हिंदी पत्रकारिता के इन चेहरों से आज के एंकरों को बहुत कुछ सीखना चाहिए

मीडिया            Jun 02, 2017


जमशेद सिद्दिकी।
31 अक्टूबर साल 1984 की वो भी एक आम सुबह थी। सड़कों पर ट्रैफ़िक सुस्त था और मौसम साफ। सुबह के साढ़े सात बज रहे थे। उन दिनों दूरदर्शन पर सुबह के वक्त कोई खास कार्यक्रम नहीं आता था.. इसलिए घरों में टीवी बंद थी लेकिन उसी उनींदे माहौल में एक ख़बर धीरे-धीरे शहर और फिर पूरे देश में फैल रही थी, बताया जा रहा था कि प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई है।

ये वो दौर था जब सूचना तंत्र इतना मज़बूत नहीं हुआ करता था, तब न सोशल मीडिया था न वॉट्सऐप जैसे मैसेंजर। ख़बर की विश्वसनीयता अखबार और टीवी पर दिन में दो बार आने वाले ‘समाचार’ पर ही निर्भर थी। प्रधानमंत्री की हत्या की ख़बर को कोई कोरी अफ़वाह बता रहा था कोई उसे सच मान रहा था। कुछ ही घंटों में ये ख़बर पूरे देश में फैल गई कि ‘कुछ’ हुआ है।

लोगों की नज़र टीवी की झिलमिलाती स्क्रीन पर थी। सुबह के आठ बजे दूरदर्शन पर एक खास ट्रांसमीशन हुआ। लोगों की धड़कनें बढ़ गई। सबकी नज़र टीवी पर टिकी हुई थी। ट्रांसमिशन शुरु हुआ, औऱ टीवी स्क्रीन पर उभरा वो चेहरा जो रोज़ाना मुस्काराते हुए ख़बर पढ़ता था, जिसके बालों में एक फूल होता था .. नाम था सलमा सुलताना। उस सुबह सलमा सुलताना का चेहरा उदास था, आंखे नम थीं। फिर उन्होंने जो खबर पढ़ी उससे पूरे मुल्क में दुख की लहर दौड़ गई।

यहां देखें वीडियो

https://youtu.be/L148mipv3_Q

इस वीडियो में सलमा सुलताना वो ख़बर सुना रही हैं जो उस वक्त ना सिर्फ देश की, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी ख़बर है, लेकिन उनके चेहरे पर न कोई हड़बडाहट है ना कोई नकली गुस्सा। आंखों में ठहरे हुए आंसू है और आवाज़ में गंभीरता और दुख का संतुलन, न चीख है न चिल्लाहट। हिंदी पत्रकारिता का ये वो चेहरे है जिसे आज के एंकरों को बहुत कुछ सीखना चाहिए।

 



इस खबर को शेयर करें


Comments