सूर्यकांत पाठक
कुलदीप नैयर आज अनंत में विलीन हो गए. सुबह जैसे ही यह खबर मिली स्मृतियों में करीब 18-19 साल पहले की घटना तैर गई. मैं उन दिनों में इंदौर में था. शाम के अखबार अग्निबाण की नई बिल्डिंग बनी थी जिसका उद्घाटन समारोह था. इस समारोह में मेरे मित्र फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा आए थे.
इसके अलावा कई मंत्री और दिग्गज पत्रकार भी थे.
बहुत लंबे अंतराल के बाद आशुतोष राणा से उस समारोह में मिलना हुआ लेकिन भीड़ के कारण बातचीत ज्यादा नहीं हो सकी. जब समारोह खत्म हुआ तो लोगों की भीड़ ने आशुतोष को घेर लिया.
तब तक आशुतोष की दो-तीन फिल्में आ चुकी थीं और उनके चाहने वालों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी. भीड़ के कारण उनका कार में बैठना मुश्किल हो रहा था. उन्होंने मुझे अपने करीब खींचा और कान में कहा- सयाजी होटल पहुंचो, वहीं बत करेंगे और डिनर साथ में लेंगे.
मैं अपनी बाइक की तरफ चला गया और आशुतोष कार में जा घुसे. हम दोनों करीब साथ-साथ सयाजी होटल पहुंचे. वहां पर रिसेप्शन के सामने हम दोनों जाकर खड़े ही हुए थे कि फिर भीड़ जुटने लगी.
यह होटल में मौजूद लोगों की भीड़ थी. हालांकि यहां लोग बहुत अधिक नहीं थे. लोग आशुतोष से ऑटोग्राफ ले रहे थे, उनके साथ तस्वीरें खिंचवा रहे थे. इस बीच मेरी नजर रिसेप्शन के समीप खड़े वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर पर पड़ी. वे भी अग्निबाण के समारोह में आए थे.
मैं धीरे से आशुतोष को छोड़कर उनके पास जा पहुंचा. उन्होंने मुझे अपनी तरफ आते देख लिया था. जब मैंने उनसे नमस्कार किया तो उन्होंने नमस्कार करने के साथ हाथ आगे बढ़ा दिया. हाथ मिलाते हुए उन्होंने कहा, क्यों भाई ...सिने स्टार को छोड़कर पत्रकार के पीछे...क्या तारीफ है आपकी?
एक दिग्गज पत्रकार के इस सवाल पर मैं हंसने लगा. मैंने उन्हें बताया कि मैं यहां नईदुनिया में सब एडिटर हूं. आपसे मिलना चाहता था, मेरा सौभाग्य है कि आप मुझे यहां मिल गए. यह सुनकर वे बोले...अच्छा तो यह बात है.
फिर कुछ देर अखबारों की, पत्रकारों की चर्चा चलती रही और वे बोले अब मैं चलता हूं. मैं उनके सानिध्य के सुख से जल्द विरक्त नहीं होना चाहता था. मैंने कहा चलिए मैं आपको आपके कमरे तक छोड़ दूं.
पहले वे बोले नहीं चला जाऊंगा, फिर मेरी इच्छा को समझते हुए बोले अच्छा चलिए. मैं उनके साथ कमरे तक गया तो बोले अब आप यहां तक आए हैं तो कुछ देर बैठिए. फिर आधा घंटे तक देश-दुनिया की चर्चा होती रही.
नईदुनिया के बारे में भी बहुत सारी पुरानी बातें उन्होंने बताईं, कुछ मुझ से जानीं.
कुछ देर बाद में वे बोले रात ज्यादा हो गई है, अब मैं तो कुछ खाऊंगा नहीं, आप क्या खाएंगे, बताइए तो आर्डर कर दिया जाए. मैंने कहा नहीं सर, मैं खाना तो सिने स्टार के साथ ही लूंगा, वादा किया है. उन्हें यह भी बताया कि आशुतोष मेरे मित्र हैं. तब उन्होंने कहा ठीक है.
जब मैं उनके आज्ञा लेकर निकलने लगा तो बोले आपको छोड़ने चलूं..मैंने कहा नहीं सर..आप आराम कीजिए. शुभरात्रि कहकर मैं विदा हुआ और सोचता रहा कि यह बात कितनी सही है कि इंसान जितना बड़ा होता है, उतना ही झुका होता है.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और एनडीटीवी में कार्यरत हैं
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