मल्हार मीडिया भोपाल।
पिछले दिनों मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित सप्रे संग्रहालय में लोक संवाद के तहत कला-पत्रकारिता पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कला पत्रकारिता आसान काम नहीं है। कला-संस्कृति की रिपोर्टिंग से जुड़े लोगों के लिए जरूरी है कि वे अपने भीतर कलादृष्टि विकसित करें। आज कला गतिविधियों से जुड़े समाचारों को मीडिया में जगह तो बहुत मिल रही है लेकिन इनमें कथ्य का अभाव है। कुछ इस तरह के विचार शनिवार को सप्रे संग्रहालय के सभागार सामने आये।
मौका था कला पत्रकारिता पर आयोजित कार्यशाला का। इस कार्यशाला का आयोजन संग्रहालय द्वारा प्रतिमाह आयोजित की जाने वाली श्रंखला लोक संवाद के तहत किया गया था। संग्रहालय की परंपरानुसार इसमें विषय विशेषज्ञों के सूत्र उद्बोधन के बाद उपस्थित प्रतिभागियों तथा विशेषज्ञों के बीच आपसी संवाद भी हुआ।
अपने वकत्व्य सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और रंगकर्मी राजीव वर्मा ने इस बात की सराहना तो की कि आज समाचार पत्रों में कला की खबरों को व्यापक स्थान मिल रहा है लेकिन यह समीक्षा न होकर सिर्फ रिपोर्टिंग ही रह गई है। उन्होंने अन्य विषयों की तरह ही कला की खबरों को भी विस्तार और सम्मान जनक जगह दिए जाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि कला पत्रकारिता में अब समालोचनात्मक रिपोर्टिंग नहीं हो पा रही है।
लोक कला मर्मज्ञ बसंत निरगुणे ने कहा कि खबरों में उस कला या विधा से जुड़ी बातें नहीं आ पाती। इसके पीछे पत्रकारों की कला के प्रति समझ का अभाव होना एक बड़ा कारण है। उन्होंने पत्रकारों को सलाह दी कि वे कला के प्रतिदृष्टि विकसित करें।
सुप्रसिद्ध सिरेमिक कलाकार देवीलाल पाटीदार का कहना था कि खबरें स्थानीयता से आगे बढ़ें। साथ ही उन्होंने पत्रकारों को सुझाव दिया कि खाली समय में वे कलाकारों के पास जाकर उनकी कार्यशैली को समझें। फिल्म समीक्षक सुनील मिश्रा ने कहा कि कला पत्रकारों में तन्मयता की कमी नहीं है लेकिन यदि संपादक भी उस रुचि का मिल जाये तो उसकी खबरें और निखर जाती हैं।
रंगकर्मी विवेक मृदुल का मानना था कि आज तकनीकी संसाधन विकसित हो जाने से पत्रकार बैठे-बैठे ही जानकारी पाना चाहता है। इस प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कला की खबरों सही स्थान न मिलने के लिए प्रबंधन की रुचि को भी जिम्मेदार बताया।
सुप्रसिद्ध कला पत्रकार और समीक्षक विनय उपाध्याय ने कहा कि कला की पत्रकारिता में लगे लोग इसे नौकरी न समझकर इसमें व्यक्तिगत् रुचि लें। उन्होंने भाषा विकसित करने की सलाह भी नए पत्रकारों को दी। साहित्यकार डॉ. रामवल्लभ आचार्य ने कहा कि पत्रकारों के सामने समस्यायें हो सकती हैं लेकिन इसके रास्ते भी निकालने होंगे।
साहित्यकार एवं वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राजीव शर्मा ने कहा कि आज कला पत्रकारिता का विस्तार हुआ है। उन्होंने कला से जुड़ी विभिन्न विधाओं के विषयों पर अलग-अलग ऐसी ही कार्यशालाएं आयोजित की जाने की जरूरत बताई। फिल्म समीक्षक विनोद नागर ने फिल्म समीक्षा के गुर बड़ी बारीकी से बताये। साहित्यकार एवं पत्रकार युगेश शर्मा ने भी विषयवार कार्यशाला आयोजित कर इस पहल को आगे बढ़ाने का सुझाव दिया।
साहित्यकार अशोक मनवानी ने पुराने पत्रकारों को नई पीढ़ी के पत्रकार तैयार करने का सुझाव दिया। वरिष्ठ पत्रकार राकेश दुबे ने कहा कि आज इन विषयों की समझ बढ़ी है। हालांकि उन्होंने कला से जुड़ी रंगसंधान जैसी पत्रिकाओं के बंद होने की घटना पर दु:ख भी जताया। प्रतिभागी के रूप में बोलते हुए पत्रकार राजेश गाबा ने कहा कि आज के पत्रकारों के सामने भी पहले की तरह ही चुनौतियां हैं। इसमें समय और जगह का अभाव प्रमुख है।
इस तरह की कार्यशालाएं इन समस्याओं का रास्ता निकाल सकती हैं। विकास वर्मा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कुछ कलाकार सिर्फ अच्छा ही सुनना चाहते हैं। इस प्रवृत्ति पर भी रोक लगनी चाहिए। साहित्यकार वंदना दवे ने परिवार में ही कला संस्कार विकसित करने पर जोर देने की जरूरत बताई। विषय पर सुनील चौधरी, मधुरिमा राजपाल तथा हिमांशु सोनी ने भी विचार रखे। कार्यशाला का संयोजन एवं संचालन दीपक पगारे ने किया था। वर्कशॉप में पत्रकारों के अलावा बड़ी संख्या में साहित्य-संस्कृति से जुड़े लोग मौजूद रहे।
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