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अतीत और भविष्य के बीच की कड़ी होते हैं संग्रहालय

मीडिया            May 25, 2023


 मल्हार मीडिया भोपाल।

 संग्रहालय ज्ञान के संवाहक होते हैं। इनके जरिए हम हमारे अतीत से तो जुड़ते ही हैं, भविष्य की रूपरेखा भी तैयार कर सकते हैं। इस तरह कह सकते हैं कि अतीत और भविष्य के बीच की कड़ी संग्रहालय होते हैं।  चीजों को संग्रहित करना तो धैर्य का काम है ही, सहेजी हुई वस्तुओं को समझने के लिए भी धैर्य होना चाहिए।

  यह कहना है  पूर्व पुलिस अधिकारी और  विशिष्ट संग्रहों और उनसे जुड़ी जानकारियों के प्रामाणिक विद्वान सुभाष अत्रे का। वे आज सप्रे संग्रहालय में  विश्व संग्रहालय दिवस के निमित्त लगी दुर्लभ सामग्रियों की प्रदर्शनी के समापन अवसर पर विशेष व्याख्यान दे रहे थे।  इस अवसर पर भेल के पूर्व अभियंता इंद्रेश्वर पंत द्वारा संग्रहित दुर्लभ सिक्के प्रदर्शित  किये गये तो  विद्यार्थीद्वय आदित्य श्रीधर और अदिति श्रीधर ने अपने संग्रहों का प्रदर्शन किया।

 अपने संक्षिप्त किंतु सारगर्भित श्री अत्रे ने संग्रहालयों के इतिहास उनकी वर्तमान स्थिति और आम जनजीवन में इनके उपयोग आदि बिंदुओं पर बड़ी सारगर्भित जानकारी दी। समापन पर उन्होंने श्रोताओं की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। उन्होंने बताया कि मनुष्य में चीजों को संग्रह करने की वृत्ति जन्मजात होती है।  निजी तौर पर छोटी-छोटी वस्तुओं का संग्रह ही आगे चलकर संग्रहालय का रूप धारण करता है। पुराने समय में राजे-महाराजे अपने शौक की वस्तुओं को सहेजते थे। भारत में संग्रहालयों की अवधारणा अंग्रेजों के आने के बाद ही आई है। उन्होंने बताया कि यूरोप में 15 वीं सदी में संग्रहालय बना। इसके साथ ही उन्होंने संग्रहालय से जुड़ी रोचक जानकारियां भी श्रोताओं को दीं।

  सबसे ज्यादा संग्रहालय अमेरिका में

 व्याख्यान में अत्रे ने श्रोताओं को जानकारी दी कि  आंकड़ों के हिसाब से देखा जाये तो विश्व में  45 हजार संग्रहालय हैं। इनमें से अकेले अमेरिका में 33 हजार संग्रहालय हैं। भारत में कुल 280 संग्रहालय बताये जाते हैं, मध्यप्रदेश में कुल सात संग्रहालय बताये जाते हैं। हालांकि उन्होंने इन आंकड़ों पर असहमति भी जताई। विशेषकर प्रदेश की संख्या को लेकर कहा कि  अकेले भोपाल में ही बहुत से संग्रहालय हैं।

 कण से पहाड़ का रूप बना सप्रे संग्रहालय

 उन्होंने कहा कि हम जिस सप्रे संग्रहालय में बैठे वह एक व्यक्ति के जुनून का परिणाम है। यदि हम कहें कि इस संग्रहालय ने एक कण से पहा? का रूप धारण किया तो अत्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर के धैर्य और जुझारूपन दोनों की ही सराहना की।

 चीजों को देखने के साथ  पढें भी

 कार्यक्रम में अपने दुर्लभ सिक्कों का संग्रहल लेकर आये  भेल के पूर्व अभियंता  इंद्रेश्वर पंत ने कहा कि आमतौर पर लोग संग्रहित चीजों को देखने भर ही आते हैं, लेकिन इनसे जुड़ी जानकारियों को कोई नहीं प?ता। यदि इन वस्तुओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करना हो तो इनके बारे में प?ना भी चाहिए।

 

 

 

प्रदर्शनी में आदित्य श्रीधर और अदिति श्रीधर द्वारा संजोये गए डाक टिकटों  तथा विशेष अवसरों पर प्रसंगों और  व्यक्तियों के सम्मान में जारी प्रथम दिवस आवरण (कवर), महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस, स्वाीमी विवेकानंद, गदर आंदोलन शताब्दी, चंपारण सत्याग्रह शताब्दी आदि के डाक टिकट प्रदर्शित किए गए। दोनों संग्रहकर्ता ने बताया कि दुनिया में 157 देशों में 500 डाक टिकट महात्मा गांधी पर जारी किये गये। जो सर्वाधिक संख्या है। इसके अलावा सौ वर्ष पुरानी बर्रू की लेखनी, सौ वर्ष पुरानी ही कांसे की दवात के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, रूस आदि देशों की कलम भी प्रदर्शित की गई। समापन अवसर पर पूर्व डीजीपी आरएलएस यादव, अभिनेता राजीव वर्मा, समाज विज्ञानी प्रो. श्याम बिल्लौरे, वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत नायडू, गिरीश उपाध्याय, डॉ. राकेश पाठक, राजेश बादल, सतीश एलिया, संस्कृति विभाग के पूर्व अधिकारी आनंद सिन्हा, गिरीश कर्नावट सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे। आरंभ में संग्रहालय के संस्थापक निदेशक विजयदत्त श्रीधर ने अतिथियों को अंगवस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया। आभार प्रदर्शन संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ. शिवकुमार अवस्थी ने किया।

 

 



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