डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
एक बंदा था नाम प्रीतिश नंदी, अब नहीं रहा। विज्ञापन की दुनिया से आया था और तब आया था जब इंटरनेट, सोशल मीडिया, प्राइवेट चैनल आदि नहीं थे। ओटीटी आदि का तो सवाल ही नहीं। ग़ज़ब का इंफ्लुएंसर था बंदा।
एकदम ओरिजिनल। मास्टरपीस, जिसका कोई डुप्लीकेट नहीं बन सका। अनोखा प्रयोगधर्मी, कामयाबी के लिए किसी भी लेवल तक जा सकनेवाला। शब्दों का जादूगर। जितना प्रभावी लिखने में था, उतना ही बोलने में भी। जितना प्रभावी दिखने में, उतना ही काम के मामले में। स्टाइलिश और डेशिंग। हमेशा सिंगल पीस ओरिजिनल रहा। क्लीन शेव्ड था, फिर स्टाइलिश फ्रेंच कट दाढ़ी रखी। कभी खिजाब लगाकर जवान दिखने की कोशिश नहीं की। बाल गिरने लगे तो सिर घुटवा लिया और खलनायक शेट्टी के हेयर स्टाइल में आ गए।
कभी नैतिक/अनैतिक के झगड़े में नहीं पड़ता, सही/ग़लत का बतंगड़ खड़ा नहीं करता। सबसे बराबरी से मिलता, हर जगह अपने काम (और समय) का अच्छा दाम पाने के हुनर का महारथी था। सबसे मिलता और आंखें, कान और दिमाग़ खुला रखकर मिलता। जिससे मिलता, वह दीवाना हो जाता। अफवाहें होतीं कि वे अनुपम खेर के साथ शराब पी रहे थे, नीना गुप्ता के साथ लांग ड्राइव पर थे, महाभारत धारावाहिक की द्रोपदी को जूलरी शॉप लेकर गए थे और वहां से महाबलेश्वर के रास्ते पर थे।
साल 1981 का कोई समय। मैं धर्मयुग में कुछ था, वे द इलेस्ट्रेटेड वीकली के संपादक बनकर टाइम्स ग्रुप में आये थे। मुम्बई वीटी के ठीक सामने टाइम्स ऑफ इंडिया की बिल्डिंग के चौथे माले (फ्लोर) पर वीकली, धर्मयुग और माधुरी के दफ्तर लगे हुए थे। उनके बीच चार फीट का लकड़ी का डिवाइडर था। आते जाते दीदार होते थे, पर बात करने का कोई कारण और हिम्मत नहीं थी। टाइम्स ग्रुप में समीर जैन, वाइस प्रेसिडेंट थे और उनका जलवा शुरू हुआ ही था। उनके खास ही नहीं, नंदी उनके खासमखास बनकर आये थे। सीधे संपादक बनकर। जिस पत्रिका में कभी खुशवंत सिंह का जलवा था, वहां प्रीतिश नंदी थे। नंदी बिहार में जन्मे बंगाली अभिजात्य थे। एड एजेंसी में कॉपीराइटर, कवि, चित्रकार। सबको समान स्नेह और इज्जत देते थे।
प्रीतिश नंदी ने आते ही वीकली का लेआउट और डिजाइन बदल डाला। फिर कंटेंट। साथ ही अपने ऑफिस का डिजाइन भी। बड़े-से केबिन में बड़ी-सी टेबल और सामने दर्जन भर कुर्सियों को उन्होंने हटवा दिया और दीवार की तरफ मुंह करके बैठने लगे। मुझ जैसे गांवठी ने पहली बार देखा कि कोई संपादक लोगों से मुखातिब नहीं, दीवार की तरफ मुंह करके बैठता है। पता चला कि यह एकाग्रता के लिए किया गया बदलाव है।
टाइम्स ग्रुप में नंदी की तूती बोलने लगी थी। उनके आभामंडल में फिल्मफेयर सबसे पहले आया। फिर धीरे-धीरे सभी प्रकाशन आने लगे। कुछ ही समय बाद वे टाइम्स समूह के सबसे पावरफुल संपादक माने जाने लगे। देखते-देखते पूरे टाइम्स प्रकाशन समूह के पब्लिकेशन डायरेक्टर टाइप कुछ हो गए। जो पद था ही नहीं,वह बनाया गया।
...और फिर खबर आई कि वे 'टाइम्स' छोड़ गये।
बंदे ने जो किया, शिद्दत से किया। नहीं किया तो नहीं किया।जैसा चाहा, वैसा ही किया। किसी को बेइज्जत करके, धोखा देकर नहीं किया। धीरूभाई अंबानी से मिले तो ये बात कन्विंस करा कर कि अखबार निकालो। निकलवा भी दिया। बाल ठाकरे से मिले तो कहा कि यहां तो सब मराठीभाऊ हैं, इसीलिए दिल्ली में तुमको कोई पूछता नहीं। दिल्ली में शिवसेना का प्रतिनिधि अंग्रेज़ीदां होना चाहिए। पता नहीं, क्या और कैसी पट्टी पढ़ाई बालासाहब ठाकरे को, कि प्रीतिश नंदी को शिवसेना ने राज्य सभा में भिजवा दिया। छह साल दिल्ली के अशोका रोड के बंगले में रहे।
प्रीतिश नंदी ने किसी सहयोगी और परिवारजन को कोई काम करने से नहीं रोका। खुद ने भी क्या-क्या नहीं किया? फिल्में बनाईं, एनजीओ (पीपल फ़ॉर एनिमल) बनाया, जिम खोला, पेंटिंग की, साहित्य लिखा और संपादित किया, अनुवाद किये, पीआर कंपनी खोली, कॉर्पोरेट हाउस बनाया,नई-नई कारें और घर खरीदे। दूरदर्शन के लिए शो किये। वे पहले शख़्स थे जिनके नाम पर शो का नामकरण हुआ। पेररतिष नंदी शो। जब ओटीटी आया तो वे वहां भी सक्रिय रहे।पद्मश्री सहित कई सम्मान पाये। शिक्षक के बेटे ने करोड़ों, अरबों कमाए और अहंकार नहीं आने दिया। आपा नहीं खोया। कभी भी जबरन भौकाल नहीं ताना। अतिरिक्त गुरूर नहीं रखा और 73 की उम्र में फानी दुनिया को बाय बाय कह दिया।
अलविदा प्रीतिश नंदी सर।
9 जनवरी 2025
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