजी की कृपा है।

ऐसे मिला संघर्ष का फल
500 फीट ऊंचे ओम पर्वत पर पानी की व्यवस्था ही नहीं है। ऐसे में कौन कल्पना कर सकता है कि यहां पौधे लगाए जा सकते हैं, लेकिन शिवगिरि महाराज ने यह कर दिखाया। पचास-सौ नहीं, बल्कि 11 हजार पेड़ लगाए। करीब 20 साल पहले इसकी शुरुआत की।

समस्या थी कि पानी लाए कहां से। संत तो संत ठहरे। जुट गए तपस्या में। स्टील की कोठियों में पानी भर 267 सीढ़ियां उतरते-चढ़ते और पौधों को सींचते। पथरीली जमीन न केवल हरीभरी बन गई, अब यहां विभिन्न फलदार पौधों के साथ प्रदेश में न उगने वाला सेवफल भी है।

उन्होंने खुद की नर्सरी भी बना रखी है। जहां से वे हर साल 5 से 7 हजार पौधे लोगों को मुफ्त बांटते हैं। उनका कहना है ओंकारेश्वर क्षेत्र के पं.अर्पण दुबे ने उनकी काफी मदद की है। यदि यहां पानी की व्यवस्था हो जाए तो पौधों की संख्या और भी बढ़ जाएगी।

उपसंचालक उद्यानिकी राजीव बड़वाया का कहना है कि मध्यप्रदेश में सेवफल उत्पादन के लिए क्लाइमेट नहीं है। यदि किसी ने सेवफल उगा भी दिए हैं तो उसका स्वाद कश्मीर और हिमाचल के सेवफल की तरह नहीं आएगा। ओंकारेश्वर में किसी ने उगाए हैं तो जरूर देखने जाएंगे

 


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