मल्हार मीडिया भोपाल।
हर देश और संस्कृति का अपना ‘स्व’ होता है। ब्रिटेन लोकतांत्रिक देश है लेकिन जब वहां राजा का राजतिलक होता है तो ईसाई पद्धति से होता है। यह वहां का ‘स्व' है। इसका कोई विरोध नहीं होता है। इसीलिए आवश्यक है कि हम अपने ‘स्व' की तलाश करें और उसके साथ खड़े हों। यह बात टेलीविजन समाचार माध्यम के देश के जाने-माने पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री ने रविवार को रवीन्द्र भवन में आयोजित देवर्षि नारद जयंती एवं पत्रकार सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कही। श्री अग्निहोत्री ने कहा कि अमेरिका का राष्ट्रपति बाइबिल पर हाथ रखकर शपथ लेता है और कोई आपत्ति नहीं होती। इसका कारण यह है कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने पर भी उन्होंने अपने ‘स्व' को नहीं बदला। हमें भी हमारे देश के ‘स्व’ को समझकर उसकी पुनर्स्थापना करना होगी। विश्व संवाद केंद्र मध्यप्रदेश की ओर से आयोजित इस समारोह के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह क्षेत्र कार्यवाह हेमंत मुक्तिबोध थे। अध्यक्षता विश्व संवाद केंद्र न्यास के अध्यक्ष डॉ अजय नारंग ने की।
मुख्य अतिथि अमिताभ अग्निहोत्री ने कहा कि इस्लाम के उदय से 2600 साल पहले बुद्ध का परिनिर्वाण हो गया था। इसलिए यहां यह झगड़ा तो होना ही नहीं चाहिए कि पहले कौन यहां था। उन्होंने इस बात पर भी प्रश्न उठाए कि ऐसा इतिहास क्यों रचा गया जिसमें विदेश से आए लोगों को महान बताया गया जबकि वे अपने साथ सांस्कृतिक मूल्य लेकर नहीं आए थे।
अयोध्या, मथुरा, काशी कभी भारत में आर्थिक महत्व के केंद्र नहीं रहे, यह सामरिक केंद्र भी नहीं रहे इसके पश्चात भी इन पर हमले क्यों किये गए? इस पर विचार करना आवश्यक है। खिलजी से लेकर औरंगजेब तक भारत के माथे पर सिर रखकर खड़े होना चाहते थे। कोई मेरे आत्म तत्व को दबाए तो इसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अब देश अपेक्षाकृत अधिक जागृत है। सूचनाएं सब तक पहुंच रही हैं। अब कोई समाचार को दबा नहीं सकता। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम दुनिया को बता सकें कि हम सांस्कृतिक पुनर्जागरण क्यों करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इस देश में 1000 साल की परतंत्रता के दौर में भी धर्म जीवित रहा क्योंकि यह सत्ता पर आश्रित नहीं रहा। धार्मिक पुनर्जागरण सत्ता के आधार पर नहीं होता, यह लोक की चेतना का विषय है। जब भी लोक चेतना सत्ताश्रित हो जाती है तब राष्ट्र का भला नहीं हो सकता। किसी सत्ता का घोषणा पत्र रामचरितमानस या गीता नहीं बना।
उन्होंने उपस्थित पत्रकारों से आह्वान किया कि शब्दों को मंत्र बनाना पड़ेगा। हमें इसे अपने तप से सिद्ध करना पड़ेगा। देह अमर नहीं होती अपितु यश और कीर्ति अमर होती है। इतिहास को निरपेक्ष होकर लिखा जाए और यदि निरपेक्ष होकर लिखेंगे तो इसके खतरे भी उठाने पड़ेंगे।
उन्होंने कहा कि भारत की सांझी चेतना जागृत होगी तो भारत का पुनर्जागरण होगा। सांस्कृतिक पुनर्जागरण का काम अपनी व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठे बिना नहीं हो सकता। हम अपना नुकसान उठाकर भी धर्म के साथ खड़े हो सकते हैं। यदि हां तो आप मातृभूमि के ऋण से मुक्त हो सकते हैं। उन्होंने आह्वान किया कि यदि हम नेपथ्य में रहकर बलिदान करने को तैयार हैं तो सांस्कृतिक पुनर्जागरण हो सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को केवल एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि हम राष्ट्र के साथ हैं।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र सह कार्यवाह हेमंत मुक्तिबोध ने कहा कि यूरोप और अरब की संस्कृति अन्य देशों एवं उनकी संस्कृतियों को प्रभावित करना चाहती हैं। दुनिया भर की दूसरी संस्कृतियों के लोग जब बाहर के देशों में गए तो सबसे पहले उन्होंने वहां की संस्कृति को नष्ट किया। उन्होंने वहां की इतिहास, कला, संस्कृति और शिल्प को नष्ट किया। इसके उलट भारत जब बाहर गया तो उनको समाप्त करने नहीं गया अपितु उनको समृद्ध ही किया। भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को देखते हुए यदि हम उसके अनुसार जीवन जीना शुरू कर देंगे तो सांस्कृतिक पुनर्जागरण हो सकेगा।
उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि मीडिया में संपादक से अधिक प्रबंध संपादक की भूमिका हो गई है। पत्रकारों की भी अपनी विवशताएं हैं। एजेंडा पत्रकारिता से सनसनी तो मिल जाती है लेकिन कराहता हुआ सत्य नहीं मिलता। सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए मीडिया को निजी स्वार्थ से हटकर स्थान देना चाहिए। सकारात्मक और समाजहित में कार्य करने वाले लोगों के समाचार सामने आएं, इस दिशा में कार्य करना चाहिए।
अध्यक्षता कर रहे डॉ. अजय नारंग ने कहा कि देवर्षि नारद को हम सब लोक संचालक के रूप में जानते हैं। यह समझना आवश्यक है कि देवर्षि नारद के समय में उनके कार्य का लाभ किसको होता, निश्चित ही वह जन सामान्य को होता। संवाद केंद्र प्रतिवर्ष देवर्षि नारद जयंती पर यह आयोजन करता है। विश्व संवाद केंद्र का कार्य पत्रकारों के माध्यम से लोक कल्याण के लिए है। उन्होंने कहा कि हमने पिछले एक माह के समाचार पत्रों का विश्लेषण किया। इसमें पता चला कि ‘द केरल स्टोरी', समलैंगिक विवाह, पहलवानों का धरना, मध्यप्रदेश में मदरसों जैसे मुद्दों पर पत्रकारों ने मात्र समाचार से आगे जाकर उसके सच का विश्लेषण मीडिया द्वारा किया गया। समाचार पत्र सांस्कृतिक पुनर्जागरण में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं। जब मध्यप्रदेश में नगरों को उनके पूर्व नाम मिले तो समाचार पत्रों ने लोगों को इसका स्मरण कराया। सांस्कृतिक पुनर्जागरण के लिए मीडिया अपना योगदान दे रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। विश्वास है कि हमारा मीडिया सांस्कृतिक पुनर्जागरण में अपनी भूमिका को अग्रणी रखेगा।
कार्यक्रम का प्रारंभ संगीत प्रस्तुति के साथ हुआ। निनाद अधिकारी के संतूर वादन ने श्रोताओं का मन मोह लिया।
विश्व संवाद केंद्र द्वारा दिए जा रहे पुरस्कारों एवं सम्मान की जानकारी, चयन प्रक्रिया एवं चयन समिति के संबंध में जानकारी पत्रकार मनोज जोशी ने दी। मंच पर अतिथियों का स्वागत किया गया। कार्यक्रम के अंत में आभार विश्व संवाद केंद्र के सचिव दिनेश जैन ने व्यक्त किया। मंच संचालन डॉ वंदना गांधी ने किया। राष्ट्रगान के साथ समारोह का समापन किया गया।
इन पत्रकारों को दिए गए देवर्षि नारद पत्रकारिता सम्मान एवं पुरस्कार :
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक रमेश शर्मा को देवर्षि नारद सार्थक (पत्रकारिता) जीवन सम्मान–2023 से सम्मानित किया गया। वहीं प्रदेश के पांच पत्रकारों को देवर्षि नारद पत्रकारिता पुरस्कार प्रदान किए गए। पुरस्कृत पत्रकारों में नवदुनिया सीहोर के आकाश माथुर, स्वदेश ग्वालियर के डॉ. अजय खेमरिया, पत्रिका भोपाल के श्री श्याम सिंह तोमर, स्वदेश भोपाल के दीपेश कौरव, दैनिक भास्कर भोपाल के राहुल शर्मा सम्मिलित रहे। मंच पर सम्मानित होने के बाद अपने वक्तव्य में श्री रमेश शर्मा ने कहा कि पत्रकार यदि नारद को अपना आदर्श मानते हैं तो राष्ट्र, संस्कृति के संबंध में कोई समझौता नहीं होना चाहिए। पत्रकारिता को इस बात को उठाना चाहिए कि हमारी पहचान क्या है। अपने ऊपर बलिदानियों का ऋण है। पत्रकार अपने–अपने क्षेत्र के अनाम अमर बलिदानी के योगदान को सबके सामने लाएं।
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