मोदी-ट्रंप के भरत मिलाप में उलझा रहा मीडिया

मीडिया            Jul 04, 2017


डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने जिस तरह का कवरेज किया है, वह हास्यास्पद है। वैसे भी अमेरिकी मीडिया के लिए भारतीय प्रधानमंत्री उतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितने भारतीय मीडिया के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति। कूटनीतिक स्तर पर जो बातचीत हुई हो, जरूरी नहीं कि वह मीडिया के सामने आई ही हो। कूटनीति में कई बार जो बातें छुपानी होती हैं, उन्हें बताया जाता है और जो बातें बतानी होती हैं, वो बताई नहीं जातीं।

चटखारे लेने की आदत वाले अमेरिकी मीडिया के सामने क्या विकल्प था? वह यही प्रकाशित और प्रसारित करता रहा कि दोनों नेताओं की समानताएं और असमानताएं क्या-क्या हैं। दोनों ने कैसे कपड़े पहने, दोनों किस तरह पेश हुए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने व्हाइट हाउस में पांच घंटे क्या किया, अमेरिकी राष्ट्रपति की पत्नी मेलानिया ट्रम्प ने श्री मोदी को व्हाइट हाउस घुमाया, तब वे पीले रंग का जो ड्रेस पहनी थी, उसकी कीमत तीन हजार डॉलर से थोड़ी ही कम थी, वगैरह-वगैरह।

कई पत्रकारों ने अपनी अजीबो-गरीब टिप्पणियां लिखी। एक पत्रकार ने लिखा कि अगर मैं अमेरिकी राष्ट्रपति के व्हाइट हाउस स्टॉफ में होती, तो बताती कि व्हाइट हाउस में जो संगीत बज रहा था, वह क्या था। भारतीय प्रधानमंत्री के बारे में ट्रम्प ने जो बातें कहीं, मैं उनका भावार्थ समझती और लोगों से शेयर करती। सोशल मीडिया के दो शीर्षस्थ नेता आपस में कैसे मिले, यह बात भी अमेरिकी मीडिया ने प्रमुखता से बताई है।अमेरिकी मीडिया के अनुसार डोनाल्ड ट्रम्प खड़ूस टाइप व्यक्ति हैं और वे किसी से गले मिलना तो दूर, हाथ मिलाने से भी परहेज करते हैं। बीबीसी के प्रतिनिधि के अनुसार ट्रम्प को हाथ मिलाते वक्त दूसरे के जीवाणुओं से खतरा महसूस होता है। अमेरिकी मीडिया का कहना है कि नरेन्द्र मोदी ने न केवल ट्रम्प से हाथ मिलाया, बल्कि गले भी मिले, वह भी तीन-तीन बार। यह गले मिलना कुछ ऐसा था, जिसे लोग गले पड़ना कहते हैं। अंग्रेजी में इसे भालू की तरह गले मिलना कहा जाता है। जैसे भालू किसी को जकड़ लेता है, वैसे ही श्री मोदी ने राष्ट्रपति को अपनी बांहों में जकड़ा। कोई भी मौका उन्होंने नहीं छोड़ा।

मोदी जब भी ट्रम्प से गले मिले, ट्रम्प की पत्नी मेलानिया मुस्कुराती रही। सबके अंत में जब बाय-बाय वाला गले मिलन हो रहा था, तब वह व्हाइट हाउस के दरवाजे पर ही था और मीडिया ने उसे बहुत करीब से कवर किया। उस मौके पर राष्ट्रपति की पत्नी मेलानिया की मुस्कान को अमेरिकी मीडिया ने दा विंची की मोना लीसा जैसा बताया। मोना लीसा की मुस्कान के बारे में यह समझ पाना मुश्किल है कि वह खुश है, दुखी है, पागल है या अवसादग्रस्त है। सोशल मीडिया पर इस मिलन का बहुत मजाक उड़ा। कई ने लिखा कि मेलानिया शायद यह कहना चाहती थीं कि अब बस भी करो, या फिर यह कि चाची के साले का यह फूफा और कितनी देर झेलना पड़ेगा? मजाक में किसी ने यह भी लिखा कि अगर ट्रम्प पसंद है, तो मोदीजी उसे अपने साथ भारत ले जाओ।

 

बॉडी लेंग्वेज के एक्सपर्ट्स ने भी इस पर अपनी सलाह दी। अपनी-अपनी बुद्धि से उन्होंने ट्रम्प और मोदी के खड़े रहने, हाथ मिलाने, गले मिलने आदि की व्याख्या की। मीडिया ने तो क्रमवार तस्वीरें पेश करके उन एक्सपर्ट्स का काम आसान कर दिया।

भारतीय प्रधानमंत्री ने ट्रम्प की बेटी इवांका को भारत आने का न्यौता दिया, जिसे उन्होंने मंजूर किया, इस पर भी अमेरिकी मीडिया ने मजेदार टिप्पणियां कीं। यह भी लिखा कि जब इवांका सामने आई, तब पूरी महफिल ही इवांका ने लूट ली और प्रथम महिला नागरिक अलग-थलग पड़ गई। सौतेली मां के आगे सगी बेटी हावी हो गई।

बड़े-बड़े कार्पोरेट घरानों का हिस्सा बन चुके अमेरिकी मीडिया के लिए प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा का भावार्थ खोजना आसान नहीं। वह मीडिया इस तरह खबरें पेश करता रहा, मानो भारतीय प्रधानमंत्री वहां आलू खरीदने गए हों और वे कितने आलू खरीद पाए, उन्हें यह बताना है। कोई गंभीर विश्लेषण की अपेक्षा उनसे नहीं की जा सकती, क्योंकि कूटनीति में जो बातें प्रदर्शित की जाती हैं, वैसी होती नहीं। उनके अर्थ समझने के लिए गहराई की आवश्यकता होती है और कई बार अर्थ समझने में बरसों लग जाते हैं। इसलिए यह कहना कि प्रधानमंत्री की इस यात्रा से हमें क्या हासिल हुआ बेमानी है, क्योंकि इसका जवाब तो वक्त आने पर ही मिलेगा।

 



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